रावण का इतिहास / ravan
रावण एक ऐसा व्यक्तित्व इसे खत्म करने के लिए स्वयं भगवान विष्णु को धरती पर आना पड़ा| एक ऐसा राजा जिसे आज तक सारी दुनिया जानती है महादेव का सबसे बड़ा भक्त और अपने जमाने का सबसे आधुनिक बुद्धिजीवी| रामायण हमारे हिंदू धर्म का ऐसा ग्रंथ है जिसके बारे में हर किसी की उत्सुकता होती है और उस ग्रंथ के मुख्य किरदारों में से एक रावण की है|
रावण की कहानी शुरू होती है भागवत पुराण से, कहा जाता है विष्णु जी के लोग वैकुंठ में जय और विजय नाम के दो द्वारपाल थे| ब्रह्मा के चार पुत्र थे जो अपने अपार तपोबल और पवित्रता के कारण बच्चों के रूप में नजर आते थे| एक बार उन चारों ने वैकुंठ जाकर भगवान विष्णु से मिलने की योजना बनाई| लेकिन जय और विजय ने उन्हें बच्चा समझकर वैकुंठ के द्वार पर ही रोक दिया और कहा कि यह विष्णु के आराम करने का समय है वह अभी किसी से नहीं मिल सकते| ब्रह्मा के पुत्रों ने जय और विजय से कहा भगवान विष्णु अपने भक्तों के लिए हमेशा उपलब्ध होते हैं और क्रोध में आकर उन्हें श्राप दिया कि उन दोनों को वैकुंठ का त्याग करके भूलोक में इंसानों की तरह रहना होगा| इसी दौरान वहां भगवान् विष्णु प्रकट हुए और जय विजय ने उनसे प्रार्थना की कि वह अपने शाप से मुक्त करवायें| विष्णु ने दोनों से कहा कि ब्रह्मा के पुत्रों का श्राप है इसलिए वह वापस नहीं हो सकता| विष्णु ने जय और विजय को दो विकल्प दिए एक विकल्प था वह सात जन्मों तक विष्णु के भक्त बनकर धरती में जिये और दूसरा विकल्प था कि वह तीन जन्मों तक विष्णु के दुश्मन मन का जन्म ले| जय-विजय ने दूसरा विकल्प चुना और इसी शाप के चलते रावण ने धरती पर जन्म लिया| महान ऋषि विश्रवा और राक्षसों की राजकुमारी टैकसी की शादी हुई और उनके गर्भ से रावण का जन्म हुआ| इसी वजह से रावण ने अपनी माता की तरफ से राक्षसों के गुण और शक्तियां और पिता की तरफ से ब्राह्मण की तीक्ष्ण बुद्धि बचपन से मौजूद थी|
रावण अद्भुत प्रतिभावान व्यक्ति था जिसने अपने समय में काफी खोजे की है| रावण ने अपने जीवन में अति कठोर साधना और तप किया इसकी मदद से उसने अपार तपोबल और शक्तियों को प्राप्त किया था| रावण ने अष्ट सिद्धि, नौ निधि के साथ-साथ हजारों सिद्धियां प्राप्त की थी जिनकी मदद से ओ इतना शक्तिशाली बना कि तीनों लोकों में उसके जैसा शक्तिशाली व्यक्तित्व ढूंढना मुश्किल हो गया था| रावण के 10 सिर बताए जाते हैं और इसका अपना ही रहस्य है| रावण के 10 सिर होने के रहस्य के पीछे तीन अलग-अलग अर्थ मौजूद है| पहला यह कि रावण ने ब्रह्मा जी की तपस्या की थी और भक्तिभाव में अपना सर काटकर उन्हें समर्पित किया लेकिन जैसे ही वह अक्षर काटता उसका दूसरा से निकल जाता था इसी तरह एक-एक करके रावण ने 10 से चढ़ाए थे| इस बात से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने रावण को अमरत्व का वरदान दिया जिसकी वजह से रावण की नाभि में अमृत कुंड की स्थापना हुई| अगर कोई रावण के सिर्फ कितनी भी बार काटे और एक नया सिर्फ निकल आता था| इसी तरह रावण का कोई भी अंग काटने पर वह वापस आ जाता था और दूसरा तर्क यह है कि रावण के पिता ऋषि विश्रवा ने रावण के लिए मंत्रों की एक ऐसी माला बनाई थी जिसे पहनने पर एक ही सिर के 10 प्रतिबिंब दिखाई देते थे| रावण उस माला को युद्ध के दौरान पहना करता था| तीसरा तर्क यह है कि रावण ने छह शास्त्रों और चार वेदों पर महारत हासिल कर ली थी इसी एक मस्तक के लिए इतना ज्ञान अकल्पनीय होता है इसलिए रावण को 10 सिर वाला कहा जाता है| रावण की शादी मंदोदरी से हुई जो असुरों के राजा माया सूर और हेमा अप्सरा की पुत्री थी| इसलिए मंदोधरी भी काफी शक्तिशाली और अपार सौंदर्य से परिपूर्ण स्त्री थी|
रावण के कुछ हिस्सों से उसके व्यक्तित्व के बारे में कई बातें पता चलती है| रावण एक कुशल राजा था और अक्सर अपनी सेना के आगे चलता था कई युद्ध रावण ने बिना सेना के अकेली सी जीत लिए थे और उसे पराजित करने वाला इस संसार में कोई नहीं था| रावण के शासनकाल में लंका की प्रजा सबसे ज्यादा खुश और समृध्दि थी इसी वजह से वहां के लोग आज तक रावण को भगवान मानकर उसकी पूजा करते हैं| रावण अपने परिवार की बहुत परवाह करता था और उनकी सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता था|जब रावण और कुंभकर्ण ने ब्रह्मा जी की तपस्या की अब कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से इंद्रासन मांगना चाहता था लेकिन छल के द्वारा उसके मूह से निर्वासन बुलवाया गया इसकी वजह से वह हमेशा सोता रहता था| रावण ने अपने भाई के लिए कठोर तपस्या करके कुंभकर्ण की नींद की अवधि 6 महा करवाई थी| अपनी बहन शूर्पणखा के अपमान का बदला लेने के लिए रावण स्वयं नारायण से भिड़ गया और अपनी पत्नी मंदोदरी के लिए वह एक ऐसे यज्ञ से उठ गया था जिसके पूरा होने पर पूरी वानर सेना का अंत निश्चित था|
रावण जैसे शक्तिशाली योद्धा को मारना बेहद मुश्किल था क्योंकि रावण ने खुद नियम लोग पर आक्रमण करके यमराज को परास्त किया था और नरक भोग रही आत्माओं को मुक्त करके अपनी सेना में शामिल कर लिया था इतना ही नहीं ब्रह्मा से वरदान मिलने के बाद रावण ने नाग लोक पर आक्रमण करके नागराज से युद्ध किया जो धरती लोक से काफी उन्नत और विशाल है| नागराज रावण का वध नहीं कर पाए और रावण से दोस्ती कर ली अब से नाग वंश के लोग रावण के मित्र है|
रावण के सबसे बड़े रहस्य
रावण का शव सुरक्षित है और कलयुग के अंत में वह पुणे अपने शरीर में प्रवेश कर कि वेदों और उपनिषदों का ज्ञान लिपिबद्ध करेगा क्योंकि कलियुग में धरती का नाश हो चुका होगा| श्रीलंका सरकार की विशेष टीम ने रामायण से जुड़े सभी सबूतों को ढूंढने की कोशिश है कि हैं और उन्हें भारी सफलता मिली है| इसी खोज के दौरान इस टीम का सामना हुआ रावण की मम्मी से| जब राम ने रावण का वध किया तब धरती से अधर्म का अंत हुआ और जीत की खुशी में लोगों ने रावण के शव पर ध्यान ही नहीं दिया| उसका शव काफी समय तक रखा रहा जिसे नाग वंश के लोग अपने साथ ले गए| नागराज ने रावण को जीवित करने की अपार कोशिशें की लेकिन वह असफल रहे और इसके बाद उन्होंने रावण के शव को खास जड़ी-बूटियों और शहद की मदद से संरक्षित करके एक गुफा में छुपा दिया था| उस जंगल के आसपास रहने वाले लोगों का दावा है कि वह सदियों से इस बात को जानते हैं कि रावण का शव किस गुफाओं में संरक्षित है| श्रीलंका के घने जंगलों में रंगा इलाके में मौजूद है एक पहाड़ जिसकी गुफा में रावण के शव के होने का दावा किया जाता है| रिसर्च टीम ने बताया कि उन्होंने उस गुफा तक पहुंचने की ढेर सारी कोशिश है कि अब जाकर सफल हुवे क्योंकि वहां खतरनाक जानवर और जहरीले सांप मौजूद है जो उस गुफा की निगरानी करते हैं| टीम का यहां तक कहना है कि वह जैसे ही उस गुफा के करीब पहुंचते थे अचानक मौसम बदल जाता था और कई बार पेड़-पौधे अपनी जगह बदलते थे| वहां मौजूद लोगों का कहना है कि ताबूत को मंत्रों द्वारा संरक्षित किया गया है जिसकी वजह से उस शव को बाहर निकालना संभव नहीं है|
रिसर्च टीम वूफर तक पहुंची और उन्होंने वहां 18 फीट लंबा और पत्थर का ताबूत भी देखा इसके ऊपर अजीब जड़ी-बूटियों का लेख भी पाया गया है| गुफाओं में ताबूत को इस प्रकार से रखा गया है वहां एक भी पत्थर के हिलने ने से पूरा ढांचा ध्वस्त हो सकता है| इसी वजह से उस ताबूत को बाहर निकालना संभव नहीं| लेकिन दोस्तों यह बात आज तक रहस्य ही है उस ताबूत में रावण का शव है क्योंकि कुछ लोगों का मानना है कि रावण का अंतिम संस्कार हुआ था और उसे विधि-विधान से जलाया गया था|धन्यवाद