भगत सिंह का जीवन परिचय/bhagat singh history
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के हैं जिनके साहस बलिदान और शौर्य की गाथा आज भी देश भर में गई जाती है| शहीद ए आज़म कहे जाने वाले इस वीर पुरुष ने न केवल ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हथियार उठाने बल्कि अपनी कलम की ताकत से भी इन्होंने ब्रिटिशर्स के छक्के छुड़ा दिए| ब्रिटिश को घुटना टेकने पर मजबूर कर देने वाले और भारत माता की जय जयकार करते हुए खुशी-खुशी फांसी का फंदा चूम लेने वाले वीर भगत सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं है| इन्होंने देश के बच्चे बच्चे में मातृभूमि के लिए प्रेम और बलिदान की भावना को जागृत करने का कार्य किया था| महान क्रांतिकारी भगत सिंह का अल्प जीवन काफी प्रेरणा देने वाला है और आज की कहानी में हम इन्हीं महान क्रांतिकारी भगत सिंह के जीवन के बारे में जानेंगे तो चलिए शुरू करते हैं|
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भगत सिंह के प्रारंभिक जीवन
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 में पंजाब के लालपुर जिला के बंगा नामक गांव के एक सिख परिवार में हुआ| उनके जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत तथा स्वर्ण सिंह कॉलोनाइजेशन बिल का विरोध करने के कारण की सजा काट रहे थे| भगत सिंह का पूरा परिवार भी भारत की आजादी के संघर्ष में शामिल था इसलिए इनका बचपन स्वतंत्रता सेनानियों के बीच गुजरा और भगत सिंह के मन में भी छोटी उम्र से ही देश की आजादी का सपना घर कर गया| भगत सिंह अपनी मां विद्यावती आंखों का तारा हुआ करते थे| इन्होंने अपनी माता से बुद्धि कौशल, संवेदनशीलता, सहानुभूति और अंतर ज्ञान जैसे गुण सीखें तथा अपने स्वतंत्रता सेनानी पिता से प्रेरित होते हुए इन्होंने अपने अंदर साहस बलिदान और देश भक्ति की भावना को विकसित किया| देशभक्ति की इसी भावना की झलक हमें उनके बचपन के हिस्से में सांप देखने को मिलती है|भगत सिंह ने अपने पिता को खेत में आम की गुठलियों को बौते हुए देखा|अपने पिता को ऐसा करते हुए देखा भगत ने उनसे प्रश्न किया कि वह क्या कर रहे हैं जवाब देते हुए उनके पिता ने कहा कि वह बी बो रहे हैं जो आगे चलकर पेड़ बनेगा और उन्हें बहुत सारे आम प्रदान करेगा| अपने पिता की इन बातों को सुन भगत सिंह फौरन अपने घर गए और वहां से एक बंदूक लेकर आए और उसे बंदूक को बीज की ही तरह मिट्टी में दबाने लगे उनको ऐसा करते हुए देखा जब उनके पिता ने उनसे प्रश्न किया तो भगत सिंह ने जवाब दिया कि वह बीज की तरह बंदूक बो रही है और कुछ समय बाद उनके पास कई सारी बंदूके होंगे और उन्हें आजादी की जंग लड़ सकेंगे|
भगत सिंह की ऐसी मासूमियत और देशभक्ति की भावना देख उनके पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया और उन्हें यकीन हो गया कि उनका बेटा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान देगा| इसके अलावा भगत सिंह बचपन से ही आक्रामक स्वभाव के थे और अनोखी खेल खेला करते थे| जब वह 5 साल के थे तो अपने साथियों को दो अलग-अलग ग्रुप में बांट देते थे और फिर आपस में एक दूसरे पर आक्रमण कर युद्ध का अभ्यास करते थे| इस तरह का युद्ध अभ्यास भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के उद्देश्य से किया करते थे| भगत सिंह के हर काम में उनके वीर धार और निर्भीक होने का प्रमाण मिलता है| यह बचपन से ही हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित कर लेते थे| जब उनकी शिक्षा दीक्षा की बारी आई तभी उन्होंने लाहौर के ब्रिटिश हुकूमत के स्कूल में दाखिला लेने से साफ मना कर दिया और अपना एडमिशन दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल में कराया| भगत सिंह पढ़ने में काफी होशियार और तेज हुआ करते थे| इन्होंने अपनी कोर्स बुक्स के अलावा देश-विदेश के कई मशहूर किताबों को अध्ययन भी किया| उनकी रुचि खासकर सोशल पॉलीटिकल और इकोनामिक रिफॉर्म्स पर आधारित किताबों के प्रति हुआ करती थी| अध्ययन से छोटी उम्र में ही भगत सिंह पॉलिटिकल सीनरियों का ज्ञान हो चुका था|
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जलियांवाला बाग हत्याकांड
शुरू हुआ 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ इस भयानक ट्रेसर सभी से 12 वर्षीय भगत सिंह इतनी आहत हुई कि वह अगले ही दिन पैदल अमृतसर की ओर चल पड़े| जलियांवाला बाग पहुंचते ही उन्होंने चारों ओर खून से लटपट लाशों का भयानक मंजर देखा| इसलिए उनके अंदर ब्रिटिशर्स के खिलाफ अत्यंत क्रुद्ध और बदले की भावना उत्पन्न हुई| उन्होंने एक बोतल में खून से सनी हुई मिट्टी को भारत और वापस लाहौर आ गए| यहां आने के बाद उन्होंने भारत से मार भगाने का प्रण लिया| वहीं शुरू के दिनों में भगत सिंह महात्मा गांधी के एक बड़े प्रसाद के रूप में जाते थे| उन्हें यह पूर्ण विश्वास है कि गांधी जी अपने अथक प्रयासों से देश को आजाद करवा लेंगे| इसलिए जब महात्मा गांधी ने नॉन को ऑपरेशन मूवमेंट लॉन्च किया| तो सभी देशवासियों की तरह भगत सिंह ने भी आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया| भगत सिंह खुलेआम अंग्रेजों को ललकारा करते थे और गांधी जी के कहने पर ब्रिटिश सरकार द्वारा छापी गई किताबों को चलाया करते थे| देश भर में नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट को फुल सपोर्ट मिल रहा था और सबको यह आशा थी कि जल्द ही ब्रिटिशर्स भारत छोड़कर चले जाएंगे| परंतु जब चौरी चौरा कांड के कारण महात्मा गांधी ने आंदोलन को वापस ले लिया तब भगत सिंह इस फैसले से काफी निराश हुए| और इसी के बाद उन्होंने क्रांतिकारी मार्ग वायलेंस या पीसफुल टैक्स से भारत कभी भी स्वतंत्र नहीं हो सकता और यही से शुरू होती है भगत सिंह के साहस और बलिदान की कहानी|
भगत सिंह के साहस और बलिदान की कहानी
रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज ऑफ़ भगत सिंहकी मुलाकात सुखदेव भगवती चरण समेत अन्य कई क्रांतिकारी से हुई और उनकी सबसे गहरी दोस्ती सुखदेव के साथ हुई| उसे समय आजादी की लड़ाई अपने चरम सीमा पर थी| आपको बता दे कि यह वह दौर था जब अंग्रेज शासको का भारतीयों के खिलाफ अत्याचार बढ़ रहा था| यह सब देखकर भगत सिंह ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और खुद को स्वतंत्रता संग्राम में पूरी तरह समर्पित कर दिया| इसी दौरान उनके घर पर उनकी शादी की बातें भी शुरू होने लगी थी परंतु भगत सिंह ने शादी के प्रस्ताव को यह कहते हुए ठुकरा दिया| यदि मैं भारत की आजादी से पहले विवाह करूंगा तो मौत ही मेरी दुल्हन होगी| शहीद ए आज़म के फैसले से उनके माता-पिता काफी आहत हुई परंतु वे भगत सिंह के देश प्रेम के आगे फैसला लेने के बाद भगत सिंह कानपुर की ओर चल पड़े| देश की आजादी के लिए भगत सिंह सभी युवाओं को जागरूक करना चाहते थे लेकिन हर युवा तक यह संदेश पहुंचाने के लिए उन्हें किसी माध्यम की जरूरत थी| इसके लिए भगत सिंह ने एयर 1926 के अराउंड लाहौर में कीर्ति किस पार्टी ज्वाइन कर ली और इसी पार्टी द्वारा प्रकाशित मैगजीन कीर्ति के लिए काम करने लगे शुरुआत में भगत सिंह ने ब्रिटिशर्स के खिलाफ आक्रामक लेख लिखें और पंपलेट छपाई और ज्यादा से ज्यादा लोगों को ब्रिटिशर्स के खिलाफ बगावत करने के लिए इकट्ठा करना शुरू किया| इसका नाम उन्होंने नौजवान भारत से इस पार्टी का उद्देश्य था वर्कर्स और युवा किसानों को इकट्ठा कर ब्रिटिशर्स के खिलाफ जंग भगत सिंह का ऐसा करना ब्रिटिशर्स को रास नहीं आ रहा था|और 1927 में ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया और ₹60000 देकर भगत सिंह के पिता ने उनकी जमानत करें| परंतु इसके बावजूद भगत सिंह ने ब्रिटिश के विरुद्ध आक्रामक लेख लिखने बंद नहीं किया|
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भगत सिंह का जीवन परिचय/bhagat singh history
इसके बाद 1927 में काकोरी कांड को अंजाम देने वाले हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के कुछ क्रांतिकारी को ब्रिटिशर्स द्वारा सजा सुनाई जिसके तहत रामप्रसाद बिस्मिल समेत चार लोगों को फांसी और 16 लोगों को आजीवन कारावास की सजा दी गई| इस पूरी घटना के बाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की टीम से इस पार्टी का नवनिर्माण करने की इसी संदर्भ में भगत सिंह ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद से मुलाकात की| और दोनों ने मिलकर नौजवान भारत सभा और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को मर्ज करने की योजना बनाई| सितंबर 1928 में दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में एक सीक्रेट मीटिंग की गई और दोनों पार्टी का विलय कर दिया गया और इस नई पार्टी का नाम बड़े ही विचार विमर्श के बाद हिंदुस्तान सोशलिस्ट संगठन स रखा गया इसी दौरान साइमन कमीशन का भारत में आगमन हुआ और पूरे देश में इसका विरोध किया गया लाहौर में ऐसे ही एक विरोध प्रदर्शन को लाला लाजपत राय लीड कर रहे थे| यह लोग साइमन गो बैक के नारे लगाते हुए आगे बढ़ ही रहे थे कि पुलिस ने लाठी चार्ज शुरू कर दिया| इस दौरान लाला लाजपत राय के सर पर लाठी पढ़ने से वह गंभीर रूप से घायल हुए और अस्पताल में उन्होंने यह कहते हुए दम तोड़ा कि उनकी ब्रिटिशर्स के ताबूत पर आखिरी की साबित होगी| अपने गुरु लाला लाजपत राय और अन्य पार्टी मेंबर्स की मृत्यु के कारण भगत सिंह का गुस्सा सातवें आसमान पर था| और वह किसी भी तरह ब्रिटिश से बदला लेना चाहते थे| इसके लिए उन्होंने चंद्रशेखर आजाद राजगुरु और कुछ अन्य क्रांतिकारियों के साथ जेम्स स्कॉट की हत्या करने की एक गुप्त योजना बनाई| प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज का आदेश दिया था |योजना के मुताबिक जेम्स कोर्ट जी पुलिस थाने में तैनात था उसके पास ही भगत सिंह और उनके साथ ही छुप गए कोर्ट के थाने से बाहर निकलने का इंतजार करने लगे और जैसे ही उन्होंने एक पुलिसमैन को थाने से बाहर आते हुए देखा उन्होंने उसे पर गोलियों की बरसात कर दी और वहां से भाग खड़े हुए| परंतु इस पूरे हत्याकांड में एक बहुत बड़ी गलती हो गई थी दरअसल उनके साथ जय गोपाल स्कॉट की सही पहचान नहीं कर पाए और उन्होंने स्कॉट की जगह लाहौर के डिप्टी सुप्रीम टैलेंट आफ पुलिस जेम्स सांडर्स की हत्या कर दी| सांडर्स की हत्या की खबर पूरे भारत में आज की तरह फैल चुकी थी जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह और उनके साथियों को ढूंढने के लिए चारों तरफ जाल बिछा दिया था| हर जगह की पुलिस केवल उन्हें ही ढूंढने में जुड़ चुकी थी| और यह भगत सिंह और उनके साथियों के लिए सबसे बड़ी समस्या थी| इसके लिए भी एक योजना बनाई गई भगत सिंह ने खुद को बचाने के लिए अपने बाल और दाढ़ी करवा दी| एक सिख होते हुए भी देश प्रेम को दर्शाता है| इसके बाद भगत सिंह और राजगुरु ने स्वतंत्रता सेनानी दुर्गा भाभी से मदद मांगी| भगत सिंह के रूप में अंग्रेजी पोशाक लगाकर तैयार हुए दुर्गा भाभी उनकी पत्नी बनी तथा राजगुरु एक नौकर के रूप में रेडी हुए यह तीनों अपना भेष बदलकर लाहौर स्टेशन से कोलकाता की ओर रवाना हुए|
भगत सिंह का जीवन परिचय/bhagat singh history
1 साल तक ब्रिटिश पुलिस सरदार भगत सिंह को अरेस्ट करने में नाकामयाब रहती है| पर फिर 1929 में भगत सिंह अरेस्ट हो जाते हैं और यह गिरफ्तारी भी ब्रिटिश पुलिस की कोई सफलता नहीं होती| भगत सिंह ने तो खुद ही अपने को अरेस्ट कर लिया था|वह यह था कि 1929 में सेंट्रल असेंबली में दो बिल पास किया जा रहे थे| ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल और पब्लिक सेफ्टी बिल ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल जहां वर्कर्स के राइट्स की अगेंस्ट था| वही पब्लिक सेफ्टी बिल इंडिया में सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट की एक्टिविटीज पर लगाम लगाने के लिए लाया जा रहा था| इंडियन नेशनलिस्ट लीडर्स के विरोध के बाद भी ब्रिटिश गवर्नमेंट इन बिल को पास करने जा रही थी और इसीलिए भगत सिंह ने चंद्रशेखर आजाद राजगुरु बटुकेश्वर दत्त और सुखदेव के साथ मिलकर दिल्ली केंद्रीय असेंबली में बम ब्लास्ट करने की योजना बनाएं| परंतु इस पूरी प्रक्रिया में भगत सिंह किसी भी प्रकार का खून खराबा नहीं चाहते थे| वह केवल ब्रिटिश सरकार का ध्यान जनता की मांगों की ओर आकर्षित करना चाहते थे| इसी वजह से उन्होंने लो इंटेंसिटी बम ब्लास्ट करने का निर्णय लिया यह बम किसी को मारने के लिए नहीं था बल्कि भगत सिंह के ही शब्दों में कहें तो भैरों को सुनने के लिए था| और फिर 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह बटुकेश्वर दत्त के साथ दो लोग इंटेंसिटी बम और कुछ पंपलेट के साथ दिल्ली केंद्रीय असेंबली पहुंचे और असेंबली में घुसते ही उन्होंने खाली जगह देखकर बम फेंक दिया|बम काफी जोरों से फटा और पूरा असेंबली हॉल धुएं से भर गया| इसके बाद भगत सिंह ने अपनी पंपलेट को हवा में उड़ा दिया जिस पर साफ-साफ और मोटी-मोटे अक्षरों में लिखा हुआ था पैरों को सुनने के लिए धमाका जरुरी है बता दे कि इस पूरी घटना में किसी को भी कोई क्षति नहीं पहुंची| धुवे का फायदा उठाकर भाग सकते थे परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि जोर-जोर से पूरे असेंबली हॉल में इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाना शुरू कर दिया| भगत सिंह और उनके साथ ही वहां से भागने की कोशिश नहीं करते बल्कि खुद को अरेस्ट कर लेते हैं| वह अपनी आईडियोलॉजी को सभी तक पहुंच सके| अरेस्ट करने के बाद ब्रिटिश गवर्नमेंट भगत सिंह के अगेंस्ट दो कैस चलती है| असेंबली बम कैसे और लाहौर कंस्पायरेसी केस लाहौर कंस्पायरेसी, केस सैंडर्स के मर्डर के लिए जानते हैं की गिरफ्तारी के बाद वीर भगत सिंह के साथ क्या-क्या हुआ
भगत सिंह ने जेल में भी अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा उन्होंने जेल में अंग्रेजी कैदियों और भारतीय कैदियों के बीच होने वाले भेदभाव और उनके साथ हो रहे बुरे व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाएं| इसके साथ ही उन्होंने जेल में पॉलिटिकल बिजनेस के लिए उचित सुविधाएं देने की मांग की थी| इसके लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने जेल में 64 दिन की भूख हड़ताल कर दी इस हड़ताल से अंग्रेजी अफसर घबराने लगे क्योंकि इतने लंबे समय तक जल और अन्य का त्याग करते हुए भी भगत सिंह का जोश उत्साह और देश प्रेम पर करार था| भगत सिंह जेल में रहकर भी आजाद था उन्होंने अपनी तमाम क्रांतिकारी गतिविधियों से जेल में रहते हुए भी ब्रिटिश पुलिस के नाक में तंग कर रखा था| उन्होंने जेल के अंदर कैदियों को एकजुट कर आंदोलन तो किया ही साथ ही जेल के बाहर अपने साथी युवाओं को जागृत करने के लिए लेख भी लिखे| इन लिखो के माध्यम से युवाओं को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करते थे| जेल भगत सिंह ने दोबारा किताबें पढ़ना भी शुरू किया और 2 साल में उन्होंने कम से कम 300 किताबें पढ़ डाली|
इस बीच 7 अक्टूबर 1930 को सांडर्स मर्डर केस के तहत भगत सिंह सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई और 24 मार्च 1931 को इन्हें फांसी देने का निर्णय लिया गया| ब्रिटिश सरकार के इस निर्णय से पूरे भारत में अशोक की लहर दौड़ गई और भारत के कोने में भगत सिंह की रिहाई के लिए लोग प्रदर्शन करने लगे |बात अगर भगत सिंह की करें तो उन्हें फांसी की सजा का कोई डर नहीं था| उनके चेहरे की मुस्कान और हृदय का देश प्रेम अभी भी बरकरा था| बल्कि अब वह और भी ज्यादा जोशीले हो चुके थे| देश भक्ति की उनकी भावना और भी बढ़ चुकी थी| वह खुशी-खुशी अपने प्राण देश की आजादी के लिए भारत माता की आंचल में न्योछावर करने के लिए तैयार थे| परंतु भारतीयों को उनकी फांसी की सजा मंजूर नहीं थी| देश भर में हाहाकार मच चुका था| जैसे-जैसे 24 तारीख नजदीक आ रही थी लोगों का प्रदर्शन एक भयंकर त्रासदी का रूप धारण करने लगा था| ब्रिटिश को यह डर था कि कहीं भारत में इतना बवाल ना हो जाए कि उन्हें अपना यह फैसला वापस लेना पड़े और इसलिए ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह को फांसी पर लटकाने का निर्णय 24 की जगह 23 मार्च को कर दिया|
भगत सिंह की आखिरी इच्छा
फांसी की कुछ दिनों पहले जब जेल अधिकारियों ने भगत सिंह से उनकी आखिरी इच्छा पूछी तो उन्होंने लेनिन की ऑटोबायोग्राफी पढ़ने की इच्छा जागी| उनकी इस डिमांड को ब्रिटिशर्स द्वारा मान लिया गया 23 मार्च को जब जेल अधिकारी उन्हें लेने आए तो भगत सिंह ने उनसे कहा कि इस किताब का मात्र एक पन्ना पढ़ने के लिए बचा है| एक क्रांतिकारी अभी दूसरे क्रांतिकारी से भेंट कर रहा है मुझे यह पढ़ लेने दे| किताब पूरी कर लेने के बाद भगत सिंह जेल अधिकारियों के साथ खुशी-खुशी अपनी मौत को गले लगाने चल पड़े| फांसी के दर्द पर चढ़ने के बाद भगत सिंह ने अपने हाथ पैर रस्सी बांधने और चेहरे को काले कपड़े से ढकने से साफ मना कर दिया| ब्रिटिशर्स ने उनके हाथों को तो नहीं बांधा परंतु उनके सर को कानून के नियम अनुसार ढक दिया| उसके बाद भगत सिंह ने इंकलाब जिंदाबाद का जय घोष करते हुए शाम 7:33 पर अपने साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी के फंदे को खुशी-खुशी चूम लिया| इस तरह भारत माता के इस वीर सपूत को वीरगति प्राप्त हुई| परंतु उनका देश प्रेम उनकी विचारधारा और उनके जज्बे की कहानी आज भी भारत के कोने कोने में बड़े ही उत्साह और गर्व के साथ गाई जाती है|
कंक्लुजन तो दोस्तों यह थी वीर भगत सिंह की कहानी इस कहानी में हमने भगत सिंह के जीवन और आजाद भारत के निर्माण में उनके अहम भूमिका को समझने का प्रयास किया| आशा है आप भी भगत सिंह के गुनो से प्रभावित हुए होंगे| भगत सिंह की ही तरह ऐसी कई स्वतंत्रता सेनानी है जिनके शौर्य और बलिदान के कारण आज हम एक आजाद देश में सांस ले रहे है| नमस्ते