sakat chauth vrat katha

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sakat chauth vrat katha एक गांव में रमेश अपनी पत्नी व 5 साल के बेटे के साथ रहता था| रमेश मजदूरी की तलाश में निकल जाता और गांव के चौराहे पर जाकर बैठ जाता| यहा उसे कभी काम मिलता कभी-कभी वह दोपहर तक वापस आ जाता था| इसी प्रकार से लोग अपना गुजर-बसर कर रहे थे| रमेश की पत्नी शांति घर का काम करती थी| उस समय रमेश को कम मिल रहा था जिसके कारण घर में तंगी रहती थी इसी बीच माघ मास में चतुर्थी का व्रत बड़ा|

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एक और कथा

अहोई अष्टमी व्रत कथा

शांति ने पूरे दिन व्रत रखें पर उसे शाम की चिंता हो रही थी कि वह शाम को गणेश जी का भोग लगा ने के लिये तिल के लड्डू कैसे बनाएगी| ओ गणेश जी को तिल के लड्डू और पकवान का भोग लगाना चाहती थी| रमेश नाम पर गया| शांति गणेश जी के सामने प्रार्थना कर रही थी… हें गणपती जी आज उन्हें अवश्य काम मिल जाए| जिससे मैं अपना व्रत पूरा कर सकूं और आपको भोग लगा सकूं| सारा दिन बीत गया शाम को घर आया, तो शांति ने पूछा आपको काम मिला तब रमेश ने कहा आज तो काम नहीं मिला| तब शांति को बड़ी चिंता होने लगी|

घर में खाने के लिए कुछ नहीं था| रमेश को घर का ध्यान रखने के लिए कह कर बाजार गई, उसने दुकानदार से खाने का उधार मांगा पर उसने मना कर दिया| वापस लौटते समय सब्जी वाला सब्जी बेच रहा था शांति के पास कुछ पैसे थे उन पैसों से खरीद लिया और घर चली आई| शांति गणेश जी की पूजा की और को लेकर उसकी पिंडी गणेश जी के सामने रख दी| हाथ जोड़कर उसने गणेश जी से कहा… हे गणपति जी आज आपको इसी वक्त वे से भोग लगा पा रही हुं.. हालात आपके सामने हैं आज आपको इसी से संतोष करना पड़ेगा|sakat chauth vrat katha

रात को जब सभी सो रहे थे तब उनकी झोपड़ी के दरवाज़े को किसी ने खटखटाया| शांति ने दरवाजा खोला तो देखा एक छोटा सा लड़का खड़ा है और वह शांति से कहने लगा माय मुझे बहुत भूख लग रही है कुछ खाने को और रात में रुकने के लिए जगह दे दो, मैं सुबह चला जाऊंगा, बाहर बहुत सर्दी है, मेरा घर काफी दूर है| शांति उसे अंदर ले आई और कहा बेटा खाने के लिए तो कुछ नहीं हें| हम तो खुद ही भूखे सो रहे हैं| तुम यहां सो सकते हो| मैं तुम्हारे लिए बिस्तर लगा देती| पर उस बालक ने मुस्कुराते हुए कहा… माई आप तो कह रही हो कुछ खाने को नहीं हें पर यहां तो बथुए की पिंडी रखी हें| शांति ने कहा हां यह तो मैंने गणेश जी को भोग लगाया था अगर तुम्हें भूख लग रही है तो तुम यह खा लो|यह केहेकर शांति ने बथुए कि पेंडी उस बालक को दे दी|उस बालक ने वह खाली और वह सो गया| सुबह जब आंख खुली तो उसने देखा जा चुका था| उसने उठकर सफाई शुरू की|sakat chauth vrat katha

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एक और कथा

सोमवार व्रत कथा

उसने बिस्तर समेटे जिसमें वह सो रहा था तो उसे तकिये के नीचे एक सोने का सिक्का मिला उसने रमेश को यह बात बताई तब रमेश ने कहा…यह सिक्का उस बालक का होगा, भूल गया होगा, इसे संभाल कर रख दो वह वापस आएगा तब दे देना| यह कह कर रमेश काम की तलाश में निकल गया| उसी रात को जब शांति सो रही थी तो सपने में गणेशजी ने उसे दर्शन दिए और कहा माई मैं ही वह बालक हूं जो तुम्हारे घर आया था, तुमने खुद भूखे होते हुए भी, मेरी सेवा कि, यह सोने का सिक्का तुम्हारा है इसे उसी मटकी में रखा रहने देना जिसमें तुमने इसे रखा है| यह मटकी हमेशा धन से भरी रहेगी| आज से में हर सकट चौथ पर तुम्हारे यहां आऊंगा|

मेरे भोग के लिए प्रशाद बना कर रखना, यह कहकर गणेश जी अंतर्ध्यान हो गये| इसके बाद रमेश व शांति अमीर हो गए| वह कभी खाली नहीं होती थी| उन्हें जितनी जरूरत होती थी| वह धन निकाल लेते थे और वह मटकी फिर भर जाती थी| कुछ समय बाद रमेश ने अपना कारोबार शुरू कर लिया|हें गणेश जी महाराज जैसे शांति के घर आकर भोग लगाया उसी प्रकार सकट चौथ का व्रत रखने वाले सभी भक्तों को इसी प्रकार दर्शन देणा| गणपति महाराज की जय…..sakat chauth vrat katha

महाराष्ट्र के एक गांव में शकुबाई नाम के एक औरत थी| वह गणपति जी कि दिन-रात किया करती थी| उसका एक बेटा रोहन जो कि अभी छोटा था| शकुबाई के पति का स्वर्गवास हो चुका था| वे लोगों के घरों में काम करके घर का खर्च चलाती थी| शकुबाई को अपने बेटे से बहुत उम्मीद थी| वे अपने बेटे को बड़ा आदमी बनाना चाहती थी| उसे पढ़ाने के लिए वह दिन-रात कड़ी मेहनत करती| साथ ही विघ्न हरता से विनती करती थी कि उसके बेटे को बड़ा आदमी बना दे| गणेश चतुर्थी के दिन व्रत रखती, उस दिन काम से छुट्टी लेकर पूरा दिन गणेश जी के मंदिर में सेवा करती| धीरे-धीरे उसका बेटा बड़ा हो गया और गणेश जी की कृपा से उसकी नौकरी भी लग गई| शकुबाई ने उसकी शादी कर दी| बेटे के कहने पर शकूर भाई ने घरों में काम करना बंद कर दिया| आप घर पर रहती और गणेश जी की सेवा में लगी रहती| में भगवान को भोग लगाने के बाद ही खाना खाती थी| तो यही नियम उसका बेटा और बहू दोनों मानते थे| पहले गणपति जी का प्रसाद बनता, उनकी पूजा होती, उन्हें भोग लगाया जाता, उसके बाद वह सभी नाश्ता करते थे|

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एक और अनोखा इतिहास

रावण का इतिहास

गणेश जी की कृपा से वे काफी अमीर होते जा रहे थे| लेकिन शकुबाई की बहू और बेटा अब काफी बदल चुके थे| वह पूजा-पाठ नहीं करते थे| साथ ही भोग लगने से पहले ही कुछ ना कुछ खा लेते थे |शकुबाई ने उन्हें बहुत समझाया पर वह नहीं माने| शकुबाई ने गणेश जी से माफी मांगी और कहा हे गणपति जी मेरे बच्चों को माफ कर देना| एक दिन शकुबाई सुबह गणेश जी की पूजा कर रही थी जब उसने आरती शुरू की तो उसके बेटे ने गुस्से में कहा| मां तुम क्या सुबह-सुबह शो करती रहती हो| आरती और घंटी की आवाज़ से हमारी नींद खराब हो जाती है, आज से इस घर में पूजा नहीं होगी|शकुबाई को बहुत गुस्सा आया| उसने बेटे से कहा गणेश जी की कृपा से तू इतना बड़ा इंसान बना है, आज उन्हें ही भूल गया| इस बात को सुनकर बेटे ने शकुबाई से कहा.. मैं जो कुछ भी बना हूं अपनी मेहनत से बना हो और आज से अगर आपको पूजा करनी है तो मंदिर जाकर किया करो|

शकुबाई गणेश जी के सामने रोती रही| अगले दिन से वह मंदिर जाने लगी| धीरे-धीरे समय बीतता गया| अब शकुबाई ज्यादा समय मंदिर में ही रहती थी| उसके बहू-बेटे उससे बात भी नहीं करते थे और छोटी-छोटी बातों पर उससे लड़ाई करते थे| एक दिन उसे मंदिर में एक छोटा सा बच्चा मिला वे शकुबाई के पास आया बहुत कहने लगा दादी मुझे प्रसाद दो.. तब शकुबाई ने कहा… बेटा मेरे पास तो कुछ नहीं है| उस बच्चे ने कहा मुझे खीर खानी है तब शकुबाई ने कहा… तुम मेरे घर चलो मैं तुम्हें खीर बनाकर खिला दूंगी| वह बच्चा शकुबाई के साथ घर आ गया| घर आकर शकुबाई ने खीर बनाई| जब बच्चा खाने बैठा था तभी उसके बहु बेटा घर पर आ गए| उन्होंने शकुबाई बहुत डांटा और बच्चे से खीर छीन ली| दोनों ने उस बच्चे को घर से बाहर निकाल दिया|

शकुबाई को बहुत दुख हुआ, वे रोते रोते सो गई| रात को सपने में उसे गणेश की ने दर्शन दिए और कहा माई मैं तो तुम्हारे घर खीर खाने आया था पर तुम्हारी बहू और बेटे ने मुझे भगा दिया और मैं भूखा रह गया यह कहकर गणेश और अंतर्ध्यान हो गये| सुबह शकुबाई ने यह बात अपने बेटे को पता ही पर उसने ध्यान नहीं दिया और अपने काम पर चला गया| जब एक काम पर पहुंचा तो उसके मालिक ने उसे काम से निकाल दिया और कहा हमने तुम्हारी जगह किसी और को काम पर रख लिया है तुम कहीं और काम देख लो| शकुबाई मंदिर गई हुई थी उसके जाने के बाद उसकी बहू सीढ़ियों से गिर गई उसके सर में चोट लगने से वह बेहोश हो गई| जब शकूर भाई का लड़का घर पहुंचा तो देखा उसकी पत्नी बेहोश पड़ी है| वह घबरा गया कुछ देर बाद उसे होश आया तो उसने बताया कि जब वह बेहोश तो उसे गणेश जी दिखे थे|

वह बहुत गुस्से में थे और गुस्से में ही घर से बाहर चले गए| दोनों को समझ आ गया कि मां के साथ कि भगवान का भी अपमान करने से यह कष्ट हमें भोगने पड़ रहे हैं| वह दोनों दौड़े-दौड़े मंदिर गए और मां कुछ सब बातें बताई| तब शकुबाई ने कहा गणेश की से माफी मांगो और दो दिन बाद गणेश चतुर्थी है उस दिन गणेश जी का व्रत करना और पहले की तरह उन्हें भोग लगाकर ही भोजन करना| शकुबाई व उसके बहू-बेटे ने ऐसा ही किया| गणेश चतुर्थी के दिन घर में गणेश जी की स्थापना की, गणेश चतुर्थी का व्रत कर चीनी का भोग लगाया और साथ ही हर दिन नियम से पूजा करने लगे| उसी दिन से उनके सारे विघ्न दूर हो गए| बेटे को नया काम भी मिल गया| हें विघ्नहर्ता सदा अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखना|sakat chauth vrat katha

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