ekadashi vrat katha

ekadashi vrat katha एकादशी व्रत कथा

ekadashi vrat katha एकादशी व्रत कथा हरे कृष्णा… मनुष्य 10000 वर्षों तक तपस्या करता है उसके समान ही फल वह मनुष्य भी पा सकता है जो शुद्ध भाव से एकादशी व्रत का पालन करता है| इसके इसी ग्रंथ में यह भी कहा गया है सहस्त्र अश्वमेघ और सैकड़ों रासु यज्ञ भी एकादशी के उपवास की 16वीं कला के बराबर नहीं हो सकते| शुद्ध भक्ति पूर्वक एकादशी का व्रत करने वाला मनुष्य मातृ कुल की 10 पित कुल की 10 और पत्नी के कुल की 10 पीढ़ियों का उद्धार कर देता है| बृहद नारदीय पुराण उत्तर भाग अध्याय एक श्लोक संख्या 13 और 14 में वशिष्ठ ऋषि कहते हैं|

ekadashi vrat katha एकादशी व्रत कथा

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11 इंद्रियों से जो पाप किए जाते हैं वे सब भक्ति भाव पूर्वक एकादशी उपवास करने से नष्ट हो जाते हैं और फिर यह तो वर्ष की अत्यंत विशेष ऐसी पांडव निर्जला एकादशी है जो कि प्रत्येक वर्ष जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आती है| इस एकादशी के विषय में सभी वैदिक शास्त्रों के रचयिता शील व्यास देव जी कहते हैं कि इस निर्जला एकादशी का पालन करने से सभी तीर्थों में स्नान करने का पुण्य फल मिलता है और मृत्यु के समय यम दूतों के स्थान पर सुंदर विष्णु दूत उसे लेने आते हैं| यहां तक कि सरत की कथा का श्रवण करने से भी व्यक्ति को अमावस्या के साथ आने वाली प्रतिपदा के दिन पिंत्रो को दिया हुआ तर्पण का फल मिलता है|

इस दिन जो भी व्यक्ति गौ दान करता है वह भी अपने समस्त पूर्व पाप कर्मों से मुक्त हो जाता है| भले ही किसी व्यक्ति के पाप सुमेरू पर्वत के समान क्यों ना हो लेकिन फिर भी इस एकादशी का पालन करने से वितत क्षण नष्ट हो जाए हैं| तो आइए हम एक सुंदर कथा का पढते हैं|ekadashi vrat katha एकादशी व्रत कथा

भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु एक दिन गुंडीचा मंदिर में दर्शन करके जगन्नाथ वल्लभ उद्यान में गए| वहां जाकर वे अनेक सुंदर पुष्पों के मध्य में जाकर बैठ गए और जिस दिन उनकी यह लीला हो रही थी वह दिन था एकादशी का| सभी भक्तों सहित स्वयं महाप्रभु ने भी एकादशी व्रत का पालन किया था| उनके साथ अनेक भक्त गण थे जै जैसे कि स्वरूप दामोदर, वक्रे शवर पंडित, रामानंद राय और अन्य अनेक भक्त| एकादशी तिथि के विषय में श्री चैतन्य महाप्रभु ने सभी को एक विशेष आदेश देते हुए कहा… आज आप सभी लोग खाने और सोने का उपवास करिए, निरंतर श्री कृष्ण के नामों का उच्चारण और कीर्तन करिए, आप में से कुछ भक्त महामंत्र का जप करिए, कुछ इस मंदिर की दंडवत परिक्रमा करें और अन्य भक्तगण भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी की मधुर लीलाओं की चर्चा करें|

इस प्रकार एकादशी तिथि के उपलक्ष में महाप्रभु का आदेश पाकर सभी लोगों ने धन्यता का अनुभव किया और सब अपने-अपने आध्यात्मिक कार्यों में जुट गए| अब ऐसे में अचानक क्या हुआ कि कहीं से श्री गोपीनाथ आचार्य और सार्वभौम भट्टाचार्य गुंडीज मंदिर से सीधे जगन्नाथ वल्लभ उद्यान में उसी स्थान पर आ पहुंचे| लेकिन वे अकेले नहीं थे उनके साथ आज महाप्रसाद का खजाना था| ऐसा लग रहा था मानो वे दोनों महाप्रसाद से ही लदे हुए थे और अब महाप्रभु की एक मनोहर लीला होने वाली थी| श्री गोपीनाथ आचार्य और सार्वभौम भट्टाचार्य ने पके हुए चावलों का प्रसाद विभिन्न प्रकार की सब्जियां पीठा, पाना, खीर, छेना और दही के बड़े-बड़े मटको में भरे जगन्नाथ महाप्रसाद को श्री चैतन्य महाप्रभु के सामने लाकर रख दिया|

ekadashi vrat katha एकादशी व्रत कथा

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सबको लग रहा था कि अब यह तो महाप्रसाद है तो महाप्रभु इसका स्वीकार अवश्य करेंगे और वो भी इसी क्षण करेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं महाप्रभु की आज्ञा अनुसार वहां उपस्थित सभी भक्तों ने उस महाप्रसाद को सम्मान पूर्वक प्रणाम अर्पित किया और फिर उसे एक सुरक्षित ठंडे स्थान पर रख दिया| उस दिन सभी भक्तों ने बिना किसी भौतिक इच्छा के संपूर्ण दिन और रात्रि में भगवान के नामों का भक्ति भाव पूर्वक कीर्तन और जप किया| अगले दिन द्वादशी पर सभी भक्तों ने स्नान किया और फिर वहां से लौटने पर जमीन पर बैठकर सभी भक्तों ने महाप्रभु के साथ मिलकर उस जगन्नाथ महाप्रसाद का स्वीकार किया और एकादशी व्रत का पारण किया|

लेकिन उस समय कुछ भक्तों के मन में संशय था इसलिए उन्होंने हाथ जोड़कर अत्यंत विनम्रता पूर्वक श्री चैतन्य महाप्रभु से पूछा…. हे महाप्रभु हमें ज्ञात है कि श्री हरि वासर यानी एकादशी को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्रत माना जाता है| इस दिन पूर्ण उपवास और रात्रि जागरण करके इसका पालन करना चाहिए| लेकिन हमने यह भी सुना है कि पुरुषोत्तम क्षेत्र में भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद का सदैव सम्मान करना चाहिए और जैसे ही मिले उसी समय उसे ग्रहण करना चाहिए| तो वैसे में एकादशी के दिन इस महाप्रसाद का सम्मान कैसे किया जाए और कैसे इस महाप्रसाद के अपराध से बचा जाए| कृपया आप हमारे संशय को दूर करें… आपके वचन वेद वाक्य हैं|

भक्तों की जिज्ञासा सुनकर महाप्रभु ने कहा एकादशी के दिन पूर्ण उपवास का पालन ना करने से किसी का भी आध्यात्मिक जीवन विपत्ति में पड़ जाता है| एकादशी के दिन महाप्रसाद को आदर पूर्वक सम्मान दो, उसे प्रणाम करो और अगले दिन प्रसाद पा लो| इस प्रकार इस महाप्रसाद का अनादर भी नहीं होगा और एकादशी व्रत का पालन भी होगा| किसी भी व्यक्ति को एकादशी के दिन किसी भी प्रकार का स्वाद नहीं लेना चाहिए| चाहे वह शारीरिक हो, या जीभ का हो उस दिन सांसारिक विषयों पर चर्चा भी नहीं करनी चाहिए| एक वैष्णव का कर्तव्य है कि वह प्रतिदिन सिर्फ भगवान को अर्पित प्रसाद का ही स्वीकार करें| लेकिन एकादशी के दिन उसे संपूर्ण उपवास रखना चाहिए और अगले दिन ही महाप्रसाद को ग्रहण करना चाहिए|ekadashi vrat katha एकादशी व्रत कथा

अगर किसी को एकादशी के दिन भोजन लेना भी पड़ रहा है तो वह मात्र फलों दूध और मूल से युक्त प्रसाद का स्वीकार करें| जो लोग वैष्णव नहीं है व एकादशी के दिन भी बिना किसी नियंत्रण के पेट भर कर खाते हैं और फिर महाप्रसाद को सम्मान देने का बहाना बताते हैं| वास्तव में वे ऐसा करके पाप का भोग बनते हैं और ऐसे अ भक्तों के संग से दूर रहो और एकादशी व्रत का उचित रीति से पालन करने के लिए निरंतर पवित्र नामों का जप और कीर्तन करते रहो| जब सभी भक्तों ने श्री चैतन्य महाप्रभु के मुख से इस दिव्य उपदेश को सुना तो वे सब आनंद से अभिभूत हो गए| वे सभी एक साथ गोविंद…. गोविंद ….का उच्चारण करने लगे और फिर सभी ने साथ मिलकर हरि नाम का कीर्तन किया| तो यह थी महाप्रभु की एकादशी के अवसर पर महाप्रसाद की लीला|

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अब देखिए कई बार लोग कहते हैं कि अगर आप जगन्नाथ पुरी में हैं तो आपको एकादशी करने की कोई आवश्यकता नहीं है| लेकिन श्री चैतन्य महाप्रभु ने इस बात का अनुमोदन नहीं किया है| वे स्वयं भगवान हैं और जगन्नाथ पुरी में रहते हैं फिर भी वे एकादशी का पालन करते हैं| तो फिर हम तो सामान्य बद्ध जीव है ,हमारे लिए ऐसा कोई भी नियम नहीं है| जो भी व्यक्ति परम भगवान श्री कृष्ण की शुद्ध प्रेमा मय भक्ति को प्राप्त करना चाहता है उसे वर्ष में आने वाली प्रत्येक एकादशी तिथि का भक्ति भाव और नियम पूर्वक पालन अवश्य करना चाहिए|ekadashi vrat katha एकादशी व्रत कथा

शास्त्रों में बताया गया है ८ वर्ष की आयु के बालक से लेकर 80 वर्ष तक के प्रत्येक व्यक्ति को एकादशी व्रत का पालन करना चाहिए| फिर चाहे वह किसी भी स्थान पर हो या किसी भी आयु का हो और फिर इस बार की एकादशी तो अत्यंत विशेष पांडव निर्जला एकादशी है| यह ऐसी एकादशी है जिसका अगर श्रद्धा और निष्ठा से पालन किया जाए तो वर्ष की सभी एकादश यों का पालन करने का फल मिल जाता है| तो इसलिए ध्यान से हमें प्रयास करना चाहिए कि इस विशेष निर्जला एकादशी का पालन भी विशेष तैयारियों के साथ किया जाए|निर्जला एकादशी पर हमारी संस्कृति के गौरव को आगे बढ़ाने में अपना योगदान अवश्य दीजिएगा| तो आइए इस परम पवित्र निर्जला एकादशी पर परम भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों में अपने मन और चेतना को समर्पित करते हैं और आध्यात्मिक जीवन में परम गंतव्य की ओर अग्रसर होते हैं| हरे कृष्णा….

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