आर्यभट्ट का जीवन परिचय/aryabhatta

आर्यभट्ट का जीवन परिचय/aryabhatta

                      आर्यभट्ट का जीवन परिचय/aryabhatta. आर्यभट्ट का जन्म पांचवी सदी के दौरान सन 476 ईस्वी में गुप्त राजवंश की राजधानी पाटलिपुत्र में हुआ था| जिसको आज के समय में हम पटना के नाम से जानते हैं| वह उसे समय भारत के सबसे महान मैथमेटिशियन और एस्टॉनोमर्स में से एक माने जाते थे| इतिहास में हमें उनकी निजी जिंदगी से जुड़ी कुछ ज्यादा जानकारी देखने को नहीं मिलती है और आज हम उनके बारे में जो कुछ भी जानते हैं वह उनके काम की वजह से ही है| जो हमें उनके द्वारा लिखे गए शास्त्रों में देखने को मिलता है| आर्यभट्ट ने अपने पूरे जीवन काल में बहुत से ग्रंथ लिखे थे जिसमें तीन गनित की जानकारी हमें आज भी इतिहास में देखने को मिलती है| उनके द्वारा लिखी गई इन ग्रंथो के नाम आर्यभट्ट, आर्य सिद्धांत और एलेंट है| इन तीनों ग्रंथ में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण आर्यभट्ट ग्रंथ को माना जाता है| जिसमें उन्होंने एस्ट्रोनॉमी, एस्ट्रोफिजिक्स और मैथमेटिक्स के बारे में लिखा हुआ है| और आर्य सिद्धांतकी बात की जाए तो उसमें आर्यभट्ट ने एस्टॉनोमिकल कैलकुलेशन में सामील होने वाली मैथमेटिकल कांसेप्ट के बारे में लिखा हुआ है| हालांकि दुर्भाग्य से यह ग्रंथ इतिहास में हो चुका है और आज दुनिया में इसका एक अंश मौजूद नहीं है|

आर्यभट्ट का जीवन परिचय/aryabhatta

एक अनोखी कहानी :-

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जीवनी 

                       इस ग्रंथ की कुछ डिटेल्स हमें सातवीं और आठवीं सदी के मैथमेटिशियन और एस्टॉनोमर्स द्वारा लिखे गए उनके शास्त्रों में देखने को मिलती है और इसके अलावा हमारे पास इस ग्रंथ से जुड़ी और कोई भी जानकारी मौजूद नहीं है| यही वजह है कि दुनिया में किसी को भी इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि आर्यभट्ट ने अपने इस ग्रंथ के अंदर क्या लिखा था| अब तीसरे ग्रंथ की बात करें तो वह भी आर्य सिद्धांत की तरह इतिहास में गुम हो चुका है|इसलिए आज हमारे पास इस ग्रंथ के नाम के अलावा इससे जुड़ी और कोई भी जानकारी नहीं है| सिर्फ आर्यभट्ट यही एक ऐसा ग्रंथ है जो आज भी इस कंडीशन में है| जैसा उसको 1500 साल पहले खुद आर्यभट्ट ने लिखा था| वैसे आपको जानकर काफी हैरानी होगी कि इस पूरे ग्रंथ में सिर्फ 121 श्लोक ही लिखे हैं| और इन्हीं 121 श्लोक में उन्होंने इतना कुछ लिख दिया कि आज भी उन्हें इतिहास के सबसे महान मैथमेटिशियन और एस्टॉनोमर्स में इस्तेमाल किया जाता है|असल में यह पूरा ग्रंथ संस्कृत भाषा में है| हम आपकी जानकारी के लिए बता दे की संस्कृति एक ऐसी भाषा है जिसके अंदर कम शब्दों में बहुत कुछ कहा जा सकता है| इसलिए आर्यभट्ट द्वारा लिखे गए 121 श्लोक गिनती में भले ही काम नजर आते हैं|

                      लेकिन इनके अंदर जानकारी का पूरा खजाना छिपा हुआ है| हमें यह पता चलता है कि प्राचीन भारत में समय की गणना आखिर किस तरह से की जाती थी इस ग्रंथ का दूसरा चैप्टर गणित पद है जिसमें आर्यभट्ट ने हमें प्रिंसिपल अर्थमैटिक प्रोग्रेशन और इन डिटर्मिननेंट इक्वेशन यानी अलजेब्रा के बारे में बताया गया है जिन्हें आप स्कूलों के अंदर दसवीं क्लास में पढ़ाया जाता है| इसके बाद नंबर आता हैतीसरी चैप्टर यानी कल क्रियापद का इसमें आर्यभट्ट ने मेजरमेंट ऑफ टाइम ग्रहों की स्थिति और दोनों को जानने के तरीकों के बारे में बताया है| इस चैप्टर को पढ़ने के बाद यह पता चलता है कि आर्यभट्ट की वह पहले इंसान थे जिन्होंने (स्पीड = डिस्टेंस अपॉन टाइम) का फार्मूला दुनिया में सबसे पहले खोजा था| हालांकि दोस्तों यह कोई छोटी-मोटी खोज नहीं थी लेकिन फिर भी दुर्भाग्य से उनकी इस खोज के बारे में आज बहुत कम लोग ही जानते हैं| इस ग्रंथ के आखिरी चैप्टर के बारे में जानते हैं और जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है आर्यभट्ट ने इस चैप्टर में हमें ग्रहण के बारे में बताया है इसमें त्रिकोणमिति के सिद्धांत ग्रहों की गति मापने के तरीके और भौगोलिक करनाव जैसी कई अहम चीज शामिल हैं| आज दुनिया में त्रिकोणमिति की जब भी बात होती है तो उसमें हमेशा यूनानियों की योगदानों को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है लेकिन असल में त्रिकोणमिति के खोज के पीछे ज्यादा महत्वपूर्ण योगदान हमारे भारत के रहने वाले आर्यभट्ट जैसे विद्वान लोगों का रहा है कि अगर आर्यभट्ट ने अपने ग्रंथ आर्य को संस्कृत के श्लोक में लिखा था तो फिर उन्होंने उसमें मैथमेटिक्स की इक्वेशन और फार्मूला को किस तरह प्रदर्शित किया| क्योंकि इक्वेशन और फार्मूले हमेशा नंबर्स में लिखे जाते हैं जबकि आर्यभट्ट ग्रंथ नंबर नहीं बल्कि संस्कृत के शब्दों में लिखा हुआ है असल में दोस्तों इसके पीछे भी आर्यभट्ट का जीनियस दिमाग ही था कि उन्होंने बिना किसी नंबर का इस्तेमाल किया| आर्यभट्ट ने एक ऐसे सिस्टम को इन्वेंट किया था जिसके अंदर नंबर्स को शब्दों में बदलकर लिखा जा सकता था| यह एक तरह का इंक्रिप्शन था जिसकी मदद से नंबर्स को संस्कृत के छोटे-छोटे अक्षरों या फिर शब्दों में बदला जाता था| फिर चाहे वह नंबर कितना ही बड़ा और मुश्किल क्यों ना हो और इसी इंक्रिप्शन का इस्तेमाल करके आर्यभट्ट ने अपनी ग्रंथ आर्य को लिखा था| सेंटेंस नजर आते हैं वह असल में शब्द नहीं बल्कि गणित के बड़े-बड़े नंबर्स हैं| आर्यभट्ट ने इस इंक्रिप्शन को इसलिए इन्वेंट किया था ताकि बड़े और मुश्किल नंबर्स भी आसानी से लिखें और बोले जा सके|

एक अनोखी कहानी :-

apj abdul kalam information in hindi

आर्यभट्ट का जीवन परिचय/aryabhatta

आर्यभट्ट का जीवन परिचय/aryabhatta

एक अनोखी कहानी :-
भगत सिंह का जीवन परिचय/bhagat singh history

इसी तरह का एक और इंस्ट्रक्शन सिस्टम हमारे भारत की राज्य केरल में भी इस्तेमाल किया जाता है| मलयालम भाषाओं की अक्षरों और शब्दों में बदलकर लिखा जाता है| काफी कठीण लगता है लेकिन आर्यभट्ट ने इस पूरे सिस्टम को सिर्फ दो लाइनों के श्लोक में ही पूरी तरह डिस्क्राइब किया हुआ है यही वजह है कि आज भी दुनिया की भाषा मानी जाती है| लेकिन दुनिया में आर्यभट्ट की वह पहले इंसान थे जिन्होंने पी की सही-सही वैल्यू 4th डिजिटल तक निकाली थी| उन्होंने अपने कैलकुलेशन के जरिए पी की वैल्यू 3.1416 बताई थी और साथ ही यह भी लिखा था कि यह वैल्यू एक्यूरेट नहीं बल्कि अनुमानित है| इसे पता चलता है कि वह पी की कांसेप्ट को अच्छी तरह जानते थे| इसके अलावा आर्यभट्ट ने हमें पी का इस्तेमाल किए बिना सर्कल के एरिया को कैलकुलेट करने का तरीका और फार्मूला भी बताया है उन्होंने लिखा है कि, सर्कल के सरकम्फ्रेंसेस यानी निकल जाता है दुनिया में इस तरह के फार्मूले देने की वजह से उन्हें इतिहास के सबसे महान मैथमेटिशियन में शुमार किया जाता है|आर्यभट्ट ने अपने इस ग्रंथ के अंदर अपनी खुद की जन्म तिथि जन्म स्थानऔरऔर इस ग्रंथ के लिखे जाने की तारीख भी बताई है| उनके अनुसार उनका जन्म 21 मार्च सन 475 ईस्वी में कुसुमपुर नाम की एक जगह पर हुआ था| बिहार की राजधानी पटना शहर का नाम प्राचीन समय में कुसुमपुर हुआ करता था| इसके अलावा आर्यभट्ट ने अपनी ग्रंथ आर्यभट्ट को लिखने की तारीख 21 मार्च सन 499 ई बताई है|

आर्यभट्ट का जीवन परिचय/aryabhatta

आर्यभट्ट की एक और महान खोज

                   आर्यभट्ट की एक और महान खोज के बारे में बताते हैं| दोस्तों आप में से बहुत से लोगों ने अपने स्कूल या कॉलेज के समय में ट्रिग्नोमेट्री के अंदर साइन थीटा और कोस थीटा से जुड़ी मैथमेटिकल इक्वेशंस को सॉल्व किया होगा| जिसमें हमें यह बताया गया है कि साइन वेव और साइन फंक्शन किस तरह से काम करते हैं और आपको जानकर हैरानी होगी कि इस साइन फंक्शन का इन्वेंशन भी आर्यभट्ट ने किया था| उनके ग्रेनद आरटीए के अंदर उन्होंने एक श्लोक लिखा है जिसका मतलब निकालने के बाद यह पता चलता है कि आर्यभट्ट उसमें साइन फंक्शन की ही बात कर रहे थे यहां एक और मजे की बात यह है कि साइंस शब्द भी असल में संस्कृत भाषा से ही निकाल कर बना है| दर्शन प्राचीन समय में भारत के अंदर साइन फंक्शन को जाकर बुलाया जाता था यह संस्कृत भाषा का एक शब्द है जिसका मतलब एक मुंडा हुआ या कहीं घुमावदार धनुष होता है| सबसे पहले या शब्द को पर्शियन भाषा में ट्रांसलेट करके शिव नाम दिया गया था| इसके बाद यूरोप के अंदर जीव को लैटिन भाषा में ट्रांसलेट करके सिनाम का नाम दे दिया गया और फिर अंत में अंग्रेजी भाषा में ट्रांसलेट करके साइन नाम दिया गया जिसको वह दुनिया भर में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है तो दोस्तों जैसा कि हमने आपको बताया कि आर्यभट्ट ने अपनी ग्रंथ आर्यभट्ट के अंदर 121 श्लोक लिखे हैं और उनमें से हर एक श्लोक अपने आप में कोई महत्वपूर्ण खोज या इन्वेंशन को समाए हुए हैं| उनकी उन सभी खोजने में से एक वह मशहूर जीरो की खोज भी है जिसको लेकर आज हम सभी भारतीय गर्व महसूस करते हैं| वैसे इस बात में कोई शक नहीं की जीरो ही आर्यभट्ट की सबसे बड़ी खोज थी लेकिन जैसा कि हमने आपको बताया कि जीरो के अलावा भी उन्होंने दुनिया को बहुत कुछ दिया है|

Leave a Comment