tulsidas ka jivan parichay/तुलसीदास का जीवन परिचय

tulsidas ka jivan parichay/तुलसीदास का जीवन परिचय

                नमस्कार दोस्तों आज मैं tulsidas ka jivan parichay/तुलसीदास का जीवन परिचय कहानी बताने जा रहा हूं। गोस्वामी तुलसीदास जिनका बचपन में लोग गुलक्ष्नी मानते थे और उन्हें देखकर अपने घर का दरवाजा बंद कर लेते थे| आज हम इस कथा में पढ़ेंगे की कैसे तुलसीदास हिंदी साहित्य की महान संत कवि कैसे बने और रामचरित्र मानस जैसे ग्रंथ की रचना की।

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                     यह कथा शुरू होती है, नदी किनारे छोटे से गांव से| जहां एक दिन पंडित आत्माराम दुबे अपने मित्र के साथ घर के बाहर आंगन में चिंता में बैठे थे| उनके मित्र उन्हें हल्की-फुल्की बातों से उनका ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे थे| क्योंकि उनकी पत्नी किसी भी क्षण मां बनने वाली थी| उसी क्षण चुनिया आती है और पंडित जी को बताती है कि उनको लड़का हुआ है| परंतु उनकी पत्नी बेहोश है तत्पश्चात पंडित जी भगवान से अपनी पत्नी के लिए प्रार्थना करते हैं परंतु उनकी पत्नी का देहांत हो जाता है| पंडित जी ज्योतिषी को बुलवाकर बच्चे का ग्रह नक्षत्र जांच करवाते हैं| ज्योतिषी बोलता है इस बच्चे का ग्रह नक्षत्र ठीक नहीं है, यह पूरी परिवार के नाश का कारण बनेगा| जाओ कहीं इसे छोड़कर आओ| पंडित जी बोलते हैं क्या मैं अपने बच्चों का त्याग कर दूं! पंडित ज्योतिषी बोलता है ‘ ऐसा बेटा ही क्या जो जन्म लेते ही अपने मां को खा जाए’ वह तुम्हें भी बर्बाद कर देगा, इसके बाद पंडित जी बच्चे का त्याग कर देते हैं परंतु दी चुनिया को बच्चों पर तरस आ जाता है| इसलिए उसे अपने साथ ले जाती है| किंतु सारा गांव ज्योतिषी के भविष्यवाणी के बारे में जानता था फिर भी चुनिया अपने बच्चों को घर ले आती है| चुनिया के घर वाले उसे बोलते हैं ‘तुम्हें इस बच्चे को घर नहीं लाना चाहिए था यह बच्चा हमारा भी सत्यानाश कर देगा’ चुनिया बोलती है, इसे इसके पिता ने त्याग कर दिया है बेचारा अनाथ है !भगवान के लिए मुझे देखभाल करने दीजिए| चुनिया के पति को भी उसकी बात अच्छी नहीं लगती| वह चुनिया को बोलता है ‘ मूर्ख स्त्री इस बच्चे को यहां क्यों उठा लाई हो, चुनिया बोलती है यह बच्चा बेचारा अनाथ है हम दोनों इसको अपने पुत्र की तरह पालेंगे| 10 दिनों बाद चूनिया का पति बोलता है पंडित आत्माराम चल बसे! सचमुच यह बच्चा बड़ा ही अमंगलकारी है| चुनिया बोलती है इसमें बेचारे निर्दोष बच्चों का क्या अपराध है| लेकिन दुर्भाग्य वर्ष चुनिया भी उसे बच्चों के पालन पोषण के लिए बहुत दिनों तक जीवित नहीं रहती| जब उस बच्चे की उम्र 10 वर्ष होती है। तब चुनिया को एक सांप डस लेता है| तत्पश्चात चूनिया का पति उस बच्चे को घर से निकाल देता है|

tulsidas ka jivan parichay/तुलसीदास का जीवन परिचय

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तुलसीदास के गुरु कौन थे ?

                  वह बालक रोता हुआ घर से निकल जाता है और रात्रि में किसी पेड़ के नीचे सोता है| अगले दिन जब उसे भूख लगती है तब किसी के घर पर जाकर दरवाजा खटखटाता है| जब घर में से एक स्त्री बाहर आती है तब वह बालक उसे बोलता है, मुझे बहुत भूख लगी है| स्त्री उसके लिए घर में दूध लेने जाती है परंतु एक बुढ़िया, स्त्री को बताती है कि वह बच्चा बहुत अभागा है| जो भी उसे खिलाता है वह मर जाता है| तत्पश्चात वह बालक पण लेता है अब कभी भी में भीख नहीं मांगूंगा| लेकिन संध्या के समय पेट की आग उसे दूसरा दरवाजा खटखटाना के लिए मजबूर कर देती है| परंतु वह जहां भी जाता था लोग उसे आत्माराम का बेटा समझ कर खाना नहीं देते थे और दरवाजा बंद कर लेते थे| बेचारा वह बच्चा अपमानित होकर गांव के एक मंदिर में जाता है, उसी दिन मंदिर में एक बाबा नरहरि दास आते हैं और उसे बच्चों के बारे में पूछते हैं| मंदिर का पुजारी बताता है यह बच्चा आत्माराम दुबे का अभागा बच्चा है| अशुभ नक्षत्र का मारा है| जो कोई उसकी सहायता करता है वह सिर्फ दुख ही पता है| बाबा नरहरी दास को उसे बच्चे पर दया आ जाती है| उसे बच्चों से बोलते हैं सुन बालक “प्रभु श्री राम सबका रखवाला है तुम उनकी शरण में क्यों नहीं जाता| बालक बोलता है श्री राम कहां है; मैं उनके पास कैसे पहुंच सकता हूं| बाबा नरहरी दास उस बच्चों को अपना शिष्य बना लेते हैं| तब वह बालक अपने गुरु की चरण में पड़कर प्रणाम करता है, तत्पश्चात बाबा नरहरी दास उस बच्चे का नाम रामबोला रखते हैं| वह बालक बाबा नरहरी दास भगवान राम की कथा सुनने को कहता है। तब बाबा नरहरी दास उसे भगवान श्री राम की कथा सुनाने लगते हैं| बालक रामबोला भगवान राम की कथा सुनकर बहुत प्रसन्न होता है और वह कथा खुद से पढ़ने का प्रयास करता है| परंतु उसे भगवान श्री राम की कथा बहुत कठिन लगती है, तब बाबा नरहरिदास उसे वाराणसी के आचार्य शेष सनातन के पास ले जाते हैं| वाराणसी पहुंचकर बाबा नरहरी दास आचार्य से कहते हैं “उस बालक को अपना शिष्य बनने के लिए कहते हैं और विनती करते हैं| आचार्य शेष बालक रामबोला को अपना शिष्य बना लेते हैं और शिक्षा देने लगते हैं| इस तरह बालक राम बोला अपनी शिक्षा में 10 वर्ष पुराने और धार्मिक ग्रंथो की शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं| एक दिन आचार्य शेष सनातन बालक रामबोला से कहते हैं ‘वत्स अब तुम्हारी शिक्षा पूर्ण हुई. रामबोला कहते हैं’आपकी कृपा से मैं मनुष्य की तरह जीने का गौरव पा चुका हूं’ मुझे आज्ञा दीजिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं| आचार्य श्री सनातन कहते हैं जाओ संसार में श्री राम की महिमा का प्रसार करो| राम बोल कहते हैं गुरुदेव यह तो मेरा परम कर्तव्य है इसे पूरा करना ही मेरे जीवन का एकमात्र लक्ष्य होगा|

तुलासिदास विवाह ओर पत्नी प्रेंम कि कहाणी

                    आचार्य बोलते हैं वत्स रामबोला में चाहता हूं कि तुम गृहस्थी भी करो. क्योंकि भगवान श्री राम भी एक ग्रहस्थ थे| रामबोला गुरु से आज्ञा लेकर अपनी जन्मभूमि लौट जाते हैं और अत्यंत भक्ति भाव से भगवान राम की पावन कथा सुनाते लगते हैं| तत्पश्चात लोग उन्हें तुलसीदास के नाम से पुकारने लगते हैं| और उनका नाम चारों तरफ फैलने लगता है| पास के एक गांव में दीनबंधु नाम के एक पाठक रहते थे एक दिन उनके घर एक व्यक्ति आता है और बताता है कि उसकी बेटी रत्नावली के लिए तुलसीदास से बढ़कर योग्य वर कहीं नहीं मिलेगा| पाठक दीनबंधु बोलते हैं सुना है तुलसीदास बहुत गरीब है| वह व्यक्ति बोलता है ब्राह्मण का सबसे बड़ा धन उनका ज्ञान है और तुलसीदास ज्ञान के भंडार है| तुम्हारी पुत्री के लिए उससे बढ़िया कोई नहीं मिलेगा| पाठक दीनबंधु राजी हो जाते हैं और जल्द ही तुलसीदास का विवाह रत्नावली के साथ हो जाता है| तुलसीदास अपनी पत्नी से अत्यंत प्रेम करते थे| इसलिए रत्नावली की सहेलियां उसे चढ़ाया करती थी| एक दिन जब रत्नावली घर पहुंची तो वह गुस्से में थी| कालिदास पूछते हैं आज तुमने लौटने में इतना देर क्यों लगा दी| रत्नावली कहती है मेरी सहेलियों मुझे ताने मारती थी कि मैंने आप पर जादू कर दिया है| कालिदास बोलते हैं हां यह बात तो सच है रत्नावली बोलती है क्या आप अपने गुरु को दिया हुआ वचन भूल गए जो महिमा भगवान श्री राम की प्रसार करने को कहा था| तुलसीदास अपनी पत्नी की बात सुनकर गंभीर हो जाते हैं कुछ दिनों के बाद रत्नावली के मायके से एक नाई उनके घर पहुंचता है वह नाई रत्नावली से कहता है,’ बेटी तुम्हारे बापू ने तुम्हें मायके ले जाने के लिए भेजा है| रत्नावली कहती है मैं कैसे चल सकती हूं मेरे पति बाहर गए हैं, एक-दो दिन बाद लौटेंगे| नाई बोलता है कल भाई दूज है घर में तुम्हारी कमी सबको लगेगी| रत्नावली अपने मायके जाने के लिए तैयार हो जाती है लेकिन जाने के पहले तुलसीदास के लिए खत लिखकर छोड़ देती है| दो दिन बाद तो जब तुलसीदास घर वापस लौटते हैं तो रत्नावली को न देखकर परेशान हो जाते हैं| तभी तुलसीदास को रत्नावली का खत मिलता है जिसे पढ़कर तुलसीदास सोचने लगते हैं उसमें लिखा है कि वह शीघ्र लौटेगी लेकिन तब तक उसकी प्रतीक्षा कैसे करूं। तुलसीदास तुरंत अपने पत्नी से मिलने के लिए रत्नावली के माईके मिलने के लिए निकल पड़ते हैं| रास्ते में तेज बारिश होने लगती है लेकिन तुलसीदास नहीं रुकते| नदी किनारे पहुंचकर एक नाविक के पास पहुंचते हैं और नदी पार करने के लिए कहते हैं| नाविक बोलता है नदी में बाढ़ आई हुई है इसलिए मैं नदी पर नहीं कर सकता| हताश होकर तुलसीदास नदी के किनारे किनारे चलने लगते हैं तभी उनकी दृष्टि नदी पर तैरती हुई एक लाश पर पड़ती है| तत्पश्चात तुलसीदास उस लाश पर बैठकर नदी पार कर जाते हैं और रत्नावली के मायके पहुंचते हैं| परंतु तब तक आधी रात बीत जाती है इसलिए कोई भी घर का दरवाजा नहीं खुलता| अंत में तुलसीदास घर के ऊपर चढ़कर जाने की कोशिश करते हैं तभी उनको छत से एक रस्सी लटकती हुई दिखाई देती है| तत्पश्चात तुलसीदास उस रस्सी को पकड़ कर कमरे में पहुंच जाते हैं| किंतु वह एक सांप को रस्सी समझ बैठे थे|

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आर्यभट्ट का जीवन परिचय 

तुलसीदास कि भक्ती,चमत्कार संघर्ष

tulsidas ka jivan parichay/तुलसीदास का जीवन परिचय

                      रत्नावली ने जब तुलसीदास को देखा, तब उसे उसकी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था| वह तुलसीदास से पूछती है,’ आपने इतनी रात को नदी पर कैसे किया; तुलसीदास बोलते हैं तुम्हारे लिए नदी तो क्या समुंदर भी पार कर सकता हूं| रत्नावली बोलती है आपको इतना प्रेम इस शरीर से है उतना अगर श्री राम से होता तो आप संसार के बंधन से मुक्त हो गए होते| पत्नी कि यह बात सुनकर तुलसीदास का अंतर्मन जाग उठता है| और वह तुरंत पत्नी के कक्ष से निकलकर श्री राम का प्रसार करने निकल पड़ते हैं| तुलसीदास फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखेते और संसार का मोह त्याग कर प्रयागराज पहुंचते हैं| तुलसीदास पण लेते हैं अब बस श्री राम कि कथा का प्रचार और प्रसार ही करेंगे| वहां से वह राजापुर चले जाते हैं, वहां पर वह रामायण का हिंदी भाषा में प्रचार और प्रसार करने लगते हैं| उनके शब्द इतने निराले थे कि लोग दूर-दूर से उनकी बातें को सुनने के लिए आने लगते हैं| वहां पर कुछ ब्राह्मण इस बात पर खुश नहीं थे| इसलिए वह लोग आवाज उठाते हैं रामायण एक पवित्र ग्रंथ है इसीलिए इसका पाठ केवल संस्कृत भाषा में ही होना चाहिए| तुलसीदास कहते हैं अगर मैं अपनी भाषा में बात नहीं करूंगा तो साधारण लोग श्री राम की महानता को कैसे समझेंगे| इस तरह संध्या काली प्रवचन में दर्शकों की संख्या बढ़ती गई, प्रवचन सुनने वाले श्रोताओं में एक ऐसा बूढ़ा आदमी था जो सबसे पहले आता था परंतु सबसे अंत में जाता था एक दिन जब सभी लोग जा चुके थे तब तुलसीदास उस बूढ़े आदमी से कहते हैं.” प्रभु में आपको पहचान गया आप कोई और नहीं आप “राम भक्त हनुमान हनुमान है” आप तो प्रभु के प्रिय पात्र है मुझे भी प्रभु श्री राम के दर्शन कराया दिजीये| तब हनुमान जी अपने असली रूप में आकर तुलसीदास से कहते हैं ‘तुम चित्रकूट चले जाओ तुम्हारी मनोकामना वही पूरी होगी’ तत्पश्चात तुलसीदास चित्रकूट चले जाते हैं और श्री राम की प्रतीक्षा करने लगते हैं| एक दिन दो राजकुमार घोड़े पर सवार होकर आते हैं परंतु तुलसीदास पहचान नहीं पाते तभी हनुमान जी प्रकट होकर बताते हैं कि वह दो राजकुमार प्रभु श्री राम और लक्ष्मण ही थे| तुलसीदास हाथ जोड़कर हनुमान जी से विनती करते हैं कि कृपया करके दोबारा उनके दर्शन करवा दीजिए| तब हनुमान जी उन्हें मंदाकिनी नदी के तट पर बुलात हैं| अगले दिन तुलसीदास मंदाकिनी नदी के तट पर पूछते हैं| इस समय दो राजकुमार तुलसीदास से चंदन लगवाने पूछते हैं परंतु इस बार भी वह पहचान नहीं पाते तुलसीदास के उन दोनों राजकुमार से ‘जय श्री राम’ बोलने के लिए कहते हैं परंतु एक राजकुमार जय श्री राम बोलता है दूसरा नहीं| तब तुलसीदास उनसे कहते हैं प्रभु श्री राम परमात्मा के अवतार थे| तुम उनका नाम लेने से झिझक क्यों रहे हो ,तभी वह दोनों जय श्री राम बोलकर ओझल हो जाते हैं| तुलसीदास दूसरे भक्तों के माथे पर चंदन लगाने व्यस्त हो जाते हैं| तभी वहां बेटा तोता बोलता है |”चित्रकूट के घाट पर, भाई संतान की भीड़! तुलसीदास चंदन कि तिलक करें रघुवीर!| तुलसीदास तोते की बात सुनकर समझ जाते हैं, वह दो राजकुमार और कोई नहीं प्रभु श्री राम और लक्ष्मण ही थे| इस घटना के बाद तुलसीदास बिल्कुल बदल जाते हैं क्योंकि भगवान श्री राम के स्पर्श ने उन्हें रूपांतर ही कर दिया था| तत्पश्चात तुलसीदास जगह-जगह जाकर प्रवचन सुनाने लगते हैं जिससे संध्या की प्रवचनों में भक्तों की संख्या दिन-रात बढ़ने लगती है|

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एक अनोखी कहानी :-

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                     एक दिन रत्नावली के मायके से अनंत आता है और बताता है रत्नावली और उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है| तुलसीदास कहते हैं वह लोग पुण्य आत्मा थे में अपनी पत्नी की प्रेरणा से ही श्री राम की भक्ति प्राप्त कर सका हूं| अनंत तुलसीदास से तीर्थ यात्रा पर जाने की इच्छा करते हैं| तत्पश्चात अनंत और तुलसीदास तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ते हैं वह दोनों सबसे पहले उत्तर दिशा में वृंदावन जाते हैं और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति देखकर रुक जाते हैं| वहां के लोग सोचते हैं तुलसीदास तो श्री राम के भक्त हैं क्या वह श्री कृष्ण के सामने सर झुकाएंगे तभी वह लोग देखते हैं कि श्री कृष्ण की मूर्ति में श्री राम के स्वरूप दर्शन हो रहे हैं| बाद में प्रवचन सुनाते हुए तुलसीदास कहते हैं, श्री राम और श्री कृष्णा एक ही है; किसी भी रूप में उनकी भक्ति करो तुम्हें शांति ही मिलेगी| एक बार तुलसीदास आनंद के साथ राजस्थान के किसी मंदिर में रह रहे थे| एक समय जब तुलसीदास ध्यान में लीन थे तभी उन्हे बाहर बहुत शोर सुनाई देता है| जब तुलसीदास आनंद से पूछते हैं पता लगाओ यह शोर कैसा है तब आनंद बताता है| नीच जाति के कुछ लोग अपने दर्शन चाहते हैं परंतु पुजारी उन्हें आने से रोक रहे हैं| तब तुलसीदास कहते हैं अनंत भक्तों की कोई जाति नहीं होती| कोई भी प्रभु श्री राम का भक्त है| तुलसीदास तुरंत बाहर आते हैं और भीलों से बड़े प्रेम से गले लग जाते हैं| मैं जानता हूं मेरे प्रभु श्री राम वनवास के कुछ दिन तुम ही लोगों के बीच बिताए गए थे| उसी दिन शाम को तुलसीदास को मिलने के लिए मेवार्ड के राणा प्रताप आते हैं| राणा तुलसीदास से कहते हैं,’ स्वामी जी में बहुत कष्ट हूं, मेरे मेवाड़ पर मुगलों ने अधिकार कर रखा है, प्रजा में त्राहि त्राहि मची हुई है| तब तुलसीदास बोलते हैं’ हताश न हो राणा प्रभु श्री राम की कृपा से सब कुछ ठीक हो जाएगा| राणा प्रताप बोलते हैं लेकिन बिना धन और साधन से मेवाड को स्वतंत्र कैसे किया जाए| इस समय अनंत आकर कहता है कि “भामाशाह आपसे दर्शन करना चाहते हैं तत्पश्चात मेवाड़ की दुर्दशा सुनकर भामाशाह रो पड़ते हैं और कहते हैं “मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए मेरा सर्वस्व आपको समर्पित है’ राणा प्रताप बोलते हैं मैं एक योद्धा होकर दान कैसे स्वीकार कर सकता हूं, ‘भामाशाह तुलसीदास से कहते हैं’ गुरुदेव कृपा करके आप ही मेरी भेंट स्वीकार करें और राणा को सौंप दें | राणा प्रताप तुलसीदास को यह भी बताते हैं कि राजा महान सिंह हमारे ही बंधु है लेकिन वह मुगलों की तरफ से लड़ रहे हैं| तुलसीदास उन्हें आश्वासन देते हैं कि वह शीघ्र ही सही रास्ते पर आ जाएंगे| तत्पश्चात एक दिन मुगल की सेनापति मानसिंह तुलसीदास से मिलने पहुंचता है| मानसिंह तुलसीदास की बातों से इतना प्रभावित होता है कि उसका हृदय परिवर्तित हो जाता है कुछ दिनों बाद मुगल बादशाह अकबर को सूचना प्राप्त होती है कि राजा मानसिंह ने अपनी से सेना पीछे हटा ली है|

                   बादशाह अकबर पता करवाते हैं कि उसने ऐसा क्यों किया, तो उन्हें यह बात पता चलती है कि तुलसीदास ने मानसिंह का मन परिवर्तित किया है| तब बादशाह अकबर तुलसीदास को दरबार में बुलाने के लिए अब्दुल रहीम खान को भेजते हैं| अब्दुल रहीम खान तुलसीदास से जाकर मिलता है और बादशाह की इच्छा प्रकट करता है| तुलसीदास कहते हैं “मैं तो अपने श्री राम की महिमा का गुणगान करता हूं’ राजा महाराजाओं के दरबार में भला मेरा क्या काम” अब्दुल रहीम खान उससे कहता है, आप इस्लाम धर्म के विरुद्ध का प्रचार कर रहे हैं| तब तुलसीदास कहते हैं यह सरा सर झूठ है| हां यह आवश्यक है कि मैं अपनी मुक्ति दाता श्री राम का गुणगान करता हूं| कुछ दिनों बाद तुलसीदास अनंत के साथ रामेश्वर मंदिर में पहुंचते हैं, परंतु मंदिर के पुजारी उन्हें रोक देते हैं मंदिर के पुजारी तुलसीदास से कहते हैं कि यह भगवान शिव का मंदिर है क्योंकि तुम वैष्णव हो इसीलिए मंदिर में नहीं जा सकते| तत्पश्चात तुलसीदास मंदिर के बाहर बैठ जाते हैं और भगवान शिव की स्तुति करने लगते हैं| शीघ्र ही भगवान शिव दर्शन देकर कहते हैं तुलसीदास में तुम पर प्रसन्न हु| तुम वाराणसी लौट जाओ और अपने जीवन की कामना पूरी करो| तुलसीदास वाराणसी लौट आते हैं और घाट के निकट अपनी कुटिया बनाकर रहने लगते हैं| कुछ समय बाद तुलसीदास हिंदी में रामचरित्र मानस लिखना शुरू करते हैं| जब वाराणसी के पंडितों को इस बात का पता चलता है तो वह आगबाबुला होते हैं| सभी पंडित एकत्रित होकर सलाह करते हैं कि तुलसीदास जो कुछ कर रहा है वह धर्म विरोधी कार्य है| श्री राम की कथा शिवाय संस्कृत के किसी और भाषा में नहीं लिखी जानी चाहिए| उसी रात दो पंडित तुलसीदास की कुटिया में घुसने की कोशिश करते हैं परंतु वह किसी दो राजकुमार को पहारा करते हुए देखते हैं| पंडित समझ जाते हैं यह भगवान श्री राम और लक्ष्मण ही पहरा दे रहे हैं| तत्पश्चात वह लोग वहां से भाग जाते हैं अगले दिन सभी पंडित एक साथ सभा बुलाते हैं और तुलसीदास के पास एक प्रतिनिधिमंडल भेजते हैं| वह लोग तुलसीदास से कहते हैं तुलसीदास हमारे विचार से तुम्हारा हिंदी में रामायण लिखना अनुचित है; हम लोग चाहते हैं कि अपनी रचना गंगा नदी में डुबो दो| तुलसीदास कहते हैं मित्रों में चाहता हूं कि भगवान श्री राम की पावन कथा देश के हर घर में गूंज उठे|

तुलसीदास का जन्म और मृत्यु

                        तभी एक पंडित जी बोलते हैं ठीक है अन्य धार्मिक ग्रंथो के साथ हम तुम्हारा ग्रंथ भी शिवलिंग के समीप रखेंगे वहीं अपना निर्णय करेंगे| तुलसीदास इस बात से सहमत हो जाते हैं तत्पश्चात सभी पंडित अन्य धर्म ग्रंथ को साथ राम चरित्र मानस को भी शिवलिंग के समीप रखते हैं| अगली सुबह जब सभी मंदिर का दरवाजा खोलते हैं तो देखते हैं कि रामचरित्र मानस सबसे ऊपर रखा है| इस तरह तुलसीदास की जीत होती है| तत्पश्चात सभी पंडित तुलसीदास से माफी मांगते हैं| तुलसीदास बहुत दिनों तक जीवित रहे और उनका यश प्रतिदिन फैलता गया उनका रामचरित्र मानस आज भी देश के लिए अमूल्य निधि है| तुलसीदास ने अपने अंतिम समय में गंगा नदी के किनारे अस्सी घाट पर राम नाम का स्मरण किया था| मित्रों उनकी मृत्यु कैसे हुई थी इस बात को लेकर अनेक को में मतभेद है| ऐसा कहा जाता है तुलसीदास काफी सालों तक बीमार थे इसीलिए उनकी मृत्यु हुई थी, वही ऐसा भी कहा जाता है कि तुलसीदास ने मृत्यु से पहले अपनी आखिरी कृति विनय पत्रिका लिखी थी जिस पर खुद प्रभु राम ने हस्ताक्षर किए थे दोस्तों उम्मीद है कि यह कथा आपको अच्छी लगी हो। tulsidas ka jivan parichay/तुलसीदास का जीवन परिचय

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