satyanarayan katha

satyanarayan katha/सत्यनारायण भगवान की कथा

satyanarayan katha/सत्यनारायण भगवान की कथा के बारे में पढने वाले हें| सत्यनारायण भगवान की जय… एक बार नैमिषारण्य में तपस्या करते हुए शोधोंका ऋषी ओ ने सूत जी से पूछा कि जिसके करने से मनुष्य मनोवांछित फल प्राप्त कर सकता है ऐसा व्रत कौनसा है| सूतजी ने कहा कि एक बार श्री नारद जी ने भी श्री विष्णु भगवान से ऐसा ही प्रश्न किया था, तब श्री विष्णु भगवान ने उनके सामने जिस वक्त का वर्णन किया था वहीं मैं आपसे कहता हूं|

satyanarayan katha/सत्यनारायण भगवान की कथा

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प्राचीन काल में काशीपुरी में एक अति निर्धन और दरिद्र ब्राह्मण रहता था| वह भूख-प्यास से व्याकुल हो भटकता फिरता था| एक दिन उसकी दशा से व्यथित होकर भगवान विष्णु ने बूढ़े ब्राह्मण के रूप में प्रकट होकर उस ब्राह्मण को सत्यनारायण व्रत का विस्तारपूर्वक विधान बतलाया और अंतर्धान हो गए| ब्राह्मण अपने मन ने श्री सत्यनारायण व्रत करने का निश्चय करके घर लौट आया और इसी चिंता में इसे रात भर नींद नहीं आई| सवेरा होते ही वह सत्यनारायण भगवान के व्रत का संकल्प करके भिक्षा मांगने के लिए चल दिया|

उस दिन उसे थोड़े ही परिश्रम में प्रतिबंधित में प्राप्त हुआ| सायंकाल में घर पहुंच कर उसने बड़ी श्रद्धा के साथ श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत विधिपूर्वक पूजन किया| भगवान सत्यदेव की कृपा से यह थोड़े ही दिनों में धनवान हो गया| वह जब तक जीवित रहे तब तक महीने-महीने श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत और पूजन करता है| वह धेह छोडने के बाद बिष्णुलोक को प्राप्त हुआ| सुतजी उन्हें बोले कि एक दिन वह ब्राह्मण अपने बंधु-बांधवों के साथ बैठे ध्यान मग्न हो श्री सती की कथा सुन रहे थे| तभी भूख-प्यास से व्याकुल एक लकड़हारा वहां जा पहुंचा| वह भी प्यास से व्याकुल कथा सुनने के लिए बैठ गया था| satyanarayan katha/सत्यनारायण भगवान की कथा

कथा कि समाप्ती पर उसने प्रसाद ग्रहण किया और जल पिया फिर उसने ब्राह्मण से इस कथा के बारे में पूछा और उसने बताया कि यह सत्यनारायण का व्रत हें जो मनोवांछित फल देने वाला हें| पहिले में बहुत दरिद्र था इस व्रत के प्रभाव से मुझे यह सब वैभव प्राप्त हुआ हें| यह सुनकर लाकडहारा बहुत खुश हुआ और मन ही मन श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत और पूजन का निश्चय करता हुआ लकड़ी बेचने के लिए बाजार की ओर चल पड़ा| उस दिन लकड़हारे को लकड़ी का दुगना दाम मिला| उन्ही पैसों से उसने केले, दूध-दही आदि सभी पूजन कि सामग्री खरीद ली और घर चला गया| घर पहुंच कर उसने अपने परिवार और पड़ोसियों को बुला कर विधिपूर्वक सत्यनारायण भगवान का पूजन किया|

सत्यनारायण की कृपा से वह थोड़े ही दिनों में संपन्न हो गया|सुतजी ने फिर कहा… प्राचीन काल में उनकामक नाम का एक राजा था| वह उसकी राणीया दोनों बड़े ही धनवान थे|एक समय राजा रानी भद्रशीला नदी के किनारे श्री सत्यनारायण भगवान की कथा सुन रहे थे कि एक बनिया भी वाह आ पहुच्या उसने रत्नों से भरी आपनी नौका को किनारे लगा दिया और स्वयं की पूजा की जगह बैठ गया| वहा का चमत्कार देख उसने राजा को इसके बारे में पूछा, राजा ने बताया कि हम विष्णु भगवान का पूजन कर रहे हैं यह व्रत सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला हें| राजा के वचन सुन और बनिया अपने घर चला गया| घर पहुंच कर उसने अपनी से व्रत के बारे में बताया और संकल्प किया कि मैं भी संतान होने पर यह व्रत करूंगा|

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उसकी पत्नी का नाम लीलावती था| सत्यदेव की कृपा से यह कुछ दिनों गर्भवती हो गई| ९ महीने पूरे होने पर उसने एक कन्या को जन्म दिया नाम कलावती रखा गया है| चंद्रमा की कलाओं के समान नीति बढ़ने लगी| एक दिन लीलावती ने अपने पति को सत्यदेव का व्रत करने की बात याद दिलाएं| उसने कहा में यह व्रत कन्या के विवाह के समय करुंगा| यह अपने बनिया आपने कारोबार में लग गया| जब वह कन्या विवाह योग्य हुई तो उसने करवाकर कंचनपूर नगर के एक सुंदर सुशील और गुणवान बालक के साथ विवाह कर दिया| फिर भी बने सत्यनारायण भगवान का व्रत नहीं किया| इससे श्री सत्यनारायण भगवान अप्रसन्न हो गए|

कुछः दिनो बाद बनिया अपने दामाद को साथ लेकर समुद्र के किनारे रघु चौकपुर में व्यापार करने लगा| एक राजा के पीछे खजाने से चोरों ने बहुत-सा धन चुरा लिया| राजा के सिपाही चोरों का पीछा कर रहे थे| चोरों ने जब देखा कि सिपाही से बचना कठिन है तो उन्होंने राजकोट से चुराया हुआ धन एक जगह फेक दिया और स्वयं भाग गए| वहीं बनिये का डेरा था|सिपाही चोरों को धुडतें हुवे उसी जगह पहुंच गए और उन्होंने दोनों बनिओ को चोर समझकर पकड़ लिया| राजा ने दोनों को जेल में डालने का आदेश दिया और उनका धन कोष में जमा कर दिया| सत्यदेव के कोप से लीलावती और कलावती भी बड़े दुख जीवन व्यतीत कर रही थी| satyanarayan katha/सत्यनारायण भगवान की कथा

एक दिन कलावती भूख-प्यास से व्याकुल होकर एक मंदिर में चली गई| वहां पर श्री सत्यनारायण भगवान की कथा हो रही थी| वही बैठकर उसने कथा सुनी प्रसाद लेकर रात होने पर घर पहुंची| माता के देरी का कारण पूछने पर उसने यह सब आप कह दी| उसकी बात सुनकर लीलावती को अपने पति भुली बात याद आ गई और उसने श्री सत्यदेव के व्रत का निश्चय किया| उसने अपने बंधु बांधवों को बुलाकर श्रद्धापूर्वक कथा सुनी और विनम्र भाव से आर्थ होकर प्रार्थना की कि मेरे पति ने संकल्प करके जो आपका व्रत नहीं किया है उसी से आप अप्रसन्न हुए थे अब कृपा करके उनका अपराध क्षमा करो| लीलावती की प्रार्थना से श्री सत्यदेव प्रसन्न हो गए| उसी रात में श्री सत्यदेव ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि प्रातः काल होतेही दोनों बनिओ को जेल से छोड़ दो और उनका सभी धन उनको दे दो| वरना पुत्र समेत तुम्हारा राज्य नष्ट हो जायेगा|

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इतना कहकर श्री सत्यदेव अंतर्धान हो गए| राजा ने सवेरा होते ही दोनों बनियो को मुक्त का आदेश दे दिया और साथ ही उनका धन उन्हें लौटा दिया और बहुत सम्मान पूर्वक उन्हें विदा किया| दोनों बनिये आनंदीद होकर अपनी नौका लेकर अपने घर चल पड़े| तभी श्री सत्यनारायण भगवान संन्यासी के वेश में उनके समीप आए और बोले कि तुम्हारी नौकरी में क्या है…बनिया ने हसते हुये उत्तर दिया नौका में तो फुल पत्तों के सिवाय कुछ भी नहीं हें| यह सुनकर सत्य देव ने कहा तुम्हारा वचन सत्य हो| स्वामी के चले जाने पर बनिये ने देखा कि नौका तो हलकी हो गई हें| नौका में हर जगह फूल-पत्ते ही थे उह देखकर बनिया बेहोश हो गया| दुसरे बनिये ने कहा इस प्रकार सोचने से काम नहीं चलेगा हम ठंडे स्वामी के पास जाना चाहिए यह उन्हीं की करामात से हुवा हें| उनके पास चलकर प्रार्थना करते हें तो फिर से वैसा ही हो जायेगा|

दोनो बनिया स्वामी के पास पहुंचा और उनके चरणों में गिर पड़ा और बार-बार उनसे क्षमा मांगने लगा| उनकी प्रार्थना से भगवान ने प्रसन्न होकर उसे इच्छित वरदान दिया और स्वयं उसी जगह से अंतर्ध्यान हो गए|बनियो ने नाव में जाकर देखा तो वह धन रत्नों से भरपूर थी तब उन्होंने श्री सत्यदेव भगवान का पूजन किया और कथा सुनी|फिर वह घर की ओर चल दिए| उनके आणे का समाचर लीलावती तक पहुच्या | लीलावती भगवान की कथा सुन रही थी| उसने अपनी पुत्री कमलावती से कहा कि तुम्हारे पति और पिता गए हैं मैं उनके स्वागत के लिए चलती हु तुम भी प्रसाद नदी तट पर पहुंना|

कलावती प्रसन्नता में इतनी खो गई कि ओ प्रसाद लेना हि भूल गई और तुरंत ही नदी के तट पर पहुची| उसके पति समेत नौका जल में डूब गई| यह देख आह आकार करके छाती पीटने लगा| लीलावती भी रमापति विलाप करने लगी| कलावती प्रसाद का अनादर करते हुवे अपने पति से मिलने आई हें अगर वह प्रसाद लेकर नदी तट पर आयेगी तो उसका पती उसे जीवित दिखेगा| कलावती उसी समय घर जाकर प्रसाद के साथ नदी पर पाहुंची तो देखा कि उसका पती जीवित हें|यह देखकर बनिया भी प्रसन्न हो गया| वह जब तक जीवित राहा तब तक श्री सत्यदेव भगवान का व्रत करता राहा| satyanarayan katha/सत्यनारायण भगवान की कथा ना भूलें आप सभी का हार्दिक धन्यवाद हरि बोल हरि बोल हरि बोल हरि बोल राम बोल राम बोल राम राम

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