titanic in hindi / titanic
titanic real story 18 अप्रैल 1912 अमेरिका के न्यूयॉर्क में रात के 9:30 बजे घनघोर बारिश में करीब 40000 लोग दिल थामे हुए किसी का इंतजार कर रहे थे| यह वो काली रात थी जब न्यूयॉर्क में दर्द का सैलाब आने वाला था| तीन दिन से यह लोग टकटकी लगाए एक जहाज का इंतजार कर रहे हैं जिसका नाम है कार्पेथिया| कार्पेथिया जहाज अपने साथ एक ऐसी दर्दनाक कहानी लेकर लौटा था जिसको सुनकर आज भी लोगों के दिल दहल जाते हैं| एक ऐसा जहाज जो कभी नहीं डूब सकता था| आर.एम.एस टाइटनिक जिसने सैकडों लोगों की जिंदगियां समुंदर के हवाले कर दी और कार्पेथिया जहाज पर मौजूद हैं वह चुनिंदा लोग जिन्होंने टाइटनिक के रौद्र रूप को अपनी आंखों से देखा था| यह इतिहास की वह दिल दहला देने वाली घटना थी जिसको कोई भी इंसान भुला नहीं सकता| यह घटना अपने पीछे कई रहस्यों को छोड़कर चली गई|
एक अनोखी कहानी :- भगत सिंह का जीवन परिचय
टाइटनिक कि पहली यात्रा
10 अप्रैल 1912 को जब टाइटनिक ब्रिटेन के साउथ हैटन से न्यूयॉर्क जाने के लिए अपनी पहली यात्रा के लिए तैयार था| तब वहां पर एक अलग ही माहौल था| क्योंकि लोगों ने टाइटनिक के बारे में इतना सुन रखा था कि वह टाइटनिक की विशालता और उसकी सुंदरता को देखने के लिए उमड़ पड़े| ऐसा माना जाता है कि करीब 1 लाख से भी ज्यादा लोग टाइटनिक की भव्यता को देखने के लिए आए थे और इतनी भीड़ टाइटनिक को देखने क्यों ना आती क्योंकि टाइटनिक था ही इतना भव्य| यह जहाज 269 मीटर लंबा था और इसकी ऊंचाई करीब 53 मीटर थी| जो कि एक आठ मंजिला ऊंची इमारत से भी ज्यादा ऊंचा था| यह जहाज बाहर से देखने में जितना भव्य लगता था उससे ज्यादा आलीशान तो यह अंदर से था| यह इतना लग्जरियस जहाज था कि इसमें दो बड़े-बड़े ग्राउंड स्टेयर्स, हीटेड स्विमिंग पूल, जिम, चार रेस्टोरेंट्स, लाइब्रेरी, टर्किश बाथ, इलेक्ट्रिक बाथ और बार्बर शॉप इत्यादि थे| ऐसा मानो कि टाइटनिक एक चलता फिरता लग्जरियस होटल था|उस जहाज का पुरा खर्च $7.5 मिलियन का हुआ था| titanic in hindi
जिसमें हर तरह की सुविधा मौजूद थी टाइटनिक लग्जरी के मामले में तो खास था ही लेकिन एक और बात टाइटनिक को खास बनाती वो थी टाइटनिक की सेफ्टी| ये उस समय दुनिया का सबसे बड़ा सेफ और मजबूत जहाज था| टाइटनिक को इस तरह से बनाया गया था कि इसका दूसरा नाम ही अनसिंकेबल था| मतलब कभी ना डूबने वाला जहाज और देखा जाए तो टाइटनिक था भी एक ऐसा जहाज जो कभी नहीं डूब सकता था क्योंकि इसको बनाया ही कुछ इस तरह से गया था| क्योंकि इसमें डबल बॉटम हल का इस्तेमाल किया गया था दरअसल हल जहाज के इस बाहरी आवरण को बोला जाता है| जो जहाज को मजबूती देता है यह स्टील का बना एक मजबूत स्ट्रक्चर होता है इसे आप जहाज की रीड की हड्डी भी बोल सकते हो| यह जहाज की मेन बॉडी होता है| टाइटनिक का यह हल वैसे तो मजबूत था ही लेकिन इसे और ज्यादा सेफ बनाने के लिए टाइटनिक के इस निचले वाले हिस्से यानी बॉटम में डबल हल का इस्तेमाल किया गया था| दरअसल समुद्र में कोई शिप चलती है तो उसका ज्यादातर इस निचले वाले हिस्से में किसी अंदरूनी चट्टान या अन्य चीजों से टकराने का डर रहता है| तो टाइटनिक का डबल बॉटम हल होने की वजह से अगर इसका निचला वाला हल किसी इंपैक्ट में टूट भी जाए तो दूसरा हल टाइटनिक को सुरक्षित रखेगा और इसे डूबने से बचा लेगा और टाइटनिक का दूसरा सेफ्टी फीचर इसे और ज्यादा सेफ बना देता है दरअसल टाइटनिक को 16 वाटर टाइट कंपार्टमेंट्स में डिवाइड किया गया था|
एक अनोखी कहानी :-
apj abdul kalam information in hindi
titanic in hindi
दरअसल जहाज का ये निचला वाला भाग शिप का मेन पोर्शन होता है जो पानी के अंदर चलता है| अब अगर मान करर चलो कि जहाज के इस वाले हिस्से में कहीं पर भी कोई छेद हो जाए तो धीरे-धीरे जहाज के अंदर पानी भरने लगेगा और कुछ समय बाद जहाज पानी के अंदर डूब जाएगा लेकिन टाइटनिक के इस निचले हिस्से को 16 वाटर टाइट कंपार्टमेंट्स में बांटा गया था| इससे फायदा ये होने वाला था कि अगर बाय चांस जहाज साइड से किसी चट्टान से टकराता है और उसमें लीकेज होता है तो जहाज का जो कंपार्टमेंट छतिग्रस्त हुआ है केवल उसी में पानी भरेगा और बाकी के कंपार्टमेंट्स में पानी फ्लो नहीं करेगा जिससे जहाज डूबने से बच जाएगा |और टाइटनिक इतना बड़ा जहाज था कि अगर इसके 16 में से चार कंपार्टमेंट्स में भी पानी भर जाए तो भी यह डूबने वाला नहीं था और ऐसा होना एक असंभव सी बात थी कि इसके एक साथ चार से ज्यादा कंपार्टमेंट्स डैमेज हो जाएं| क्योंकि यह कंपार्टमेंट ट्स बहुत बड़े-बड़े थे तो भला कोई चट्टान भी इस जहाज को कैसे डुबो सकती थी इसी वजह से इस जहाज को कभी ना डूबने वाला जहाज यानी अनसिंकेबल बोला जाता था|
टाइटनिक को वाइट स्टार लाइन कंपनी ने करीब 3 सालों में बनाकर तैयार किया था| 2 अप्रैल 1912 को टाइटनिक जहाज बनकर तैयार हो चुका था और इसके कुछ दिन बाद यानी 10 अप्रैल 1912 को इसे अपनी पहली यात्रा के लिए तैयार किया जाता है इस जहाज में उस जमाने के बड़े-बड़े लोग बैठे थे| इसमें कुछ ऐसे प्रवासी भी थे जो अमेरिका जाकर एक नए जीवन की शुरुआत करने वाले थे| इस जहाज के कप्तान थे 62 साल के एडवर्ड जॉन स्मिथ जो कि एक अनुभवी कप्तान थे| ऐसा माना जाता है कि यह इनका आखिरी सफर था इसके बाद यह रिटायरमेंट लेने वाले थे| इस जहाज पर करीब 2240 पैसेंजर्स और क्रू मेंबर्स थे| वैसे तो साउथ हैटन से न्यूयॉर्क पहुंचने में 7 से 8 दिनों का समय लगता था| लेकिन टाइटनिक उस जमाने का सबसे तेज चलने वाला जहाज था तो वाइट स्टार लाइन कंपनी चाहती थी कि यह जहाज 6 दिनों में न्यूयॉर्क पहुंचे और लोग टाइटनिक की भव्यता के साथ-साथ इसकी रफ्तार को भी जाने| इस वजह से कंपनी की ओर से टाइटनिक के कैप्टन स्मिथ को जहाज को फुल स्पीड से चलाने के इंस्ट्रक्शंस मिले हुए थे| टाइटनिक को बने हुए अभी ज्यादा समय नहीं हुआ था और ना ही टाइटनिक के सेफ्टी टेस्ट और ट्रायल्स हुए थे लेकिन फिर भी टाइटनिक को एक लंबी यात्रा के लिए तैयार किया जा रहा था और इसका एक बहुत बड़ा कारण था| दरअसल वाइट स्टार लाइन कंपनी की एक और शिप थी ओलंपिक जो देख में तो टाइटनिक की तरह ही थी लेकिन वो इससे थोड़ी छोटी थी इस वजह से ओलंपिक शिप को टाइटनिक की बहन बोला जाता था|
titanic in hindi
मार्च 1912 को ओलंपिक शिप में खराबी आ गई थी इस वजह से ओलंपिक इमरजेंसी में बंदरगाह पर रिपेयर होने के लिए आई| अब यह शिप इतनी बड़ी होती हैं कि इनको रिपेयर होने में कई महीनों का समय लग जाता है तो इस वजह से वाइट स्टार लाइन कंपनी का बिजनेस इन महीनों में बंद पड़ जाता| तो कंपनी ने अपने बिजनेस को जारी रखने के लिए अगले ही महीने यानी अप्रैल में अपनी नई शिप टाइटन टानिक को लॉच करने का फैसला किया अब क्योंकि यह टाइटनिक की पहली यात्रा थी जिस वजह से टाइटनिक के क्रू में कुछ अनुभवी लोगों का होना भी जरूरी था इस वजह से टाइटनिक के कुछ क्रू मेंबर्स को हटाकर ओलंपिक के कुछ क्रू मेंबर्स को टाइटनिक के क्रू में शामिल किया गया| टाइटनिक का एक ऑफिसर था डेविड ब्लेयर इसको हटाकर इसकी जगह पर ओलंपिक के एक ऑफिसर को इसकी जगह पर ड्यूटी पर नियुक्त किया गया| तो डेविड ब्लेयर जब शिप को छोड़कर अपने घर जा रहा था तो वह गलती से अपने लॉकर की चाबी को भी अपने साथ ले आया और दुर्भाग्य से टाइटनिक पर मौजूद इकलौता दबीन भी उसी लॉकर में बंद था| डेविड ब्लेयर के द्वारा की गई यह छोटी सी गलती आगे चलकर टाइटनिक को डुबो देती है आखिर वो घड़ी आ ही गई जब 10 अप्रैल 1912 को टाइटनिक अपने पहले ऐतिहासिक सफर पर रवाना होता है|
कैप्टन स्मिथ भली भांति जानते थे कि साल के इन महीनों में समुद्र में बहुत ज्यादा आइसबर्ग मिलते हैं इस वजह से उन्होंने खतरे को भांपते हुए नॉर्दर्न रूट के सीधे रास्ते को छोड़ते हुए साउदर्न रूट के इस थोड़े लंबे रास्ते को चुना| दरअसल आइसबर्ग समुद्र में मौजूद छोटे-छोटे बर्फ के पहाड़ होते हैं यह बर्फ के पहाड़ ग्लेशियर से टूटकर समुद्र की लहरों के साथ बीच समुंदर में आ जाते हैं| ग्रीनलैंड से बर्फ के यह छोटे-छोटे पहाड़ टूटकर इस रास्ते के द्वारा अटलांटिक ओशियन में पहुंचते हैं| इसमें अप्रैल के महीने में बहुत ज्यादा आइसबर्ग टूटकर आते हैं लेकिन अच्छी बात यह है कि इन आइसबर्ग को अटलांटिक ओशियन में पहुंचते-पहुंचते करीब 2 साल लग जाते हैं और अटलांटिक ओशियन तक पहुंचते-पहुंचते वो आइसबर्ग पिघलकर समुद्र के पानी में विलीन हो जाते हैं|
titanic in hindi
आइसबर्ग बहुत ज्यादा बड़ा होता है वही अटलांटिक ओशियन के बीच में आ पाता है| तो कैप्टन स्मिथ ने आइसबर्ग के खतरे को टालने के लिए इस रास्ते के बजाय इससे थोड़े दूर के रास्ते को चुना जहां पर आइसबर्ग मिलने के चांसेस बहुत कम हो| यह वह समय था जब जहाज में आइसबर्ग इत्यादि को देखने के लिए ज्यादा कोई खास टेक्नोलॉजी नहीं होती थी इस वजह से जहाज के सामने थोड़ी ऊंचाई पर यहां पर एक क्रोज नेस्ट होता है इसे लुकाट प भी बोला जाता | इस क्रोज नेस्ट में हमेशा एक से दो लोग दूरबीन लेकर बैठे रहते हैं जो दूर तक सामने देखते रहते हैं कि जहाज के सामने कोई अड़च तो नहीं है जिससे जहाज टकरा जाए और जब यह जहाज पानी में चलते तो यह सभी जहाज वायरलेस रेडियो के जरिए एक दूसरे को संदेश भेजते रहते कि कौन सी जगह पर क्या अड़च है| जब टाइटनिक आधे रास्ते पर पहुंच चुका था तब इसको कोरोनिया शिप से आइसबर्ग होने की पहली चेतावनी मिलती है| यह आइसबर्ग अभी टाइटनिक से एक दिन की दूरी पर था टाइटनिक पर सीनियर ऑफिसर जैक फिलिप्स इस वायरलेस रेडियो सिस्टम को ऑपरेट कर रहे थे और दूसरे जहाजों के साथ संपर्क में बने हुए थे |14 अप्रैल को दोपहर में टाइटनिक को आइसबर्ग के होने की दूसरी चेतावनी मिलती है वायरलेस ऑपरेटर जैक फिलिप्स इन चेतावनी हों के बारे में जहाज के कप्तान को आगाह करते हैं|
टाइटनिक के इस पहले सफर पर टाइटनिक का मालिक जोसेफ ब्रूस भी था| जब कैप्टन स्मिथ ने जहाज के मालिक ब्रूस स्मे को आइसबर्ग की मिलने वाली चेतावनी हों के बारे में बताया तो ब्रूस स्मे ने इन चेतावनी हों को नजर अंद अदाज कर दिया| क्योंकि उसका मानना था कि समुद्र में आइसबर्ग मिलना एक आम बात है और जिस जहाज में वह बैठे हैं वह एक मजबूत और कभी ना डूबने वाला जहाज है और ब्रूस इसमें नहीं चाहता था कि इन चेतावनी हों की वजह से जहाज की स्पीड कम हो और जहाज अपने निर्धारित समय से लेट पहुंचे| इसके बाद टाइटनिक को आइसबर्ग की पांच बार और चेतावनी यां मिलती हैं और टाइटनिक को जो आखिरी चेतावनी मिली व एसएस कैलिफोर्निया जहाज से मिलती है| रात हो चुकी थी और दुर्भाग्य से आज आसमान में चांद भी नहीं निकला था जिस वजह से विजिबिलिटी बहुत कम थी और क्रोज नेस्ट में बैठे लोगों के पास दूरबीन भी नहीं था जिससे वह दूर से ही सामने आने वाली अड़च को देख पाएं| टाइटनिक अपनी फुल स्पीड 40 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल रहा था और आइसबर्ग से टाइटनिक अभी 2 घंटे की दूरी पर था| घनघोर अंधेरे में समुद्र के पानी को तेजी से चीरते हुए टाइटनिक आगे बढ़ता ही चला जा रहा था| बिना इस बात की परवाह किए कि जिस रास्ते में अभी वह चल रहा है उसके सामने एक बहुत बड़ी ब बर्फ की चट्टान मौजूद है|
titanic in hindi
रात के 11:30 बज चुके थे और अब टाइटनिक आइसबर्ग से महज 6 किलोमीटर दूर था और जिस रफ्तार से टाइटनिक चल रहा था उस रफ्तार से यह अगले 10 मिनटों में आइसबर्ग के पास पहुंचने वाला था| टाइटनिक के क्रोज नेस्ट में दो बहादुर लोग फ्रेडरिक फ्लीट और रेजीनाल्ड ली ये दोनों कड़कड़ाती ठंडी और रात के काले अंधेरे में टकटकी लगाए जहाज के सामने आने वाली अड़च को देख रहे थे| इन दोनों के लिए परेशानी यह थी कि जहां पर यह बैठे थे उन्हें वहां पर ठंडी हवा का सामना करना पड़ रहा था जिस वजह से इनकी आंखों से आंसू निकल आते| इनके पास कोई दूरबीन भी नहीं था जिस वजह से यह ज्यादा दूर की चीजों को देख भी नहीं पा रहे थे| कम रोशनी में आंखों से ज्यादा दूर मौजूद चीजों को देख पाना संभव नहीं था| रात के 11:39 पर क्रोज नेस्ट में बैठे फ्रेडरिक फ्लीट को दिखाई देता है कि सामने एक आइसबर्ग है| उसने बिना देर किए जल्दी से तीन बार घंटी को बजाया और तुरंत ब्रिज पर मौजूद ऑफिसर्स को फोन करता है और बताता है कि सामने आइसबर्ग है जल्दी से जहाज को लेफ्ट साइड में मोड़ो| ब्रिज पर मौजूद फर्स्ट ऑफिसर विलियम ने जैसे ही इस चेतावनी को सुना उसने तुरंत एक्शन लेते हुए जहाज को रोकने के लिए फुल स्पीड में रिवर्स में इंजंस को चालू कर दिया और जहाज को तेजी से लेफ्ट साइड में मोड़ने लगा|
जहाज की रफ्तार इतनी ज्यादा थी कि इतने कम समय में रिवर्स इंजन चालू करने के बाद भी इसे रोका नहीं जा सकता था और जहाज इतना बड़ा था कि कम डिस्टेंस में एकदम इसको मोड़ा नहीं जा सकता था| काफी हद तक टाइटनिक के रास्ते को मोड़ दिया गया लेकिन फिर भी रात के 11:40 पर टाइटनिक का आगे का राइट वाला हिस्सा बर्फ की चट्टान से टकरा जाता है| यह टकराव इतनी जोर से हुआ कि जहाज पर मौजूद सभी यात्रियों को इसने हिलाकर रख दिया| दुर्भाग्य से टाइटनिक का डबल बॉटम हल किसी काम नहीं आया क्योंकि आइसबर्ग से यह इंपैक्ट जहाज के साइड में हुआ था जहां पर सिंगल लेयर ही लगी थी| जब कैप्टन स्मिथ ने नुकसान की जांच पड़ताल की और जहाज में में हुए नुकसान को देखा तो पता चला कि जहाज के छह कंपार्टमेंट्स डैमेज हो चुके हैं और उनमें तेजी से पानी भरता जा रहा है| यह देखकर कैप्टन स्मिथ शौक हो जाते हैं क्योंकि जहाज केवल चार कंपार्टमेंट्स के भरने तक ही तैर सकता था लेकिन छह कंपार्टमेंट्स में पानी भरने का मतलब था कि जिस जहाज को अभी तक अनसिंकेबल बोला जा रहा था वह अब डूब जाएगा|
टकराव को अब तक 20 मिनट गुजर चुके थे और रात के 12:00 बजे कैप्टन स्मिथ ने क्रू को डिस्ट्रेस सिग्नल भेजने के लिए कहा| ताकि आसपास मौजूद कोई जहाज उन्हें बचाने के लिए आ जाए और वायरलेस ऑपरेटर जैक फिलिप्स लगातार डिस्ट्रेस सिग्नल भेजने में जुट गए लेकिन दुर्भाग्यवश आसपास कोई भी जहाज ऐसा नहीं था जो टाइटनिक द्वारा भेजे जा रहे डिस्ट्रेस सिग्नल्स को पकड़ पाए| छह कंपार्टमेंट्स पानी से भर चुके थे और पानी अब डेक के ऊपर से बहने लगा| कैप्टन स्मिथ लाइफ बोट्स को समुंदर में उतारने का आदेश देते हैं और सभी लाइफ बोट्स को बाहर निकाला जाने लग| दुर्भाग्य वर्ष उस समय टाइटनिक पर केवल बीसी लाइफ बोट्स मौजूद थी और एक लाइफ बोट की क्षमता केवल 65 लोगों की ही थी 20 लाइफ बोट्स के द्वारा केवल लगभग 1200 लोगों को ही बचाया जा सकता था और जहाज पर 2200 से ज्यादा लोग मौजूद थे| हड़बड़ी में शुरुआत में जो लाइफ बोर्ड्स उतारी जा रही थी उनमें केवल 27 से 28 लोगों को ही भेजा जा रहा था और लाइफ बोर्ड्स को केवल आधा ही भरा जा रहा था| प्रोटोकॉल यह था कि औरतों और बच्चों को पहले लाइफ बोर्ड्स में भेजा जाएगा का जहाज पर अभी भी कुछ लोग ऐसे थे जो यह मान रहे थे कि यह जहाज कभी डूब ही नहीं सकता और वह एकदम रिलैक्स थे|
titanic in hindi
इधर जैक फिलिप्स लगातार डिस्ट्रेस सिग्नल्स भेजे जा रहे थे और सौभाग्य से इनका डिस्ट्रेस सिग्नल पास में मौजूद एक जहाज कार्पेथिया को मिलता है और 12:30 पर कार्पेथिया जहाज से संदेश आता है कि वह टाइटनिक पर मौजूद लोगों को बचाने आ रहे हैं| लेकिन बदकिस्मती यह थी कि कार्पेथिया जहाज अभी भी टाइटनिक से करीब 107 किमी दूर था और कार्पेथिया अपनी फुल स्पीड पर भी चलता तब भी कार्पेथिया को टाइटनिक तक पहुंचने में 4 घंटों का समय लगने वाला था |अब सवाल यह है कि क्या चार घंटों तक टाइटनिक सरवाइव कर पाएगा जैसे-जैसे टाइटनिक के आगे के हिस्से में पानी भरता जा रहा था वैसे-वैसे जहाज आगे की ओर झुकता जा रहा था और पानी में धंस चला जा रहा था| जब टाइटनिक का टिल्ट बढ़ने लगा तो लोगों में अफरातफरी मच गई अब सबको समझ आ चुका था कि टाइटनिक अब डूब जाएगा और सब लोग अपनी-अपनी जान बचाने के लिए लाइफ बोट्स में चढ़ने के लिए अपनी-अपनी जगह बनाने की कोशिश करने लगे| लाइफ बोट्स में फर्स्ट क्लास के लोगों को बचाने में ज्यादा प्रायोरिटी दी जा रही थी और 1 बज 50 पर जब जहाज से आखिरी लाइफ बोट को उतारा गया उसके बाद भी जहाज पर 1500 से ज्यादा लोग बचे थे| चारों ओर खौफ का माहौल था जो लोग तैर सकते थे वह समुद्र के पानी में छलांग लगा रहे थे लेकिन इस समय तो समुद्र भी बेरहम दिखा रहा था| समुद्र का पानी -2 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा था| इतने ठंडे पानी में कोई भी व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा 15 से 30 मिनट तक ही जिंदा रह सकता था|
कुछ लोगों ने तो मौत को स्वीकार कर लिया और वह मौत को गले लगाने के लिए तैयार थे| लेकिन इधर जहाज के क्रू मेंबर्स अभी भी मदद की आश में डिस्ट्रेस सिग्नल्स भेजे जा रहे थे आसमान में फ्लेयर्स चला रहे थे ताकि आसपास मौजूद किसी जहाज का ध्यान उनकी ओर जाए और वह उनको बचा लें लेकिन कोई भी जहाज उनको बचाने के लिए नहीं आता| टाइटनिक में पानी के भरने की रफ्तार बढ़ती जा रही थी और टाइटनिक बहुत तेजी से डूबने लगा| टाइटनिक का आगे का भाग पूरी तरह से पानी के अंदर घुस चुका था| और पिछला वाला हिस्सा पानी के ऊपर उठने लगा अब जहाज के कप्तान स्मिथ ने अपने क्रू को भी बोल दिया कि अपनी-अपनी जान बचाओ| लेकिन जैक फिलिप्स अभी भी अपनी जान की परवाह किए बगैर डिस्ट्रेस सिग्नल्स भेजने में जुटे हुए थे जब तक जहाज पर इलेक्ट्रिसिटी थी तब तक फिलिप्स उनकी मदद करने आ रही इकलौती शिप कार्पेथिया से संपर्क बनाए हुए थे| कैप्टन स्मिथ ने अपने जहाज को ना छोड़ने का फैसला किया जब जहाज का आगे का भाग पूरी तरह से पानी के अंदर घुस चुका था तो शॉर्ट सर्किट की वजह से जहाज पर अंधेरा छा गया| अटलांटिक ओशियन लोगों की चीख से गूंज रहा था| जहाज का पिछला भाग पूरी तरह से हवा में खड़ा था| और दबाव इतना ज्यादा बढ़ गया कि टाइटेनिक दो भागों में टूट गया और रात के 2:20 पर आरएमएस टाइटेनिक देखते ही देखते अटलांटिक महासागर की गोद में समा गया| कभी ना डूबने वाला जहाज महज 2 घंटे 40 मिनट में समुद्र की गहराई में चला गया| जो 1500 से ज्यादा लोग इस पर सवार थे उनमें से कुछ इसके साथ डूब गए और कुछ को समुद्र के ठंडे पानी ने मार डाला| कैप्टन स्मिथ अंत तक अपने जहाज पर ही डटे रहे| टाइटनिक के डूबने के करीब दो घंटों के बाद अगले दिन की सुबह में कार्पेथिया जहाज बचे हुए लोगों को रेस्क्यू करने के लिए पहुंचता है और केवल 706 लोग ही इस हादसे में जिंदा बचे थे| तीन दिनों के बाद 18 अप्रैल 1912 को रात के 9:30 बजे कार्पेथिया न्यूयॉर्क में पहुंचा|
titanic in hindi
जहां पर 40000 लोग तेज बारिश में कार्पेथिया का इंतजार कर रहे थे इस हादसे के बाद कई ऐसे सवाल खड़े हुए जिनका जवाब आज भी लोग खोज रहे हैं लेकिन जब इसकी इन्वेस्टिगेशन की गई तो एक चौकाने वाली बात सामने आई| जब टाइटनिक डूबा था तब उस पर मौजूद हर एक व्यक्ति को बचाया जा सकता था क्योंकि टाइटनिक से महज 37 किमी दूर एक और जहाज मौजूद था जो समय पर आकर मदद कर सकता था| यह वही एसएस कैलिफोर्निया जहाज था जिसने आखिरी बार टाइटनिक को आइसबर्ग की चेतावनी भेजी थी लेकिन ऐसी क्या वजह थी कि एसएस कैलिफोर्निया जहाज टाइटनिक की मदद करने के लिए नहीं गया| जबकि उन्हें होराइजन में आसमान में छोड़ी जाने वाली फ्लेयर्स भी दिखाई दे रही थी| तो इन्वेस्टिगेशन में पता चला कि समुद्र में आइसबर्ग के खतरों को देखते हुए कैलिफोर्निया जहाज ने रात में आगे ना बढ़ने का फैसला किया और उन्होंने रात में अपने वायरलेस रेडियो को भी बंद कर दिया था जिससे उनको टाइटनिक का कोई भी डिस्ट्रेस सिग्नल रिसीव ही नहीं हो पाया|
जब एसएस कैलिफोर्निया के क्रू ने टाइटनिक से उड़ने वाले रॉकेट्स और फ्लेयर्स को देखा तो उन्होंने कैलिफोर्निया के कप्तान स्टैनले लॉर्ड को इस बात की जानकारी भी दी| स्टनली लॉर्ड ने अपने क्रू को मोर्स लैंप से टाइटनिक को संकेत भेजने को कहा और एसएस कैलिफोर्निया का क्रू मोर्स लैंप से टाइटनिक को सिग्नल भेजता रहा| लेकिन शायद टाइटनिक पर इतनी हड़बड़ी मची हुई थी कि किसी ने एसएस कैलिफोर्निया से आ रहे मोर्स सिग्नल को नहीं देखा| दरअसल उस समय इस तरह की लैंप से डैसे ज और डॉट्स के द्वारा एक दूसरे जहाज से संपर्क करने के लिए मोर्स कोड का इस्तेमाल किया जाता था| काश कैलिफोर्निया जहाज का रेडियो ऑन होता तो शायद उस दुर्घटना में इतनी जानें ना जाती| टाइटनिक के इस हादसे को हुए साल दर साल गुजरती जा रही थी लेकिन एक सवाल जो लोगों को परेशान किए जा रहा था कि आखिर वह जहाज जिसे कभी ना डूबने वाला जहाज बोला जाता था वह कैसे डूब गया| इस सवाल का जवाब तभी मिल सकता था जब टाइटनिक जहाज का मलबा मिले |खूब सारी खोजबीन की लेकिन अटला लांटिक महासागर ने टाइटनिक को अपनी गोद में ऐसे छुपा रखा था कि उसका मलबा किसी को मिल ही नहीं रहा था|
titanic in hindi
आरएमएस टाइटनिक के मलबे को समुद्र की गहराइयों में ढूंढते ढूंढते 70 सालों से भी ज्यादा का समय गुजर चुका था तब जाकर सितंबर 1985 में पहली बार टाइटनिक के मलबे की झलक देखने को मिली| अमेरिकन ओशिनो ग्राफर रॉबर्ट बेलार्ड वो व्यक्ति थे जिन्होंने टाइटनिक के मलबे को खोज निकाला था और जब से टाइटनिक का मलबा मिला है तब से लेकर आज तक इस पर कई बार खोज भी होती रही है| लेकिन टाइटनिक के मलब पर की गई शोधों ने इस बात की गुथी को सुलझा दिया कि यह अनसिंकेबल जहाज आखिर क्यों और कैसे डूबा| ओसियानो ग्राफर्स के होश उड़ गए जब उन्होंने टाइटनिक के मलबे को देखा क्योंकि टाइटनिक समुद्र के बॉटम में दो हिस्सों में टूटा पड़ा है जहाज का आगे का हिस्सा बहुत ही अच्छी कंडीशन में है लेकिन पिछला वाला हिस्सा इतनी बुरी कंडीशन में है कि उसको देखकर ऐसा लगता है कि यह टाइटनिक का दूसरा भाग है ही नहीं और पिछला वाला हिस्सा फ्रंट वाले हिस्से से करीब 2000 फीट की दूरी पर है|
काफी खोजबीन के बाद पता चला कि जब टाइटनिक को बनाया गया था तब इसमें टाइटनिक के हल को मजबूती देने के लिए जो रिवेट्स लगाई गई थी वो स्टील की नहीं बल्कि कास्ट आयरन की थी यहां पर कंपनी ने जहाज को बनाते हुए कॉस्ट कटिंग करने की कोशिश की अब चूंकि कास्ट आयरन स्टील से नरम होता है इस वजह से जिस जगह पर आइसबर्ग टाइटनिक की बॉडी से टकराया उस जगह के रिवेट्स प्रेशर पढने की वजह से खुल गए और आपस में जुड़ी प्लेट्स अपनी जगह से खिसक गई| जहां से पानी को अंदर घुसने का रास्ता मिल गया| आज टाइटनिक का मलबा समुद्र की गहराइयों में वातावरण से लड़ाई लड़ते हुए अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है और ऐसा माना जाता है कि आने वाले कुछ सालों में समुंदर से टाइटनिक के ये निशान भी गायब हो जाएंगे| टाइटनिक की यह घटना सच में एक दिल दहला देने वाली घटना थी|