मुगल साम्राज्य का इतिहास/mughal empire

मुगल साम्राज्य का इतिहास/mughal empire

बाबर का इतिहास

मुगलों ने भारत पर सबसे अधिक शासन किया था जिसमें बाबर हिमायू अकबर जहांगीर सांजा और औरंगजेब थे|बाबर ने भारत पर 1519 ईसवी से लेकर 1524 ईसवी के मध्य चार बार आक्रमण किया था| इन युद्धों में उसने तोप खाने का प्रयोग किया था इसके बाद 21 अप्रैल 1526 ईसवी को पानीपत के मैदान में बाबर का सामना हुआ दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी से जिसके पास 1 लाख सैनिक और 1000 हाथियों की एक विशाल सेना थी| इस युद्ध में बाबर ने ताल्गोमा पद्धति का प्रयोग किया था| बाबर की सेना इब्राहिम लोदी की सेना से संख्या में कम थी लेकिन बाबर ने अपनी सूझबूझ और तोपों की मदद से इस युद्ध को अपने हक में कर लिया और विजय रहा पानीपत की इस लड़ाई के बाद दिल्ली से आगरा तक के क्षेत्र पर बाबर का अधिकार हो गया|

मुगल साम्राज्य का इतिहास/mughal empire

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लेकिन अभी भी बाबर की स्थिति मजबूत नहीं थी क्योंकि उसे एक बड़ी चुनौती का सामना करना था उस समय राजस्थान के राणा सांगा एक शक्तिशाली राजा थे जिन्होंने बाबर को बयाना के युद्ध में बुरी तरह से पराजित किया था| राणा सांगा के पास 2 लाख की एक विशाल सेना थी जब बाबर और राणा सांगा का युद्ध अनिवार्य हो गया था, तो बाबर की सेना राणा सांगा से भयभीत हो गई थी| राणा सांगा राजपूताना का एक मजबूत शासक था जिसके बारे में जानकर बाबर की सेना उससे डरने लगी थी अपनी सेना को डरता हुआ देख बावन ने इस युद्ध को जिहाद में घोषित कर दिया| 17 मार्च 1527 ईसवी को नवा के मैदान में बाबर और राणा सांगा के मध्य एक भयंकर युद्ध हुआ इस युद्ध में राणा सांगा ने बाबर की सेना पर एक जोरदार वार किया लेकिन बावन ने अपने तोप खाने का प्रयोग कर राणा सांगा की सेना को पीछे धकेल दिया जिससे धीरे-धीरे राणा सांगा की सेना कम होने लगी और आखिर में उसे पराजय का सामना करना पड़ा|

खानवा की विजय के बाद बावन ने गाजी की उपाधि धारण कर ली खानवा की इस जीत के बाद दिल्ली और आगरा के क्षेत्र में बाबर की स्थिति मजबूत हो गई थी इस युद्ध के बाद इसने मालवा के क्षेत्र में चंदेरी के राजा मोदनीराय को पराजित कर दिया था|26 डिसेंबर १५३० ईसवी को उनकी आग्रा मे मृत्यु हो गयी| पहले अस्थाई रूप से आगरा में दफनाया गया और बाद में काबुल ले जाकर स्थाई रूप से दफना दिया गया| इसकी मृत्यु के बाद इसका पुत्र हिमायू गद्दी पर बैठा, बाबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र 1530 ईसवी में बादशाह बना हि मायूं बाबर की तीसरी बेगम महाम का पुत्र था| उस समय उसकी उम्र केवल 22 वर्ष की थी|

गद्दी पर बैठते ही हिमायू को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा था क्योंकि बाबर को प्रशासन को मजबूत बनाने के लिए में नहीं मिला था| राज्य की आर्थिक स्थिति भी खराब थी दूसरी ओर से अफगान सरदार मुगलों को भारत से बाहर निकालना चाहते थे 1531 ईसवी में हिमायू ने कालिंजर के शासक प्रताप रुद्रदेव को हराया था लेकिन यह जीत उसकी कोई बड़ी जीत नहीं थी क्योंकि उसे पूर्व में अफगान की बढ़ती हुई ताकत को और गुजरात के शासक बहादुर शाह से ज्यादा खतरा था शुरुआत में हिमायू का लगा कि उसको अफगान से ज्यादा खतरा है इसलिए उसने 1532 ईसवी में अफगान को हराकर जौनपुर पर कब्जा कर लिया और उसके बाद उसने चुनार के किले पर
घेरा डाल दिया|मुगल साम्राज्य का इतिहास/mughal empire

चुनारगढ़ के किले को पूर्वी भारत का प्रवेश द्वार के रूप में देखा जाता था उस समय उस किले पर एक अफगान सरदार शेर खां का अधिकार था| चार महीने की घेराबंदी के बाद हुमायूं और शेर खां के बीच एक संधि हुई जिसमें चुनार के किले पर शेर खां का ही अधिकार रहना था उसके बदले उसने मुगलों से सदा वफादार रहने का वचन दिया था और अपने एक बेटे को हिमायू की सेवा में भेजा था| हिमायू आगरा जल्दी लौटना चाहता था क्योंकि इसी बीच गुजरात के शासक बहादुर शाह की शक्ति आगरा की सीमाओं तक बढ़ने लगी थी वह इस बात से परेशान था बहादुर शाह ने गद्दीपर बैठते ही मालवा और चित्तौड़ को जीत लिया था और अब वह आगरा फतेह करना चाहता था| इस खतरे को मिटाने के लिए हिमायू ने मालवा पर आक्रमण कर कर दिया और उसे जीत लिया|

मालवा से बहादुरशाह चित्तौड़ गड आ गया लेकिन हिमायू की आक्रमण की खबर सुनते ही वह चित्तौड़ से भी भाग खड़ा हुआ और मांडू चला गया हिमायू ने उसका पीछा किया और मांडू को भी जीत लिया इसके बाद बहादुर शाह चंपानेर आ गया लेकिन हिमायू ने अगस्त 1535 ईसवी को चंपानेर पर भी अधिकार कर लिया इन सभी युद्धों में हिमायू को बहुत सारा धन प्राप्त हुआ इसके बाद बहादुर शाह कई स्थानों पर गया और कुछ समय बाद वह एक पुर्तगाली गवर्नर से हाता पाई में समुद्र में जा गिरा और उसकी मृत्यु हो गई| जिसके साथ ही बहादुर शाह का खतरा हमेशा के लिए मिट गया| हुमायूं इतने दिन आगरा से बाहर रहा जिसके पीछे शेरखान ने अपनी ताकत बढ़ा ली थी इस बात को जानकर हिमायू ने फिर से चुनार पर घेरा डाल दिया और 6 महीने की घेराबंदी के बाद उसे जीत लिया| शेरखान ने वहां से आकर रतासर किले पर कब्जा कर लिया और इसके बाद बंगाल और उसकी राजधानी गौड़ पर अधिकार कर लिया| हिमायू आक्रमण के लिए गौड़ आ गया उसने गौर में कानून व्यवस्था संभाली लेकिन उसकी स्थिति तब ज्यादा बिगड़ गई जब उसे पता चला कि हिंदा आगरा की गद्दी को छीनना चाहता है|

शेरखान ने उसे शांति का प्रस्ताव भेजा| वह उसकी बातों में आकर एक छोटी सेना की टुकड़ी को गौड़ में छोड़कर आगरा लौट रहा था और रास्ते में कर्मनासा नदी के पास अफगान की फौज थी जिन्होंने उस पर अचानक हमला कर दिया| वह उस युद्ध से किसी तरह भी जान बचाने में सफल हो गया और आगरा आ गया| उसने आगरा आकर एक सेना तैयार की और मई 1540 ईसवी में कन्नौज में हिमायू और अफगान के बीच एक युद्ध हुआ जिसमें हिमायू की पराजय हुई इस युद्ध के बाद हिमायू दरदर भटकने के लिए मजबूर हो गया किसी ने उसका साथ नहीं दिया और आखिर में वह ईरान चला गया और ईरान के साथ की मदद से उसने 1545 ईसवी में काबुल और कादर पर अपना अधिकार कर लिया इसके बाद उसको मच्छी वारा के युद्ध में बड़ी सफलता मिली| 1555 में मच्छी बारा और सरहिंद के युद्ध में उसने सिकंदर शाह सूर को हराकर दिल्ली पर अधिकार कर लिया लेकिन उसके भाग में राज्य भोग ज्यादा दिन तक नहीं था| वह एक दिन दीन पना पुस्तकालय की पहली मंजिल से गिर गया और उसकी मृत्यु हो गई| हिमायू का जीवन संघर्ष भरा था वह राजा से फकीर और फकीर से राजा बना था|

अकबर का इतिहास (1556-1605 ई.)

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हिमायू के बाद उसका पुत्र अकबर गद्दी पर बैठा जिसने मुगल साम्राज्य को एक नई दिशा दी अकबर को मुगल वंश का एक महान शासक माना जाता है| अकबर का जन्म एक राजपूत के महल में हुआ था| जब हिमायू शेरशाह सोरी से पराजित होकर भारत को छोड़ने के लिए मजबूर हो गया था तो उसे अमरकोट के राजा राणा बीर साल के महलों में शरण मिली थी जहां पर सन 1542 ईसवी में अकबर का जन्म हुआ| अकबर की माता का नाम हामीदा बानो बेगम था| हिमायूं की मृत्यु के समय अकबर पंजाब में काला नौर नामक स्थान पर अफगान के खिलाफ मुगल सेना की कमान संभाले हुए था| काला नौर में ही मात्र 13 वर्ष और चार महीने की उम्र में उसके सर पर मुगलिया ताज रख दिया गया| यह ताज कांटों से भरा था क्योंकि अफगानी अब भी ताकतवर थे| चुनार से बंगाल तक का क्षेत्र शेरशाह के एक भतीज आदिल शाह के कब्जे में था| आदिल शाह ने मुगलों को भारत से बाहर निकालने की जिम्मेदारी हेमू को दे रखी थी|

हेमू एक ताकतवर योद्धा था जिसने आगरा पर अधिकार कर लिया और 50 हजार घुड़सवार और 500 हाथियों की सेना लेकर दिल्ली की ओर चल दिया और वहां दिल्ली के करीब हेमू ने मुगलों को पराजित कर दिया और नगर पर कब्जा कर लिया इसके बाद उसने अपने आप को एक स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया था और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी इस उपाधि को धारण करने वाला वह भारत का 14 वां शासक था| इस युद्ध को हारने के बाद अकबर और बैरम खां ने तुरंत देर ना करते हुए अपनी सेना को दिल्ली की ओर बढ़ा दिया बैरम खां अकबर का एक वकील था| अकबर ने बैरम खां को खाने खाना की उपाधि दी थी| मुगलों और हेमू में एक बार फिर पानीपत के मैदान में 5 नवंबर 1556 ईसवी को एक भयंकर युद्ध हुआ जिसमें हेमू की आंख पर एक तीर जा लगा और उसकी मृत्यु हो गई अब अकबर को अपना साम्राज्य एक नए सिरे से शुरू करना था|

बैरम खान ने लगभग चार वर्षों तक शासन संभाला इसके बाद अकबर ने शासन व्यवस्था अपने हाथों में ले ली जिससे नाराज होकर बैरम खान ने विद्रोह कर दिया और 1560 ईसवी में तिलवाड़ा का युद्ध हुआ जिसमें बैरम खान ने आत्मसमर्पण कर दिया| अकबर ने उसका स्वागत किया और उसे मक्का जाने को कहा, मक्का जाते वक्त रस्ते में अफगानो ने उसकी हत्या कर दी जिसके बाद उसकी विधवा पत्नी से उसने विवाह कर लिया और उसके बेटे को अपने बेटे की तरह पाला जो बड़ा होकर अब्दुल रहीम खाने खाना के नाम से प्रसिद्ध हुआ| बैरम खान के विद्रोह के बाद अकबर ने अपने मुंह बोले भाई आदम खां को भी किले से फेकवाकर मार डाला था क्योंकि उसने वजीर शमसुद्दीन अतगा खां को छुरा घोप कर मार डाला था जिससे अकबर आग बबूला हो गया| इसके बाद अकबर ने उज बेगों के इस विद्रोह को भी दबाया और उन पर विजय प्राप्त की अकबर को एक के बाद एक कामयाबी मिलती चली गई उसने मध्य प्रदेश और गुजरात को भी जीत लिया था| आगरा से गुजरात जाने का रास्ता चित्तौड़ होकर जाता था इसलिए उसने चित्तौड़ के किले को चारों ओर से घेर लिया उस समय चित्तौड़ पर राणा उदय सिंह का राज था|मुगल साम्राज्य का इतिहास/mughal empire

राणा उदय सिंह अपने युद्ध की कमान वीर जेमल और फत्ता को देकर चला गया जेमल और फत्ता बड़ी ही बहादुरी से लड़े जिनको देखकर अकबर दंग रह गया लेकिन 6 महीने की घेराबंदी के बाद उसने चित्तौड़ पर विजय प्राप्त कर ली जब वह महल में गया तो उसने बेबस और बेसहारा किसानों औरतों और बच्चों का कत्लेआम कर दिया था| यह अकबर के जीवन का पहला नर सिंगार था इस युद्ध में जैमल और फत्ता की वड़ता को देखते हुए अकबर ने आगरा के किले के द्वार पर हाथियों पर बैठे इनकी प्रतिमा लगवाने का आदेश दिया| अकबर ने इस के बाद कई युद्ध और जीते और अपने साम्राज्य का विस्तार किया| 1576 ईसवी में बिहार में दाऊद खां को भी पराजित कर मार डाला गया जिसके बाद उत्तर भारत में अंतिम अफगान राज्य भी मिट गया और मुगलों को एक नई सफलता मिली|

अकबर ने राजपूत राजाओं से अच्छे संबंध बनाए थे जिसकी वजह से उसको राजपूतों का भी साथ मिला था| अकबर ने मेवाड राज्य को छोड़कर लगभग पूरे भारत में मुगलिया झंडा फहरा दिया था क्योंकि मेवाड़ में उस समय महाराणा प्रताप का राज था जिसको अकबर आजीवन नहीं हरा पाया था| अकबर को महान राजा इसलिए कहा जाता है क्योंकि उसके राज्य में सभी धर्मों का सम्मान होता था क्योंकि उसका जन्म एक राजपूत के घर में हुआ था इसलिए उसका अकबर के जीवन पर काफी प्रभाव पड़ा था| अकबर ने धर्म के नाम पर कभी भी किसी के साथ अत्याचार नहीं किया था वह सभी धर्मों का सम्मान करता था| अकबर की विशाल हृदय ता इसलिए भी मानी जाती है क्योंकि 1562 ईसवी में उसने युद्ध बंदियों को गुलाम बनाने की प्रथा पर रोक लगा दी थी और 1563 ईसवी में उसने तीर्थक को भी समाप्त कर दिया था| 1564 ईसवी में अकबर ने जजिया कर को भी हटा दिया था|

1575 ईसवी में उसने इबादत खाने का निर्माण करवाया जिसमें आलिम फकीरों और सूफियों को वह बुला था और उनके प्रवचन सुनता था 1578 ईसवी में उसने इबादत खाने के द्वार सभी धर्मों के लिए खोल दिए थे| अकबर के दरबार में नौ नवरत्न थे जो उसकी विशेषता को और भी बढ़ाते थे| अकबर ने अपने जीवन काल में और भी ऐसे कई कार्य किए थे जो किसी ने अभी तक के इतिहास में नहीं किए थे इसके शासनकाल में किसी के भी धर्म को हानि नहीं पहुंची थी| अकबर ने सिक्कों के तीसरे गुरु अमरदास से भी भेंट की और चौथे गुरु रामदास को 500 बीघा जमीन दान की जिस जगह पर आज अमृतसर शहर बसा हुआ है| अकबर ने समाज सुधार के लिए सती प्रथा पर भी रोक लगाई थी और विधवा विवाह को कानूनी मान्यता दी थी इसके अलावा वैश्या ओ के लिए शैतानपूर नामक नगर कि स्थापना कि थी|25 अक्टूबर 1605 को अकबर की मृत्यु हो गई| अकबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सलीम (जहांगीर)गद्दी पर बैठा|

जहांगीर का इतिहस

25 अक्टूबर 1605 ईसवी को अकबर की मृत्यु के बाद 3 नवंबर को सलीम का राज्य अभिषेक हुआ उसने अपने आप को जहांगीर की उपाधि से नवाजा| सलीम अकबर और जयपुर की राजकुमारी हरका बाई का पुत्र था| सलीम की भी शादी दो राजपूत राजकुमारियों से हुई जिसमें एक जयपुर की राजकुमारी मानवाई तथा दूसरी जोधपुर की राजकुमारी जोधाबाई थी| मानवाई ने सलीम की आदतों से परेशान होकर आत्महत्या कर ली| आगरा के लाल किले में सलीम का राज्याभिषेक हुआ| सलीम ने गद्दी पर बैठते ही उन सभी लोगों को उच्च पद प्रदान किए थे जिन्होंने विपत्ति के समय उसका साथ दिया था| गद्दी पर बैठते ही जहांगीर ने जनता की भलाई के लिए 12 अध्यादेश जारी किए थे जिन्हें हम दस्तूर उल अमल या आईने जहांगीरी के नाम से जानते हैं| वह अकबर की तरह उदारवादी भावना पर चलना चाहता था उसने यमुना तट से लाल किले तक एक स्वर्ण जंजीर लगा दी थी जिससे कोई फरियादी आकर उससे मदद मांग सकता था| जहांगीर के शासनकाल में मेवाड़ के राणा अमर सिंह ने भी जहांगीर से संधि कर ली थी जिसमें संधि के शर्तों के मुताबिक उन्होंने मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की थी|

जांगीर ने अमर सिंह के पुत्र करण सिंह का आगरा में भव्य स्वागत किया और उसे गले लगाकर 5000 का मनसबदार बना दिया| 1623 ईसवी में खुर्रम यानी कि शाजा ने भी जहांगीर से विद्रोह कर दिया और आगरा पर आक्रमण कर दिया लेकिन इस युद्ध में साजा की पराजय हुई वह कई जगहों पर मदद के लिए घूमा पर उसे कहीं भी किसी से भी मदद नहीं मिली और आखिर में वह निराश होकर आगरा लौट आया जहां पर जहांगीर से उसने क्षमा याचना की और जहांगीर ने उसे माफ कर दिया और बालाघाट की जागीर उसे दे दी| जहांगीर ने दक्षिण और कांगड़ा के युद्धों पर भी विजय प्राप्त कर ली थी| जंग ने जजिया और तीर्थक को बंद रखा और हिंदुओं को मंदिर बनाने की इजाजत दे दी थी जिसके बाद अनेक मंदिर बनवाए गए जिसमें मथुरा का केशव देवराय मंदिर प्रसिद्ध है| कभी-कभी झांगीर ने निर्दयता का भी प्रदर्शन किया था जिसमें उसने राजोरी के ब्राह्मणों को दंडित किया था और पुर्तगालियों से युद्ध करते समय उसने गिर्जा घरों को बंद करवा दिया था|

कांगड़ में उसने ज्वालामुखी मंदिर को तोड़वा दिया| जहां पर जहांगीर नेने कट्टरता दिखाई थी वहां पर कुछ राजनीतिक कारण भी सामने आए थे अगर जहांगीर की राजपूत नीति की बात करें तो उसने हिंदुओं को ऊंचे पदों पर नियुक्त किया था| जहांगीर के शासन काल को मुगल काल का स्वर्ण काल भी कहा जाता है जहांगीर को मधुरा और अफीम की लत थी जिसकी वजह से उसका स्वास्थ्य 1620 ईसवी से बिगड़ने लगा था| अत्यधिक मधरा सेवन से उसका स्वास्थ्य ज्यादा खराब हो गया और 29 अटू टूबर 1627 ईसवी को उसकी मृत्यु हो गई| जहांगीर के बाद उसका पुत्र शाहजा गद्दी पर बैठा|

शाहजाहा (1627-1658 ई.)

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शाहजहां का जन्म 5 जनवरी 1592 ईसवी में लाहौर में हुआ था|शाहजहां के बचपन का नाम खुर्रम था उसकी माता का नाम जगत गुसाई था| 1611 ईसवी में जहांगीर ने खुर्रम को 10000 जात व 5000 सवार का मनसब प्रदान किया था| 6 फरवरी 1628 ईसवी को खुर्रम का राज्याभिषेक हुआ और अपने पिता जहांगीर की तरह उसने शाशा बादशाह गाजी की उपाधि धारण की थी| शाहजहां ने बादशाह बनते ही दक्षिण भारत की ओर अभियान शुरू कर दिया उसने अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुंडा पर अपना अधिकार कर लिया इसी समय गोलकुंडा का वजीर मीर जुमला भी मुगलों की सेवा में आ गया उसने सांजा को कोहिनूर हीरा भेट किया था| सांजा के पास सभी प्रकार के साधन उपलब्ध थे 1636 ईसवी तक उसने दक्षिण विजय का कार्य पूरा कर दिया था|

अब वह अपने राज्य का विस्तार मध्य एशिया की तरफ बढ़ाना चाहता था उसने आगे चलकर कुंदूज, खोस और बदकसहा को जीत लिया लेकिन यहां की जलवायु उसे रास नहीं आई थी और 1647 ईसवी में मुगल सेना काबुल से वापस लौट गई इसके बाद मुगल सेना ने उत्तर पश्चिम सीमा पर ध्यान दिया और 1639 ईसवी में कांधार के किले पर अपना कब्जा कर लिया| सांझा की अगर हम धार्मिक नीतियों की बात करें तो साजा इस्लाम को अधिक महत्व देता था| 1632 ईसवी में उसने एक फरमान जारी कर दिया था कि जो मंदिर उसके पिता जहांगीर के शासनकाल में बनवाए गए थे उनको तोड़ दिया जाए| बुंदेलखंड में युद्ध के समय उसने रछा के मंदिरों को तोड़वा दिया था और जुजार सिंह के पुत्रों को बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया था|मुगल साम्राज्य का इतिहास/mughal empire

1636 ईसवी में इसने सिजदा प्रथा का भी अंत कर दिया उसके स्थान पर चहार तस्लीम प्रथा चालू कर दी गई सम्राट के चित्रों पर पगड़ी लगाने पर रोक लगा दी थी| इलाही सम्मत के स्थान पर हिजरी सम्मत चालू कर दिया गया उसने हिंदुओं पर अनेक रोक लगा दी थी पर उसने अहमदाबाद में चिंतामणी मंदिर की मरम्मत करवाई और खममाद में गौ हत्या पर रोक लगा दी थी उसने ज का दर्शन तुलादान आदि हिंदू रीति रिवाजों का पालन किया था और हिंदुओं को ऊंचे पदों पर जारी रखा था| शाहजहां ने लगभग उन्हीं नीतियों का पालन किया जो उसके पिता ने किया था| सन 1657 शाहजहां ईसवी में बीमार पड़ गया और उसके पुत्रों में सत्ता के लिए जंग छिड़ गई उनके बेटों में एक के बाद एक पांच युद्ध हुए थे जिसमें अंत में औरंगजेब ने दारा को हराकर विजय प्राप्त की और गद्दी पर अपना हकदार बन गया|

औरंगजेब (1658-1707 ई.)

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एक और अनोखा इतिहास

रावण का इतिहास

औरंगजेब का जन्म 24 अक्टूबर 1618 ईसवी को दोहद नामक स्थान पर हुआ था| 1634 ईसवी में उसे 10000 का मनसबदार नियुक्त किया गया था| दिल्ली पर अधिकार के बाद उसने 21 जुलाई 1658 ईसवी को दिल्ली में अपना राज्य अभिषेक करवाया लेकिन उसके सामने अभी भी एक बड़ी समस्या थी कि उसके भाई जीवित थे और सिंहासन अभी भी खाली नहीं था लेकिन उसने साजा को राजपथ से हटवा दिया और अपने भाई मुराद को बंदी बना लिया इसके बाद खजुआ में सोजा को और देवराई में दारा को पराजित कर 5 जून 1659 को बड़े ही जोर शोर से अपना विधिवत राज्य अभिषेक करवाया| औरंगजेब एक सुन्नी मुसलमान था जिसकी वजह से हिंदुओं को काफी अत्याचार सहना पड़ा था वह अपने धर्म को अधिक महत्व देता था उसने कई ऐसे कदम उठाए जिसकी वजह से हिंदुओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था|

उसने 1669 ईसवी में शाही दरबार में संगीतकारों को रखने की प्रथा पर रोक लगा दी थी और हिंदुओं की तुलादान प्रथा को भी खत्म कर दिया था| 1679 ईसवी में औरंगजेब ने हिंदू राजाओं की तिलक करने की प्रथा पर रोक लगा दी थी जो अकबर से समय से चली आ रही थी इसने जजिया कर को चालू कर दिया| इसने झरो का दर्शन और हिंदुओं के त्यौहारों पर रोक लगा दी थी इसे ज्योतिष पर विश्वास नहीं था इसलिए दरबार में ज्योतिष को हटा दिया था| औरंगजेब ने यह सब इसलिए किया था क्योंकि वह अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानता था उसकी आस्था और विश्वास केवल अपने धर्म में ही था वह कहता था कि ईश्वर उन्हीं व्यक्तियों को राज सत्ता प्रदान करता है जो अपनी प्रजा की रक्षा और भलाई के लिए कर्तव्य सुचारू रूप से करते हैं| उसे विश्वास था कि उसका कर्तव्य इस्लाम की सेवा में करना है जिसके लिए उसने कई कदम उठाए|

1669 ईसवी में उसने हिंदू मंदिरों को तोड़ दिया हिंदुओं पर आर्थिक दबाब डाला गया था उनके लिए चुंगी के टैक्स को बढ़ा दिया गया 1668 ईसवी में हिंदुओं के धार्मिक मेलों पर रोक लगा दी थी और तीर्थ यात्रा पर कर लगा दिया गया उसने पीरों की मजार और कब्रों पर भी दीपक जलाने की प्रथा को रोक दिया था जिससे पता चलता है कि वह एक कट्टर धार्मिक प्रवृति का शासक था| औरंगजेब के राजपूतों के साथ भी कई युद्ध हुए थे जिसमें मेवाड़ के राणा राज सिंह और बीड़ दुर्गादास ने इसे टक्कर दी थी बीर दुर्गादास ने मारवाड़ को पाने के लिए कई वर्षों तक युद्ध किए थे| बीर दुर्गादास ने औरंगजेब के बेटे अकबर को समझाया कि उसका पिता उसके पूर्वजों की ख्याति को कलंकित कर रहा है इसलिए शहजादा अकबर ने राजपूतों का साथ देने का निर्णय लिया| उसने 1681 ईसवी को स्वयं को सम्राट घोषित कर दिया और औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह कर दिया|मुगल साम्राज्य का इतिहास/mughal empire

राजपूत और शहजादा अकबर अब एक हो चुके थे| औरंगजेब इस बात से चिंतित हो उठा उसने दिल्ली से आकर आमिर पर पड़ाव डाल दिया और कूटनीति का सहारा लिया उसने राजपूतों के शिविर में पर्चे फवा दिए जिसमें लिखा था कि दोनों बाप बेटे मिल कर खूब राजपूतों को बेवकूफ बना रहे हैं इस पत्र से राजपूतों ने अकबर का साथ देने से इंकार कर दिया और उसे हार का सामना करना पड़ा| दुर्गादास राठौर इस बात को समझ गया था कि यह औरंगजेब की एक चाल थी औरंगजेब ने उदयपुर और चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया और करीब 250 मंदिरों को तोड़ दिया| अब दुर्गादास ने शहजादा अकबर को मराठा सम्राट संभाजी महाराज के यहां शरण में भेज दिया दक्षिण में मराठा शक्ति बढ़ रही थी क्योंकि औरंगजेब छत्रपति शिवाजी महाराज को आजीवन पकड़ नहीं पाए थे| अपने बेटे अकबर का पीछा करते हुए औरंगजेब दक्षिण भारत की ओर चल दिया|

इसके बाद छत्रपति संभाजी महाराज और औरंगजेब में कई युद्ध हुए, लेकिन आखिर में औरंगजेब ने संभाजी महाराज को कैद कर लिया और मार डाला| छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु हो जाने के बाद औरंगजेब के लगभग सभी उद्देश्य पूरे हो चुके थे उन्होने बीजापुर और गोलकुंडा पर भी अधिकार कर लिया था| उस समय लगभग पूरे भारत पर औरंगजेब का ही शासन हो चुका था लेकिन मुगल साम्राज्य का पतन भी आरंभ हो चुका था| संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद सभी मराठा राजपूत एक हो गए थे और उन्होंने विद्रोह करना शुरू कर दिया था जिसके बाद उन्होंने औरंगजेब से लगातार संघर्ष किया और कई युद्ध लड़े जिसकी वजह से औरंगजेब को काफी हानि पहुंची और 1705 ईसवी में उसने अपनी हार स्वीकार कर ली जिसके बाद बाद उसने अपनी सेना को उत्तर भारत जाने का आदेश दे दिया| लेकिन 20 फरवरी 1707 ईसवी को अहमदनगर में उसकी मृत्यु हो गई|

औरंगजेब ने दिल्ली की गद्दी पर सबसे अधिक समय तक शासन किया था लेकिन दक्षिण भारत ने उसकी सत्ता को हिलाकर रख दिया था अपने 50 वर्षों के शासनकाल में 26 वर्ष उसने दक्षिण भारत में ही बिता दिए थे| वह 26 वर्षों तक दक्षिण भारत में ही रहा जिसके बाद उत्तर भारत के राजपूत राजाओं ने अपनी शक्ति को बढ़ा लिया था| उसने दूसरे धर्मों के लोगों पर काफी अत्याचार किया था| इसलिए उसकी मृत्यु के बाद जगह-जगह पर विद्रोह होना शुरू हो गया था और धीरे-धीरे मुगल वंश का अंत हो गया| मुस्लिम समुदाय के अनुसार वह एक योग्य शासक था जिसे किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ का शौक नहीं था| वह अपने खर्चे के लिए राजकोष में से एक भी रुपया नहीं लेता था वह टोपिया सिलता था और उन्हें बेचकर अपना खर्च चलाता था| तो यह थी मुगल साम्राज्य का इतिहास/mughal empire की सारी जानकारी

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