जितिया व्रत कथा/jitiya vrat katha
जीवित्पुत्रिका व्रत की पहिली कथा
jitiya vrat katha नमस्कार दोस्तों सबसे पहले अपने आप सभी को जितिया व्रत की हार्दिक शुभकामनाएं| जितिया व्रत की एक पौराणिक कथा पौराणिक कथा के अनुसार जब महाभारत का युद्ध हुआ तो अश्वत्थामा नामक हाथी मारा गया लेकिन चारों तरफ यह खबर फैल गई कि अश्वत्थामा मारा गया| यह सुनकर अश्वत्थामा के पिता द्रोणाचार्य ने पुत्र शोक में अस्त्र डाल दिए तब द्रौपदी के भाई ने उनका वक्त कर दिया| पिता की मृत्यु के कारण अश्वत्थामा के मन में प्रतिशोध की आग में जल रही थी| अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने जा पहुंचा|
जितिया व्रत कथा/jitiya vrat katha
एक और कथा
उसने पांडु के पांचों पुत्रों को सोया हुआ देखकर उन्हें पांडव समझ लिया और उनके पांचों पुत्रों की हत्या कर दी| परिणामस्वरूप पांडवों को अत्यधिक क्रोध आ गया तब अश्वत्थामा से भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी मणि छीन ली जिसके बाद अश्वत्थामा पांडवों से क्रोधित हो गया और उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को जान से मारने के लिए उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया| भगवान श्रीकृष्ण इस बात से भलीभांति परिचित थे ब्रह्मास्त्र को रोक पाना असंभव है लेकिन उन्हें उत्तरा के पुत्र की रक्षा करना अति आवश्यक लगा इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल एकत्रित करके उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को दे दिया| जिसके फल स्वरूप उत्तरा के गर्भ में पल रहा बच्चा पुनर्जीवित हो गया| यह बच्चा बड़ा होकर राजा परीक्षित बना| पुत्रा के बच्चे के दोबारा जीवित हो जाने के कारण इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका व्रत पड़ा| तब से ही संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है|
जीवित्पुत्रिका व्रत की दूसरी कथा
इस प्रथा के अनुसार गंधर्वों के एक राजकुमार थे| जिनका नाम जीमूतवाहन था| वह बहुत उदार और परोपकारी थे| बहुत कम आयु में ही उन्हें सत्ता मिल गई थी लेकिन उनका मन सत्ता के कार्यभार में नहीं लगता था| ऐसे में वह अपना राज्य छोड़कर अपने पिता की सेवा के लिए वन में चले गए| वन में उनका विवाह मलयवती नाम की एक कन्या से हुआ| एक दिन जब जीमूतवाहन भ्रमण कर रहे थे तो उन्होंने एक वृद्ध महिला को विलाप करते हुए देखा| उन्होंने विधवा विलाप का कारण पूछा इस पर वृद्ध स्त्री ने बताया मैं नागवंश स्त्री हूं और मेरा ही पुत्र पक्षिराज गरुड़ के सामने प्रतिदिन खाने के लिए एक नाग सोपने की प्रतिज्ञा हुई हें जिसके अनुसार आज मेरे पुत्र शंखचूड़ को भेजने का दिन है| शंख चूड मेरा इकलौता पुत्र है अगर मेरे इकलौते पत्र की बलि चढ़ गई तो मैं किसके सहारे अपना जीवन व्यतीत करूंगी|जितिया व्रत कथा/jitiya vrat katha
जितिया व्रत कथा/jitiya vrat katha
एक और कथा
यह सुनकर जिमूतवाहन का दिल पसीज उठा| उन्होंने कहा कि आप चिंता न करें मैं आपके पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा| जिमूतवाहन ने कहा कि वह स्वयं अपने आप को उसके लाल कपड़े में ढक्कर वध्य-शिला पर लेट चाहेंगे| जिमूतवाहन ने ऐसा ही किया…. जब पक्षिराज गरुड़ वहां पहुंच गए तो वे लाल कपड़े में ढूंढते हुए जिमूतवाहन को अपने पंजों में दबोच कर पहाड़ के शिखर पर जाकर बैठ गए| पक्षीराज गरुड़ यह देखकर आश्चर्य में पड़ गए कि उन्होंने जिसे अपने चंगुल में गिरफ्तार किया कि उसकी आंख में आंसू और मुंह से आह तक नहीं निकल रही| ऐसा पहले कभी नहीं हुआ|जितिया व्रत कथा/jitiya vrat katha
आखिरकार गरुड़ जी ने जिमूतवाहन से उनका परिचय पूछा गरुड़ जी के पूछने पर जिमूतवाहन ने उस वृद्ध स्त्री से हुई सारी बातों के बारे में बताया| पक्षिराज गरुड़ हैरान हो गए उन्हें इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कोई किसी की मदद के लिए ऐसी कुर्बानी भी दे सकता है| गरुड़ जी इस बहादुरी को देख कर काफी प्रसन्न हुए| जीमूतवाहन को जीवनदान दे दिया| साथ ही उन्होंने भविष्य में नागों की बलि ना लेने की बात भी कही| इस प्रकार एक मां के पुत्र की रक्षा युद्ध मान्यता है कि तब से ही पुत्र की रक्षा के लिए जिमूतवाहन की पूजा की जाती है|
जितिया व्रत की तीसरी कथा
नर्मदा नदी के पास कंचन भाटी नाम का यमुनानगर था| वहां के राजा मलेसी के पुत्र थे| नदी के पश्चिम दिशा में मरूभूमि थी| जिसे बालू हटा कहा जाता था| वह विशाल पाकड़ का एक पेड़ था| उस पेड़ पर चील रहती थी| पेड़ के नीचे खोखर था जिसमें सियारिन रहती थी| चील और जीमूतवाहन में गहरी दोस्ती थी| एक बार दोनों ने मिलकर कुछ स्त्रियों को जितिया व्रत करते हुए देखा तब उन्होंने जितिया का व्रत करने का संकल्प लिया| फिर दोनों ने भगवान जी उक्त वाहन की पूजा करने के लिए निर्जला व्रत रखा|
व्रत के दिन उसनगर के बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई और व्यापारी का दाह-संस्कार उसी मरुस्थल कर किया गया| दिन बीतने के बाद जब रात हुई तब वहां मौसम खराब हो गया, बिजली कड़कने लगी और बादल भी गरज से लगे| वहां पर बहुत बड़ा तूफान आ गया था| पूरा बुखार रहने के कारण अब जितिया इनको बहुत भूख लग रही थी मुर्दा देखकर वह खुद को रोक ना सकी और उसने व्यापारी कि बच्चे हुए शरीर को खा लिया और उसने अपने व्रत को तोड़ लिया| पर चील ने संयम रखा और नियम व श्रद्धा से अगले दिन व्रत का पारण किया|
जितिया व्रत कथा/jitiya vrat katha
एक और अनोखा इतिहास
फिर अगले जन्म में दोनों सहेलियों ने ब्राह्मण के परिवार में पूत्रियों के रूप में जन्म लिया| चील बड़ी बहन बनी और उसका नाम शीलवती रखा गया| शीलवती की शादी बुद्धि सेन के साथ हुई| सियारिन छोटी बहन के रूप में जन्मीं और उसका नाम कपूरआवती रखा गया उसकी शादी नगर के राजा मलेफिक केतु से हुई अब कपूर आवती कंचन नगर की रानी बन गई| भगवान जी उक्त वाहन के आशीर्वाद से के साथ बैठे हुए ऊपर कपूर आवती के सभी बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे| कुछ समय बाद सियारिन के साथ ओं पुत्र बड़े हो गए| वह सभी राजा के दरबार में काम करने लगे|कापुरावती के मन में उन्हे देख कर ईर्ष्या की भावना आ गई और उसने राजा से कहकर शीलवती के सभी पुत्रों के सर कटवा दिए और उन्हें सात नए बर्तन मंगवाकर उसमें रख दिया और लाल कपड़े से ढ़क कर शीलवती के पास भिजवा दिए|
यह देखकर भगवान जी उक्त वाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सर बनाए और सभी के सिर को उनके धड़ से जोड़ कर उन पर अमृत छिड़क दिया जिससे सभी में जान आ गई और शीलवती के साथ ओं पुत्र जिंदा हो गए और घर लौट आए| जो कटे हुए सिर रानी ने भेजे थे| वह फल बन गए और दूसरी ओर रानी कपूरवती बुद्धि से इनके घर से पुत्रों की मृत्यु का समाचार सुनने के लिए व्याकुल थी| जब बहुत देर तक कोई समाचार हुआ या तो कपूर आवती स्वयं ही बड़ी बहन के घर चली गई| वहां सब को जिंदा और खुश देखकर वह बेहोश हो गई| जब उसे होश आया तो उसने अपनी बहन को पूरी बात बताई |जितिया व्रत कथा/jitiya vrat katha
भगवान जिमूतवाहन की कृपा से शीलवती को पूर्व जन्म की बातें याद आ गई| वह कपूर आवती को लेकर उसी पाकड़ के पेड़ के पास गई और उसे सारी बातें बताई| सारी बातें सुनकर कपूर आवती बेहोश हो गई मृत्यु को प्राप्त हुई| जब राजा को इसकी खबर मिली तो उन्होंने उसी जगह पर जाकर पाकड़ के पेड़ के नीचे कपूरवती का संस्कार कर दिया|इस प्रकार जितिया व्रत की तीनों कथाएं पूर्ण हुई|जितिया व्रत कथा/jitiya vrat katha