Somvar Vrat Katha/सोमवार व्रत कथा

Somvar Vrat Katha/सोमवार व्रत कथा

Somvar Vrat Katha | सोमवार व्रत कथा |जय भोलेनाथ भक्त जनों यह कथा अत्यंत ही फलदाई है क्योंकि इस कथा को सुनने मात्र से ही अकाल मृत्यु टल जाती है और इस कथा को सुनकर आपका रोम रोम शिवमय हो जाएगा| कथाओं में बहुत ही पवित्र ता बहुत ही शक्ति होती है इसलिए कथा को बीच में अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए और इस प्रकार महाकाल का अपमान भी नहीं करना चाहिए|

Somvar Vrat Katha/सोमवार व्रत कथा

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सोमवार व्रत कथा/ Somvar Vrat Katha … एक नगर में एक साहूकार रहता था| उस साहुकार को धन की कोई कमी नहीं थी पर उसे कोई संतान नहीं थी जिस कारण वह बेहद दुखी था| पुत्र प्राप्ति के लिए वह भगवान शिव की पूजा करता, हर सोमवार व्रत रखता और पूरी श्रद्धा के साथ मंदिर में जाकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा किया करता| उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गई और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह करने लगी| देवी पार्वती की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा हे पार्वती इस संसार में जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है| लेकिन पार्वती जी ने सहकार की भक्ति का मान रखने के लिए और उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई|

माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल 12 वर्ष होगी| इस वार्ता को साहूकार सुन रहा था उसने तो पहले की तरह ही भगवान शिव की पूजा करता रहा| कुछ समय के बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ|बालक को पढ़ने के लिए 11 वर्ष का हुआ तो काशी भेज दिया गया| पुत्र के मामा को बुलाकर साहूकार ने उन्हें बहुत सारा धन दिया और कहा कि विद्या प्राप्त कराने के लिए तुम इस बालक को काशी लेकर जाओ| रास्ते में यज्ञ कराते हुए जाना जहां भी यज्ञ कराओ वहां पर ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देते हुए ही आगे जाना|Somvar Vrat Katha/सोमवार व्रत कथा

दोनों मामा भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देते देते काशी की ओर चल पड़े| रास्ते में एक नगर पड़ा जहां उस दिन नगर के राजा की कन्या का विवाह था लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह राजकुमार एक आंख से काना था| राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची| साहूकार के पुत्र को देखकर राजा के मन में एक विचार आया राजकुमारी का इस लड़के विवाह करा दूं| विवाह के बाद इसको धन देकर उसे यहा से भाग दू और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊ|

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लड़के को इस प्रकार दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह करा दिया गया| लेकिन साहूकार का पुत्र बहुत ईमानदार था उसे यह बात बिल्कुल ठीक नहीं लगी| उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिख दिया कि राजकुमारी तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है| मैं तो काशी विद्या पढ़ने जा रहा हूं| जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी हुई बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई| राजा ने बात जानकर अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई|

दूसरी ओर साहूकार का बेटा और उसका मामा काशी पहुंच गए और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया| जिस दिन लड़के की आयु 12 वर्ष हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया| लड़के ने अपने मामा से कहा कि आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है सुनकर मामा ने कहा तो तुम अंदर जाकर सो जाओ| शिवजी के वरदान अनुसार कुछ ही क्षणों में उस बालक के प्राण निकल गए| मृत भांजी को देखकर उसके मामा ने विलाप शुरू कर दिया| संयोग वश उसी समय शिव जी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे| पार्वती जी ने भगवान शिव से कहा कि प्राणनाथ मुझे इसके रोने का स्वर सहन नहीं हो रहा आप कृपया इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर कीजिए|Somvar Vrat Katha/सोमवार व्रत कथा

जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि देवी यह तो उसी साहूकार का पुत्र है जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है| सुनकर देवी पार्वती के मन में ममता जाग उठी, देवी पार्वती कहने लगी हे महादेव आप इस बालक को और आयु देने की कृपा कीजिए नहीं तो इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प तड़प कर मर जाएंगे| माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दे दिया| शिव जी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया| उसके बाद मामा और लडका नगर कि और चले दोनों चलते-चलते उसी नगर में जा पहुंचे जहां कभी उसका विवाह हुआ था|

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उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खूब आवभगत की और अपनी पुत्री को धूमधाम से विदा कर दिया| इधर भूखे प्यासे रहकर साहूकार और उसकी पत्नी अपने बेटे के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे| उन्होंने निश्चय कर रखा था कि अगर उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वे भी प्राण त्याग देंगे| परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वे बेहद प्रसन्न हुए| उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर उसे आशीर्वाद दिया|

कालों के भी काल भगवान शिव को महाकाल भी कहा जाता है और भगवान शिव की यह कथा आप सभी के मन में भगवान शिव के प्रति भक्ति को और भी बढ़ा देगी|एक वक्त कि बात हें उज्जैनी में राजा चंद्रसेन का राज था| राजा चंद्रसेन शिवजी का सच्च्या भक्त था| शिवभक्तो में मणिभद्र नाम का उसका मित्र था|कुछ ने प्रत्यक्ष तः मांग की, कुछ ने विनती की, क्योंकि वह मणि राजा को अत्यंत प्रे थी इसलिए राजा ने किसी के भी मांगने पर वह मणि नहीं दी|

अंततः उन पर मणि आकांक्षी राजाओं ने आक्रमण कर दिया| शिव भक्त चंद्रसेन भगवान महाकाल की शरण में जाकर ध्यान मग्न हो गया| जब चंद्रसेन समाधि था तब वहां कोई गोपी अपने छोटे बालक को साथ लेकर दर्शन करने के लिए आई| उस बालक की उम्र थी 5 वर्ष और वह गोपी विधवा थी| राजा चंद्रसेन को ध्यान मगन देखकर वह बालक भी भगवान शिव की पूजा करने के लिए प्रेरित हुआ| वह कहीं से एक पत्थर ले आया और अपने घर के एकांत स्थल में बैठकर उस पत्थर को शिवलिंग मानकर पूजा करने लगा| कुछ देर के बाद उसकी माता ने भोजन करने के लिए बुलाया लेकिन वह बालक नहीं गया| मां ने फिर बुलाया फिर भी वह नहीं गया|

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आखिरकार माता स्वयं बुलाने आई तो उसने देखा कि उसका बालक तो ध्यान मग्न बैठा है और उसकी आवाज सुन ही नहीं रहा| तब क्रोधित होकर माता ने उस बालक को पीटना शुरू कर दिया और सारी पूजन सामग्री उठाकर फेंक दी| ध्यान से मुक्त होकर बालक जब चेतना में आया उसे होश आया तब उसने अपनी पूजा को नष्ट देखा तो उसे बहुत दुख हुआ| अचानक उसकी व्यथा की गहराई से चमत्कार हुआ और भगवान शिव की कृपा से वहां एक सुंदर मंदिर बन गया| मंदिर के मध्य में दिव्य शिवलिंग विराजमान था और बालक द्वारा सज्जित पूजा भी यथावत थी| उसकी माता की तंद्रा भंग हुई तो वह भी हैरान रह गई उधर राजा चंद्रसेन को जब शिवजी की अनन्य कृपा से घटित इस घटना की जानकारी मिली तो वह भी उस शिव भक्त बालक से मिलने पहुंचा|

सबने मिलकर भगवान महाकाल का पूजन अर्चन किया| तभी वहां राम भक्त श्री हनुमान जी अवतरित हुए और उन्होंने गोप बालक को गोद में उठाकर सभी राजाओं और उपस्थित जन समुदाय को संबोधित किया| कहा कि शिवजी के अतिरिक्त प्राणियों की कोई गति नहीं है इस गोप बालक ने कहीं किसी जगह पर शिव जी की पूजा को मात्र देखकर ही बिना किसी मंत्र अथवा विधि विधान के शिव आराधना कर शिवत्व सर्व विध मंगल को प्राप्त किया है| यह शिव जी का परम श्रेष्ठ भक्त समस्त गोप जनों की कीर्ति बढ़ाने वाला है इस लोक में यह अखिल अनंत सुखों को प्राप्त करेगा और मृत्यु प्रांत मोक्ष को प्राप्त होगा| इसी के वंश का आठवां पुरुष महायशस्वी नंद होगा जिसके पुत्र के रूप में स्वयं नारायण श्री कृष्ण नाम से प्रतिष्ठित होंगे| कहा जाता है भगवान महाकाल तब से ही उज्जैनी में स्वयं विराजमान है|

हमारे प्राचीन ग्रंथों में महाकाल की असी महिमा का वर्णन मिलता है| महाकाल साक्षात राजाधिराज देवता माने गए हैं| जो भक्त पूर्ण श्रद्धा भक्ति भाव से सोमवार के दिन भगवान महाकाल के दर्शन करता है, या इस कथा को सुनता अथवा पढ़ता है, महाकाल की कृपा से उनकी अकाल मृत्यु टल जाती है| उनके जीवन के सभी दुख दूर हो जाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और अंत में ऐसे भक्त भगवान शिव के धाम को चले जाते हैं| भक्त जनों यह थी आज की कथा उम्मीद है आप सभी को पसंद आई होगी|

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