खाटू श्याम का इतिहास खाटू श्याम बाबा का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है| खाटू श्याम जी को भगवान श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है देश के करोड़ों लोग खाटू श्याम जी की पूजा करते हैं| खाटू श्याम जी मंदिर में हर वक्त भक्तों का ताता लगा रहता है और खाटू श्याम जी का विशाल मेला विशेष रूप से होली के दिन पहले सीकर जिले मेंआयोजित होता है| जिसमें अनेक श्रद्धालु भी बाबा के दर्शन करने आते हैं| खाटू श्याम जी की कहानी महाभारत काल से शुरू होती है जिस वक्त उनका नाम बरबरी था| बरबरी भीम का पौत्र और घटोतकच का पुत्र था| बरबरी बचपन से ही बहुत बीर योधा था| बरबरी ने अपनी मां से युद्ध कला सीखी थी| बरबरी देवी शक्ति का बहुत बड़ा भक्त था|
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चपन से ही बहुत बीर योधा था| बरबरी ने अपनी मां से युद्ध कला सीखी थी| बरबरी देवी शक्ति का बहुत बड़ा भक्त था| एक बार बरबरी ने देवी शक्ति की कठोर तपस्या की बरबरी की कठोर तपस्या को देखकर देवी शक्ति वहां प्रकट हुई|खाटू श्याम का इतिहास
देवी – आंखें खोलो पुत्र!
बरबरी- प्रणाम माते!
देवी – तुम्हारा कल्याण हो पुत्र,’ मैं तुम्हारी तपस्या से अति प्रसन्न हूं बोलो क्या वरदान चाहिए’|
बरबरी- माते आपने मुझे दर्शन देकर कृतार्थ कर दिया अब तो बस एक ही अभिलाष कि आपका आशीर्वाद सदैव मुझ पर बना रहे और मैं अपना संपूर्ण जीवन दीन दुखियों की सहायता में व्यतीत कर सकूं| तथास्तु ! तुम सदा दुर्बल का सहारा बनोगे मैं तुम्हें ऐसी शक्ति प्रदान करूंगी जो तीनों लोगों में किसी के पास भी नहीं है पर ज्ञात रहे पुत्र तुम्हें इन शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करना|
भगवती शक्ति ने बरबरी को तीन दिव्य बाण वरदान स्वरूप दिए वो बाण अपने लक्ष्य को भेद कर वापस लौट आते थे इसी वजह से बरबरी अजय हो गया|बरबरी अपनी माता के पास पहुंचा और देवी शक्ति के दिए वरदान के बारे में बताया मां मैं भी कौरव और पांडव के युद्ध में जाना चाहता हूं, मेरी युद्ध में जाने की बहुत इच्छा है|
बरबरी कि मा – पुत्र बरबरी मैं जानती हूं तुम एक महान योद्धा हो इसलिए मैं तुम्हें रोकूंगी नहीं पर मुझे वचन दो कि तुम हारे का सहारा बनोगे तुम युद्ध में हारने वाले की तरफ से लड़ोगे| मैं आपको वचन देता हूं मैं हारने वाले की ओर से ही युद्ध करूंगा|
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एक और अनोखी कहानी
अपनी मां को वचन देकर बरबरी एक नील घोड़े पर सवार होकर बाण लेकर रवाना हो गया| भगवान कृष्ण तो अंतर्यामी है वो यह सब लीला होते देख रहे थे| भगवान कृष्ण जानते थे कि बरबरी केवल हार रही सेना की तरफ से लड़ेगा और वह यह भी जानते थे कि कौरवों को भी बरबरी के इस वचन के बारे में पता है| बरबरी कौरवों का सहयोग कर पांडवों का विनाश कर देगा इस प्रकार जब वह कौरवों की तरफ से लड़ेगा तो पांडवों की लड़ रही सेना कमजोर हो जाएगी उसके बाद वह पांडवों की सेना में चला जाएगा इस तरह वह दोनों सेनाओं में घूमता रह रहेगा| श्री कृष्ण को पता था अगर बरबरी किस युद्ध में शामिल हुआ तो कोई भी सेना नहीं जीत पाएगी और अंत में कौरव पांडव दोनों का विनाश हो जाएगा और केवल बरबरी शेष रह जाएगा| इसलिए रास्ते में ही श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का वेष धारण कर बरबरी को रोका|
ब्राह्मण:- हे महावीर योद्धा तुम कौन हो यह कुरुक्षेत्र की रणभूमि है तुम कौरवों और पांडवों के युद्ध में क्या कर रहे हो|
बरबरी:- हे ब्राह्मण देव मैं घटोत कच का पुत्र बरबरी हूं| मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिए! मैं महाभारत के युद्ध में सम्मिलित होने आया हूं|
ब्राह्मण: -ऐसा कैसे हो सकता है तुम मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने जा रहे हो|
बरबरी – ब्राह्मण देव यह बाण कोई साधारण बाण नहीं है इनमें से मात्र एक बाण भी शत्रु सेना को परास्त करने के लिए पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तरकश में ही लौट आएगा|
ब्राह्मण :- अच्छा तो फिर इस पीपल के पेड़ के सभी पत्रों को छेद कर दिखलाओ|
बरबरी :- बस इतनी सी बात ब्राह्मण देव!
बरबरी ने ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण की चुनौती स्वीकार कर ली और ईश्वर को स्मरण कर पेड़ के पत्तों की ओर बाण चलाया| बाण ने क्षण भर में पेड़ के सभी पत्तों को भेद दिया और श्री कृष्ण के पैरों के इर्दगिर्द चक्कर लगाने लगा क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था|
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बरबरी :- ब्राह्मण राज अपना पैर यहां से हटा लीजिए वरना यह तीर आपके पैर को भेद देगा! ये तीर बिना लक्ष्य पूरा किए वापस तरकश में नहीं लौटते|
ब्राह्मण ( मन में ):- (बरबरी के तीर अचूक हैं लेकिन अपने निशाने के बारे में खुद बरबरी को भी पता नहीं रहता है| असली रणभूमि में अगर मैं सभी पांडव भाइयों को अलग-अलग कहीं छिपा भी दूंगा ताकि वह बरबरी का शिकार होने से बच जाएं तब भी बरबरी के तीरों से कोई नहीं बच पाएगा इन अचूक तीरों से कोई नहीं बच सकता है)|
हे वीर योद्धा मैं तुम्हारे साहस की सराहना करता हूं मैं तुमसे दान स्वरूप कुछ मांगना चाहता हूं| ब्रह्मण महाराज यदि मेरे वश में होगा तो मैं आपकी इच्छा स्वरूप रूप दान की अभिलाषा जरूर पूर्ण करूंगा| मैं वचन देता हूं, आप मुझसे दान में जो भी मांगेंगे मैं आपको मना नहीं करूंगा| मुझे तुम्हारा शीष दान चाहिए क्या तुम ऐसा कर सकते हो|
बरबरी:- आप कौन है! मुझे अपना परिचय दीजिए आप मुझे ब्राह्मण नहीं दिखाई देते कृपया करके मुझे अपने वास्तविक रूप से अवगत कीजिए| बरबरी की प्रार्थना करने पर भगवान कृष्ण अपने स्वरूप में आ जाते हैं|
बरबरी:- वासुदेव कृष्ण आप स्वयं मेरे शीष दान की अभिलाषा हेतु आए हैं|
बरबरी:- युद्ध भूमि की पूजा के लिए एक वीरवर क्षत्रिय के शीष के दान की आवश्यकता होती है और तुम महावीर महायोद्धा हो|
कृष्ण देव :- मैं तुमसे शीष दान मांगता हूं!
बरबरी:- हे वासुदेव कृष्ण मैं आपको शीष दान अवश्य दूंगा पर मेरी दो इच्छाएं हैं| पहली यह कि मेरी देह को आप स्वयं अग्नि देंगे और दूसरी इच्छा यह कि मैं अंत तक इस युद्ध को देखना चाहता हूं|
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कृष्ण देव :- ऐसा ही होगा वीर बरबरी कलयुग में लोग तुम्हें “हारे का सहारा” बोलेंगे| तुम्हें श्याम नाम से पुकारेंगे मेरे नाम से ही तुम्हारी कलयुग में पूजा की जाएगी| कलयुग में खाटू श्याम नाम से तुम्हारी पूजा होगी|
फाल्गुन माह की द्वादशी को बरबरी ने अपने शीष का दान दिया| बरबरी को ब्रह्मा जी का श्राप था कि उनकी मृत्यु पृथ्वी लोक पर भगवान कृष्ण के हाथों ही होगी तभी वह श्राप मुक्त हो सकता है| बरबरी का सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया जहां से बर्बरीक ने संपूर्ण महाभारत का युद्ध देखा| युद्ध समाप्त होणे पर पांडवों में बहस होने लगी कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है| इस पर श्री कृष्ण बोले :- सबको आपस में विवाद में पढने की कोई आवश्यकता नहीं है| बरबरी का शीष संपूर्ण युद्ध का साक्षी है अत उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है| ठीक है वासुदेव फिर हम इस निर्णय को जानने के लिए बरबरी के पास ही चलते हैं|
बर्बरीक तुमने तो युद्ध को बहुत ध्यान से देखा है क्या तुम बता सकते हो हम सब वीरों में से इस युद्ध को जीतने का श्रेय किसे जाता है|
बरबरी :- श्री कृष्ण ने ही युद्ध में विजय प्राप्त कराने में सबसे महान कार्य किया है| उनकी शिक्षा उनकी उपस्थिति उनकी युद्ध नीति ही निर्णायक थी| वासुदेव कृष्ण का सुदर्शन चक्र मुझे तो युद्ध भूमि में सिर्फ घूमता हुआ दिखाई दे रहा था जो कि शत्रु सेना का सामना कर रहा था इस धर्म युद्ध को जीतने का संपूर्ण श्रेय भगवान श्री कृष्ण को ही जाता है|
वीर बरबरी तुम धन्य हो तुमने बिल्कुल सही निष्कर्ष दिया| इसके पश्चात सभी पांडव बरी के निर्णय की सराहना करते हैं और भगवान कृष्ण से क्षमा मांगते हैं क्योंकि वह जानते थे यदि स्वयं वासुदेव ना होते तो यह धर्म युद्ध जीतना असंभव था| धर्म की विजय स्वयं वासुदेव कृष्ण के कारण ही हुई थी|
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भगवान कृष्ण के आशीर्वाद से बरबरी को कलयुग में श्याम नाम से पुकारा जाने लगा आज भी खाटू श्याम जी महाराज के अनेकों भक्त रोजाना उनके दर्शन करने जाते हैं और उनसे मनवांछित फल की प्राप्ति करते हैं|खाटू श्याम का इतिहास