ahoi ashtami vrat katha
ahoi ashtami vrat katha आज कहते हैं अहोई अष्टमी की कथा एक समय की बात है| एक नगर में एक साहूकार अपने भरे पुरे परिवार के साथ रहता था| उसके सात बेटे एक बेटी और सात बहुएं थी| साहूकार की बेटी दिवाली पर अपने ससुराल से माइके आई हुई थी| दिवाली पर घर को लीपना था इस लिए सारी बहुएं जंगल से मिट्टी लेने गई| साहूकार की बेटी भी अपनी भाभियों के साथ चल पड़ी| साहूकार की बेटी जहां मिट्टी खोद रही थी उस स्थान पर स्याहु अपने बच्चों के साथ रहती थी|
ahoi ashtami vrat katha
एक और अनोखी कहानी
गलती से की मिट्टी खोदते हुए खुरपी की चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया| इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी| सबसे छोटी भाभी अपनी ननंद ने ओ शाप आपने सर ले लिया|इस प्रकार सात पुत्रों की मृत्य होने के बाद उसने पंडित को बुलाया पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी|ahoi ashtami vrat katha
सुरही गाय सेवा से प्रसन्न हो जाती है और छोटी बहू से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और तू मुझसे क्या चाहती है जो कुछ तेरी इच्छा हो वो तू मुझसे मांग ले| साहूकार की बहू ने कहा स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे जीवित नहीं बचते अगर आप मेरी कोख स्याहु माता से खुलवा दें तो मैं आपका उपकार मानूंगी| गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे लेकर सात समुंदर पार स्याहु माता के पास चल पड़ी| रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने बैठ गए अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर गई वहां उसने देखा कि एक सांप गरुड़ पंखी के बच्चों को डसने जा रहा है|
यह देखते ही उसने उन बच्चों को बचाने के लिए उस सांप को मार दिया| थोड़ी देर बाद गरुड़ पंखी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चों को मार दिया है| इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है| छोटी बहू गरुड़ पंखी से कहती है कि मैंने तुम्हारे बच्चों की जान बचाई है| गरुड़ पंखी यह सुनकर बहुत खुश होती है और वह छोटी बहू से कहती है कि वह किस प्रकार उसकी मदद कर सकती है| तो छोटी बहू कहती है कि वह उसे स्याहु माता तक पहुंचा दे| गरुड़ पंख नी सुरही गाय और छोटी बहू को अपनी पीठ पर बिठाकर सात समंदर पार करवा देती है और उन्हें स्याहु माता के पास पहुंचा देती है|ahoi ashtami vrat katha
सुरही गाय को देखकर स्याहु माता बोलती है कि बहन तुम तो बहुत दिनों में आई हो फिर उन्हें कहती है कि मेरे सिर में बहुत जू पड़ गई है| तब साहूकार की बहू सलाई लेकर उनकी जुएं निकालती है जिससे स्याहु माता खुश हो जाती हैं और बोलती हैं कि तूने मेरी बहुत जुएं निकाली है| इसलिए तेरे सात बेटे और सात बहुएं हो तब बहू बोलती है| मां मेरे तो एक भी बेटा नहीं है सात कैसे होंगे स्याहु माता पूछती है क्या बात है तब बहू बोलती है आप वचन दो तब मैं बताऊं तो स्याहु माता उसे वचन दे देती है| तब बहू कहती है कि… आपने मेरी कोख बांध रखी है मेरे बच्चे नहीं जीते यह सुनकर स्याहु माता बोलती है तूने तो मुझे ठग लिया| मैं पहले तेरी कोख नहीं खोलने वाली थी पर अब मुझे तेरी कोख खोलनी पड़ेगी|
जा तेरे सात बेटे और सात बहुएं होंगी तू घर जाकर अष्टमी की पूजा करना और उसका उद्यापन करना| बहू लौटकर घर आई तो उसके सात बेटे और सात बहुएं थी व सबको देखकर बहुत खुश हो गई| अब अष्टमी के दिन उसने सात अहोई बनाकर पूजा और उसका उद्यापन किया| उधर उसकी जेठा नियां आपस में बात करने लगी कि जल्दी-जल्दी अहोई माता की पूजा कर ले नहीं तो सबसे छोटी बहू अपने बच्चों को याद करकर रोने लग जाएगी| जब उसके रोने की कोई आवाज नहीं आई तो उसने अपने बच्चों से कहा कि जा कर चाची के घर देखकर आओ कि अभी तक वह रोई क्यों नहीं|ahoi ashtami vrat katha
बच्चों ने जाकर देखा तो वहां चाची कुछ मांड रही थी और उद्यापन और पूजा की तैयारी कर रही थी| उन्होंने जाकर अपनी माताओं को यह बात बताई यह सुनते ही जेठानिया दौड़ी दौड़ी उसके घर आई और उससे पूछा कि तेरी कोख कैसे छूट गई| देवरानी बोली स्याहु माता ने मेरे ऊपर कृपा करकर मेरी कोख खोल दी स्याहु माता जैसे उस पर कृपा करी ऐसे सब पर कृपा करना धन्यवाद…
अहोई अष्टमी पूजा विधि
ahoi ashtami vrat katha
एक और अनोखा इतिहास
अहोई अष्टमी किस प्रकार की जाती है, किस प्रकार उसकी पूजा विधि की जाती है और क्या है उसे व्रत का महत्व| संतान की अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए किया जाने वाला अहोई अष्टमी व्रत इस बार 17 अक्टूबर को है| इस व्रत पर माता पार्वती की पूजा की जाती है| महिलाएं सूर्य उदय से पहले उठकर नहा कर व्रत का संकल्प लेती है| इसके बाद पूरे दिन व्रत रखकर शाम को सूर्यास्त के बाद माता की पूजा की जाती है और इसके बाद व्रत पूरा करती हैं| कुछ महिलाएं संतान प्राप्ति और अखंड सुहाग प्राप्ति की कामना से ये व्रत करते हैं|ahoi ashtami vrat katha
अहोई का अर्थ अनहोनी को होनी बनाना होता है| इस दिन ए हुई माता की पूजा की जाती है| अहोई अष्टमी का व्रत दिन भर निर्जल रहकर किया जाता है| अहोई माता का पूजन करने के लिए मंदिर में जाती हैं और शाम को पूजा करके कथा सुनने के बाद यह व्रत पूरा किया जाता है| कई जगह पर इस व्रत को चंद्र दर्शन के बाद ही खोला जाता है| इस दिन महिलाएं शाम को दीवार पर अहोई माता का चित्रा बनाती है और उसके आसपास सेवा से के बच्चे भी बनाते हैं|ahoi ashtami vrat katha
कुछ लोग बाजार से कागज के अहोई माता के रंगीन चित्रा लाकर उनकी पूजा भी करते हैं| कुछ महिलाएं पूजा के लिए चांदी की एक अहोई बनाती है जिसे साओ कहते हैं और उसमें चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजन किया जाता है| तारे निकलने के बाद अहोई माता की पूजा शुरू होती है| पूजन से पहले जमीन को साफ करके पूजा का चौक पूरा करके एक लूटी में जल भरकर उसे कलश की तरह चौकी के कोने पर रखते हैं और फिर पूजा करते हैं इसके बाद अहोई अष्टमी व्रत की कथा सुनी जाती हें|ahoi ashtami vrat katha
मथुरा की राधा कुंड में इस दिन बड़ी संख्या में युगल तथा श्रद्धालु पवन स्नान करते हैं| ये व्रत खास तौर से उत्तर भारत में मनाया जाता है युपी, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश में ये व्रत पूर्ण माना जाता है| अहोई अष्टमी के पर्व पर माताएं अपने पुत्र के कल्याण के लिए अहोई माता व्रत रखती है| परंपरागत रूप से यह व्रत केवल पुत्रों के लिए रखा जाता है लेकिन अपनी सभी संतानों की कल्याण के लिए आजकल यह व्रत रखा जाने लगा है| माताएं बहुत उत्साह से अहोई माता की पूजा करती है और अपनी संतानों की दीर्घ स्वस्थ एवं मंगलमय जीवन के लिए प्रार्थना करते हैं| तारु अथवा चंद्रमा के दर्शन तथा पूजन करके यह व्रत पूरा किया जाता है|जिन महिलाओं का गर्भपात हो जाता है उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिए माता का व्रत जरूर करना चाहिए| धन्यवाद