तुलसी माता कि कहाणी/tulsi

तुलसी माता कि कहाणी/tulsi

तुलसी माता कि कहाणी/tulsi की कथा सुनाने जा रहे हैं, प्रेम से बोले तुलसी माता की जय हो| एक समय की बात है कि एक गांव में एक ब्राह्मण और ब्राह्मणी रहती थी| उनकी कोई भी संतान ना थी| ब्राह्मण नित्य नियम से सुबह नदी में स्नान करने जाते और घर आकर पूजा पाठ करते थे| एक दिन ब्राह्मणा नदी स्नान करने के बाद जाने लगा तो पीछे से किसी ने आवाज दी, बाबा मैं भी आऊं… उस ब्राह्मण ने पीछे मुड़कर देखा पर वहां कोई नहीं था, फिर से चले तो फिर आवाज आई ‘बाबा मैं भी चलूं’ ब्राह्मण ने सोचा कोई दिखाई तो देता नहीं कौन बुला रहा है फिर ब्राह्मण ने कहा भूत प्रेत हो तो मत आना कोई देव हो तो आना| इतने में एक छोटी सी कन्या आई और बोली बाबा मैं आपके घर आऊंगी ब्राह्मण ने अंगुली पकड़ाई और उसे घर लेकर आ गए|

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घर आने पर उसकी स्त्री बोली यह कन्या किसकी है वह कन्या बोली मां मैं तेरी हूं| ब्राह्मणी ने ब्राह्मण से पूछा क्या बात है… ब्राह्मण ने बात बताई.. उन दोनों ने उसे बेटी कहकर पुकारा| वह दोनों पति-पत्नी खुश हुए और बोले इसका क्या नाम रखें ब्राह्मण बोला इसका नाम तुलसी रख देते हैं या हमारे आंगन की तुलसी है| अब तुलसी खेलने कूदने लगी माता-पिता भी उसे बड़ा ही प्रेम करते थे| वह बड़ी हुई तो माता-पिता उसकी शादी की चिंता करने लगे तब तुलसी बोली मेरी चिंता आप मत करो मुझे तो स्वयं भगवान श्री हरि लेने आएंगे| आप लोग तैयारियां करो शादी का मुहूर्त निकला, कातिक शुक्ल एकादशी के दिन तुलसी जी का विवाह सानिक राम जी के साथ हो गया| जब तुलसी जाने लगी तो उसके माता-पिता रोने लगे| बेटी हम तुम्हें कहां लेने आएंगे तब तुलसी ने कहा माता-पिता आप मेरी चिंता मत करना| मेरा ससुराल द्वारिका धाम है आप जब याद करोगे तो मैं आ जाऊंगी| आप अपने आंगन में तुलसी लगाना उससे मन को शांति मिलेगी|तुलसी माता कि कहाणी/tulsi

आंगन की तुलसी को आप सदा ही हरा रखना, उसकी पूजा अर्चना करते रहना, इतना कहकर तुलसी विदा हो गई| ब्राह्मण ब्राह्मणी अपने आंगन की तुलसी की पूजा अर्चना करने लगे| कुछ दिनों के बाद ब्राह्मण ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई| उन्हें लेने विष्णु लोक का विमान आया और वह दोनों ब्राह्मण ब्राह्मणी बैकुंठ धाम को चले गए| हे तुलसी माता जैसे आपने ब्राह्मण और ब्राह्मणी पर अपनी कृपा करें वैसे ही अपने सभी भक्तों पर अपनी कृपा बनाए रखना| कहानी अधूरी हो तो पूरी का, ना पूरी हो तो मान रखना| प्रेम से बोली तुलसी माता की जय हो|

तुलसी माता कि कहाणी/tulsi

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एक समय की बात है एक गांव में एक पति-पत्नी रहते थे| उनके दो बेटे और एक बेटी थी| बड़े होने पर दोनों बेटों का विवाह हो गया| बड़ी वाली बहू बहुत ही घमंडी थी और अपने में ही मग्न रहती थी| सास ससुर की बिल्कुल सेवा नहीं करती| छोटी वाली बहू बहुत ही शांत स्वभाव की थी सास ससुर की हमेशा सेवा करती| साथ ही सुबह उठती तुलसी के पौधे में तेल दिया लगाती और कथा कहानी कहती…. उसका पति कु कुछ भी नहीं कमाता| बड़ा वाला बेटा कमाता और उसी के पैसों से घर का खर्चा चलता था| एक बार बड़ी बहू ने सोचा ससुर जी भी बुड्ढे हो गए, देवर भी कुछ नहीं कमाता मेरे पति ही अकेले कमाते हैं और पूरे घर का खर्चा चलाती हैं, मैं ऐसा क्यों करूं.. मैं भी अपने पति का कमाई खर्च करने में बड़ी बहू अपने सास ससुर से कहने लगी… मैं अलग रहना चाहती हूं, देवर जी भी नहीं कमाते और आप बुड्ढे हो गए मेरे पति की कमाई से ही पूरे घर का खर्चा चलता है इसलिए मैं अलग रहना चाहती हूं|तुलसी माता कि कहाणी/tulsi

बड़ी बहू ने घर का बंटवारा कर दिया| घर का जो भी अच्छा सामान था वह अपने हिस्से में ले लिया और जो भी टूटा फूटा सामान था वह छोटी बहू के हिस्से में दे दिया| सास ससुर और ननद को भी छोटी बहू के हिस्से में दे दिया| पक्के मकान का अच्छा वाला हिस्सा ले लिया और टूटा फूटा हिस्सा छोटी बहू को दे दिया| छोटी बहू बोली मैं आपके बंटवारे से सहमत हूं बस एक मेहरबानी और कर दीजिए आपके हिस्से में जो तुलसी का लगा है वह मुझे दे दीजिए| नहीं तो वहां पर आप और रोजाना पूजा करने की अनुमति दे दीजिए| बड़ी बहू झिलमिलाती हुई गई और तुलसी का पौधा उखाड़ कर ले आई और छोटी बहू के हाथों में देती हुए बोली यह ले तुलसी का पौधा भी ले ले…. वैसे भी मुझे फुर्सत कहां है पूजा पाठ करने की| ऐसा करने पर लक्ष्मी माता भी छोटी बहू के पीछे पीछे उसके साथ चली गई बड़ी बहू के घर से माता लक्ष्मी चली गई|

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छोटी बहू के घर पर माता लक्ष्मी का वास हो गया| क्योंकि माता लक्ष्मी तो तुलसी के पौधे में विद्यमान रहती हैं| तुलसी का पौधा छोटी बहू के पास आ गया| धीरे-धीरे बड़ी बहू के घर में परेशानियां होने लगी उसके पति की नौकरी भी चली गई लेकिन छोटी बहू उनके पति को अचानक ही एक नौकरी मिल गई वह बहुत ही मन से राजा के यहां काम करने लगा| उससे प्रसन्न होकर राजा ने उसे रहने के लिए मकान और खेती करने के लिए 100 बीघा जमीन दे दिया| दूना चौगुना तरक्की करने लगा और जेठानी के यहां कंगाली छाने लगी| उसके पति की नौकरी भी चली गई और वह बीमार रहने लगी| हाल यह हुआ कि बड़ी बहू को दूसरे के यहां काम करके अपना गुजारा करना पड़ता था और छोटी बहू ठाट से रहने लगी अपने साथ ससुर की सेवा करती, सुबह शाम माता तुलसी की पूजा करती, कथा कहानी कहती, तुलसी माता की कृपा से छोटी बहू के घर में अन्न धन का भंडार भर गया| हे तुलसी माता अपने सभी भक्तों पर अपनी कृपा बनाए रखना प्रेम से बोले तुलसी|तुलसी माता कि कहाणी/tulsi

माता की जय हो…..तुलसी माता कि कहाणी/tulsi

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